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सोयाबीन फसल में खरपतवार प्रबंधन

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सोयाबीन फसल में खरपतवार प्रबंधन

डॉ. सौरभ त्रिपाठी से विशेष चर्चा

1 जुलाई 2020, इंदौर। प्रतिष्ठित कम्पनी क्रिस्टल क्रॉप प्रोटेक्शन प्रा. लि.के हर्बी साइड पोर्टफोलियो मैनेजर डॉ. सौरभ त्रिपाठी ने गत दिनों कृषक जगत के फेसबुक पेज पर सोयाबीन फसल में खरपतवार प्रबंधन विषय पर अपने विचार प्रकट किए थे.जिसमें उन्होंने खरपतवार की पहचान, रोकथाम के उपाय और रखी जाने वाली सावधानियों का उल्लेख किया था इसके बाद कृषक जगत ने उनसे विशेष चर्चा की।

डॉ. सौरभ त्रिपाठी ने कृषक जगत को बताया कि सोयाबीन खरपतवार की पहचान और उनकी रोकथाम के लिए सही समय का निर्धारण करने के साथ ही उचित नोज़ल स्प्रे का उपयोग करना जरुरी है जब खरपतवार दो से पांच पत्ती की अवस्था में हो तभी इसकी रोकथाम कर देनी चाहिए.आम तौर पर संकरी पत्ती वाले खरपतवार 15 -20 दिन में आ जाते हैं.खरपतवार को नियंत्रित करने में कम्पनी उत्पाद बांगो बेहद कारगर साबित हुआ है।

सही स्प्रे नोज़ल का उपयोग करने की सलाह देते हुए डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि नोज़ल दो प्रकार के होते हैं होलोकोन और फ्लैटज़ेड/फ्लैटफेन। होलोकोन स्प्रे नोज़ल फव्वारा बनाता है, जो बूंदों के धुंए जैसा दिखता है.यह पौधों पर कीटनाशक छिड़काव के लिए उपयुक्त है. जबकि फ़्लैटजेट स्प्रे नोज़ल से बूंदे मोटी बनती है. इससे स्प्रे करने पर दवाई पौधे के बजाय खरपतवार तक पहुँचती है. इससे फसल को नुकसान नहीं पहुँचता और ओवरडोज़ का खतरा भी नहीं रहता। अन्य नोज़ल का इस्तेमाल करने पर सोयाबीन फसल को झटका भी लग सकता है, क्योंकि अवांछित कीटनाशक पौधों पर पड़ता है। इसलिए नोज़ल का चुनाव सावधानी से करना चाहिए।

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