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असामान्य वर्षा के कारण दलहन पैदावार पर असर की आशंका

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इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन ने दलहन  बुआई पर वेबिनार किया

 

2 सितम्बर 2021, मुंबई ।  असामान्य वर्षा  के कारण दलहन पैदावार पर असर  की आशंका –

भारत के दलहन व्यापार और उद्योग के लिए नोडल संगठन  इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन्स

एसोसिएशन  (आईपीजीए) ने हाल ही में आईपीजीए नॉलेज सीरीज के तत्वावधान में खरीफ बुवाई अवलोकन

पर एक वेबिनार की मेजबानी की। इस वर्ष के बुवाई पैटर्न और खरीफ मौसम की दलहनी फसलों के भविष्य के

दृष्टिकोण, इसकी उपज, कीमतों पर प्रभाव और आयात-निर्भरता के बारे में गहराई से जानकारी पेश की गई।

वेबिनार में २० से अधिक देशों के ७०० से अधिक व्यापार हितधारकों ने भाग लिया।


समय पर मानसून और दलहनी फसलों की अच्छी बुवाई के साथ खरीफ सीजन की शुरुआत अच्छी रही, लेकिन

जून के मध्य से जुलाई के मध्य तक अनिश्चित मानसून पैटर्न ने देश के कई हिस्सों में बारिश की कमी का

कारण बना, जिससे फसल की पैदावार पर असर होने की आशंका हो रही है। वेबिनार के दौरान, विशेषज्ञों ने अपने

वक्तव्य में भारत की आयात नीति में बदलाव के प्रभाव, खपत पैटर्न, कंटेनर की कमी को देखते हुए दालों के

निर्यात में बाधा और माल ढुलाई शुल्क में वृद्धि जैसे प्रमुख पहलुओं को शामिल किया।

 

श्री बिमल कोठारी, उपाध्यक्ष, आईपीजीए ने अपने उद्घाटन भाषण में वेबिनार के बारे में बात करते हुए कहा,

मानसून अच्छी गति से शुरू होने के बावजूद, जून के तीसरे सप्ताह के आसपास इसकी प्रगति मध्य भारत में

रुक गई, जिससे महत्वपूर्ण खरीफ बुवाई के मौसम के दौरान तीन सप्ताह वर्षा विलबित हो गई। आईपीजीए के

वेबिनार में उद्योग के कई विशेषज्ञों ने खरीफ बुवाई के पैटर्न और रिकवरी पर मानसून के प्रभाव को समझने में

मदद की।

भारत मौसम विज्ञान विभाग के जलवायु अनुसंधान और सेवाओं के प्रमुख डॉ. डी एस पाई ने इस साल मानसून के
प्रदर्शन के बारे में कहा, “जून में बारिश अपेक्षाकृत अच्छी थी – देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से लगभग
१०% अधिक रही।  जुलाई में, देश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में एक बड़ी कमी   देखी गई – सामान्यसे ७% कम।

लेकिन, अगस्त में स्थिति  खराब होने लगी, जिसके कारण मध्य भारत के पूर्वी हिस्से के साथ-साथ
पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों में भीषण वर्षा की कमी थी। डॉ डीएस पई ने आने वाले चार हफ्तों में पूर्वानुमान
पर भी प्रकाश डाला।


श्री नीरव देसाई, मैनेजिंग पार्टनर, जीजीएन रिसर्च ने खरीफ दलहन की बुवाई के बारे में बताया कि

समय पर बारिश के कारण जून में बुवाई मजबूत थी, जिससे देश के अधिकांश हिस्सों में समय पर बुवाई हुई।

उन्होंने कहा,भले ही मानसून जल्दी शुरू हो गया, लेकिन १५ जून और १५ जुलाई के बीच बारिश के अचनाक

रुकने की वजह से फसल क्षेत्र के विस्तार को कम कर दिया। कुल वर्षा में २७.२% की कमी देखी गई। राजस्थान

और गुजरात में सूखा पड़ने की वजह से राजस्थान में कुल फसल की पैदावार में २५% तक की कमी हो सकती है।

