ग्रामीण भारत में 95% भूमि रिकॉर्ड्स डिजिटल: पारदर्शिता और सरलता की ओर बड़ा कदम
29 अक्टूबर 2024, नई दिल्ली: ग्रामीण भारत में 95% भूमि रिकॉर्ड्स डिजिटल: पारदर्शिता और सरलता की ओर बड़ा कदम – ग्रामीण विकास मंत्रालय ने घोषणा की है कि भारत के ग्रामीण इलाकों के 95% भूमि रिकॉर्ड्स का डिजिटलीकरण पूरा हो चुका है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे ग्रामीण भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया। डिजिटलीकरण से न केवल पारदर्शिता बढ़ी है, बल्कि इससे ग्रामीण परिवारों को भूमि विवादों से राहत भी मिल रही है।
भूमि रिकॉर्ड्स के डिजिटलीकरण की आवश्यकता
भारत में भूमि प्रबंधन के पारंपरिक तरीकों के चलते अक्सर विवाद और धोखाधड़ी की घटनाएं सामने आती थीं। कागजी प्रक्रिया जटिल होने के कारण विवाद सुलझाने में समय लगता था और कानूनी बोझ बढ़ता था। अब, डिजिटल रिकॉर्ड्स की उपलब्धता से न केवल जानकारी ऑनलाइन आसानी से सुलभ हो गई है, बल्कि अवैध अतिक्रमण पर भी रोक लगी है। डिजिटलीकरण से कमजोर और हाशिए पर खड़े समुदायों को भूमि अधिकारों तक बेहतर पहुंच मिली है। आपदाओं या भूमि अधिग्रहण के दौरान मुआवजा वितरण भी अधिक पारदर्शी और समयबद्ध हो सका है।
डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड्स मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम (DILRMP)
डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड्स मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम (DILRMP) की शुरुआत अप्रैल 2016 में केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में की गई थी। इसका उद्देश्य भूमि रिकॉर्ड्स के लिए एक आधुनिक और पारदर्शी प्रणाली तैयार करना है, जिससे रियल-टाइम जानकारी, नीति-निर्माण में सहयोग, और भूमि विवादों में कमी लाई जा सके।
यह योजना न केवल भूमि मालिकों और खरीदारों को लाभ देती है, बल्कि धोखाधड़ी रोकने, भूमि कार्यालयों के फिजिकल दौरे खत्म करने और विभिन्न एजेंसियों के बीच डेटा साझा करने की सुविधा भी प्रदान करती है।
मुख्य उपलब्धियां और प्रगति
- 95% भूमि रिकॉर्ड्स का कंप्यूटरीकरण: 6.26 लाख से अधिक गांवों को कवर किया गया।
- 68% कैडस्ट्रल मानचित्र डिजिटाइज्ड: पूरे देश में मानचित्रों का डिजिटलीकरण प्रगति पर है।
- 87% उप-पंजीयक कार्यालयों (SROs) का एकीकरण: इन्हें भूमि रिकॉर्ड्स से जोड़ा गया है।
- 2025-26 तक योजना का विस्तार: इसमें आधार-आधारित भूमि रिकॉर्ड एकीकरण और राजस्व न्यायालयों का डिजिटलीकरण शामिल होगा।
DILRMP के अंतर्गत प्रमुख पहलें
- यूनीक लैंड पार्सल आइडेंटिफिकेशन नंबर (ULPIN):
इसे “भू-आधार” भी कहा जाता है, जो प्रत्येक भूमि पार्सल के लिए 14-अंकों का अल्फा-न्यूमेरिक कोड प्रदान करता है। यह अब तक 29 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया जा चुका है और इससे भूमि विवादों को सुलझाने, आपदा प्रबंधन को बेहतर बनाने में मदद मिली है। - नेशनल जेनरिक डॉक्यूमेंट रजिस्ट्रेशन सिस्टम (NGDRS):
यह प्रणाली ऑनलाइन पंजीकरण, भुगतान, और दस्तावेज़ खोज की सुविधा देती है। अब तक 18 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने इसे अपनाया है, जबकि 12 अन्य राज्यों ने अपने डेटा को राष्ट्रीय पोर्टल के साथ साझा किया है। - ई-कोर्ट्स एकीकरण:
भूमि विवादों के तेज निपटान के लिए भूमि रिकॉर्ड्स को न्यायालयों के साथ जोड़ा जा रहा है। यह पहल 26 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में लागू की जा चुकी है। - भाषा अनुवाद और लिप्यंतरण:
भूमि दस्तावेजों को संविधान की अनुसूची VIII में शामिल 22 भाषाओं में लिप्यंतरण किया जा रहा है, ताकि लोग आसानी से अपने रिकॉर्ड्स की जांच कर सकें। 17 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। - भूमि सम्मान पहल:
इस पहल के तहत 16 राज्यों के 168 जिलों ने 99% से अधिक भूमि रिकॉर्ड्स का डिजिटलीकरण और मानचित्रों का एकीकरण पूरा कर “प्लैटिनम ग्रेडिंग” हासिल की है।
ग्रामीण भारत में भूमि प्रबंधन का भविष्य
डिजिटल भूमि रिकॉर्ड्स के माध्यम से सरकार भूमि प्रबंधन को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। यूएलपीआईएन और भू-अधार जैसी तकनीकी पहलों के जरिए रियल एस्टेट लेन-देन को आसान बनाने और आपदा प्रबंधन को अधिक प्रभावी बनाने पर जोर दिया जा रहा है।
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