पराली जलाने में 57% की कमी या सिर्फ आंकड़ों का खेल? सरकार ने जारी किए नए आंकड़े
21 मार्च 2025, नई दिल्ली: पराली जलाने में 57% की कमी या सिर्फ आंकड़ों का खेल? सरकार ने जारी किए नए आंकड़े – कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने दावा किया है कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में धान की पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल की तुलना में 57 प्रतिशत की कमी आई है। मंत्रालय के अनुसार, यह बदलाव 2018-19 से लागू फसल अवशेष प्रबंधन योजना का नतीजा है, जिसके तहत किसानों को मशीनरी खरीद और प्रबंधन के लिए वित्तीय मदद दी जा रही है। यह जानकारी लोकसभा में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने एक लिखित जवाब में दी।
मंत्रालय की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, योजना के तहत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पराली के इन-सीटू (खेत में ही प्रबंधन) और एक्स-सीटू (खेत से बाहर उपयोग) प्रबंधन पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए किसानों को मशीनों की कीमत का 50 प्रतिशत और ग्रामीण उद्यमियों को 30 लाख रुपये तक की परियोजनाओं के लिए 80 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जा रही है। मशीनों में सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर और बेलर जैसी तकनीक शामिल हैं, जो पराली को जलाने की बजाय इसके दोबारा उपयोग को बढ़ावा देती हैं।
आंकड़ों के अनुसार, 2018-19 से 2024-25 (28 फरवरी तक) के बीच इन राज्यों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) को 3698.45 करोड़ रुपये दिए गए हैं। इस दौरान 41,900 से ज्यादा कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) बनाए गए और 3.23 लाख से अधिक फसल अवशेष प्रबंधन मशीनें किसानों तक पहुंचाई गईं। मंत्रालय का कहना है कि इससे पराली की सप्लाई चेन को मजबूत करने में मदद मिली है, जिसका इस्तेमाल बायोमास बिजली और जैव ईंधन जैसे क्षेत्रों में हो रहा है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए मंत्रालय ने बताया कि 15 सितंबर से 30 नवंबर 2023 के बीच इन तीनों राज्यों में पराली जलाने की 42,962 घटनाएं दर्ज हुई थीं, जो 2024 में घटकर 18,457 रह गईं। हालांकि, ये आंकड़े अंतरिक्ष से निगरानी पर आधारित हैं, और जमीनी हकीकत से इनका कितना मेल है, इस पर सवाल उठते रहे हैं।
हालांकि सरकार इन आंकड़ों को उपलब्धि के तौर पर पेश कर रही है, लेकिन जानकारों का कहना है कि पराली प्रबंधन की समस्या अब भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। हर साल सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर बढ़ना इस बात का सबूत है कि अभी और काम करने की जरूरत है। मंत्रालय ने अपने बयान में इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया, लेकिन योजना को आगे बढ़ाने की बात जरूर कही।
फिलहाल, यह साफ है कि पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए तकनीक और सब्सिडी पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन इसका असर कितना टिकाऊ होगा, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।
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