श्री बी कृष्ण मूर्ति, प्रबंध निदेशक, फोर पी इंटरनेशनल ने उड़द परिदृश्य पर  कहा, “भारत
पिछले कुछ वर्षों में घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए दलहन पैदावार में लगातार सुधार कर रहा है।


भारत ने २०१० वर्ष में १.७० मिलियन टन का उत्पादन किया, जो २०१८-१९  में लगभग ३

मिलियन टन हो गया और देश के कुल जरूरत में होने वाली कमी को म्यांमार से आयात करके पूरा किया जाता

है।हमारी बुआई ३७ लाख हेक्टेयर में अच्छी थी और मानसून न तो असामान्य रूप से कम रहा है और न ही असामान्य रूप से

ज्यादा। हालांकि, स्थिति इस बात पर निर्भर करती है कि शेष ३३ दिनों का मानसून सीजन कैसा रहता है। फसल

के लिए सबसे बड़ा खतरा असामान्य वर्षा होगी जो खड़ी फसलों के लिए खतरा पैदा कर सकती है।

श्री नितिन कलंत्री, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, कलंत्री फूड प्रोडक्ट्स ने तुअर पर अपनी प्रस्तुति में कहा, “फसल

की कमी या कम बुवाई और एक अनिश्चित वर्षा पैटर्न के परिणामस्वरूप उत्पादन में कमी के कारण खरीफ

फसलों के आयात में कुछ दिनों में वृद्धि होगी जिस वजह से दालों की कीमत में बढ़ोतरी हो सकती है। सरकार ने

अपने चौथे अग्रिम अनुमान में तुअर का ४२.८० लाख टन उत्पादन का अनुमान लगाया है। हालांकि, व्यापर

जगत का  अनुमान है कि उत्पादन ३७  लाख टन से अधिक नहीं होगा, जिससे कीमतों में भी उछाल आएगा।

अनुमान है की २ लाख टन तुअर म्यांमार और अफ्रीका से आयात की जाएगी, जो उच्च माल ढुलाई लागत के

कारण फसल की क़ीमतों मे वृद्धि कर सकती है। इसलिए भारत को भारतीय किसानों पर अधिक निर्भर होने की

जरूरत है, हमें आत्मनिर्भर बनना होगा ताकि हम बहुत अधिक मात्रा में आयात न करें और आगे जाकर कीमतें

नहीं बढ़ेंगी।”


श्री पुनीत बछावत, प्रबंध निदेशक, प्रकाश एग्रो मिल्स ने मूंग पर अपनी प्रस्तुति में कहा, “भले ही लॉकडाउन

और महामारी की स्थिति के कारण मूंग की प्रति व्यक्ति खपत में गिरावट आई हो, लेकिन उम्मीद है कि आने

वाले दिनों में इसमें वृद्धि होगी। व्यापार अनुमानों से पता चलता है कि आने वाले वर्षों में वर्तमान स्तर से मांग

में लगभग २५% की वृद्धि होगी और इस अंतर को अधिक उत्पादन और आयात के माध्यम से भरने की

संभावना है। भारत में दलहन की फसल मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर करती है और सिंचित भूमि में केवल

३०% फसल ही बोई जाती है। शुरुआत की कम बारिश के बावजूद, भारत में मूंग के लिए अधिकतम समर्थन

मूल्य (एमएसपी) बढ़ा दिया गया है, जिससे महाराष्ट्र और कर्नाटक के किसानों को जरूरी राहत मिली है। समय

पर मानसून ने जहां बंपर फसल की उम्मीद जगाई, वहीं बारिश के बड़े अंतराल और अनिश्चित पैटर्न ने मूंग की

अच्छी फसल की उम्मीदें बिगाड़ दीं।

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वेबिनार में आईएमडी के डॉ. डी एस पाई, जीजीएन रिसर्च के श्री नीरव देसाई, फोर पी इंटरनेशनल

के श्री बी कृष्ण मूर्ति, कलंत्री फूड प्रोडक्ट्स के श्री नितिन कलंत्री और प्रकाश एग्रो मिल्स के श्री

पुनीत बछावत ने अपने विचार पेश किए।
वेबिनार में २० से अधिक देशों के ७०० से अधिक हितधारकों ने भाग लिया ।

   
 
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