Horticulture (उद्यानिकी)

टमाटर की रोग मुक्त खेती से किसान बढ़ायें आमदनी

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  • राजेंद्र नागर , डॉ. दयानंद
    डॉ. आर. एस. राठौड़ ,डॉ. रशीद खान
  • विमल नागर
    कृषि विज्ञान केन्द्र, आबूसर, झुन्झुनू (राज.)

3 मार्च 2022,  टमाटर की रोग मुक्त खेती से किसान बढ़ायें आमदनी – किसानों के लिए टमाटर की फसल आय का अच्छा जरिया है। इसकी फसल पर कीटों के साथ-साथ कई तरह के रोगों का भी हमला होता है। इसके लिए किसानों को सजग रहकर टमाटर फसल की देखभाल करनी पड़ती है टमाटर, प्राचीन समय से ही बहुत महत्वपूर्ण सब्जियों में से है। इसका उपयोग मुख्यत: सब्जी तथा सलाद के रूप में किया जाता रहा है। आज के समय में टमाटर की खेती करना बहुत ही कठिन हो गया है। इसमें विभिन्न प्रकार के रोग लगने लगे हैं। इससे पूरी की पूरी फसल नष्ट हो जाती है। उत्पादन की दृष्टि से टमाटर एक मुख्य सब्जी है। कम या अधिक, इसका उपयोग सभी सब्जियों में किया जाता है। इसकी खेती वर्षभर की जा सकती है। टमाटर उत्पादन के दौरान यह सब्जी फसल किसी न किसी रोग से ग्रसित होती है। इससे किसानों को अत्यधिक नुकसान होता है। किसान समय पर यदि इन रोगों की रोकथाम करें, तो इनके द्वारा होने वाले आर्थिक नुकसान से बचा जा सकता है। टमाटर की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के उपाय इस प्रकार हैं:

फफूंद जनित

रोगकारक : पिथियम, फाइटोपथोरा, फ्यूजेरियम की किस्में तथा राइजोक्टोनिया सोलेनाई: इस रोग के लक्षण पौधों पर दो रूप में दिखाई देते हैं। पहली अवस्था में बीज अंकुर भूमि की सतह से निकलने से पहले ही रोगग्रस्त हो जाते हैं तथा मर जाते हैं। इससे पौधशाला की पौध संख्या में बहुत कमी आ जाती है। दूसरी अवस्था में इस रोग का संक्रमण पौधे के तनों पर होता है। तने का विगलन होने पर पौध भूमि की सतह पर लुढक़ जाती है तथा मर जाती है।

रोकथाम: पौधशाला का स्थान प्रत्येक वर्ष बदल दें। पौधशाला की मृदा का उपचार फार्मेलिन एक भाग फार्मेलिन तथा सात भाग पानी या सौर ऊर्जा से करें। बिजाई से पूर्व बीज को कैप्टॉन 3 ग्राम/कि.ग्रा. बीज और थियोफेनेट मिथाइल 45 प्रतिशत+ पाइराक्लोस्ट्रोबिन 5 प्रतिशत 3 ग्राम/10 लीटर पानी के घोल से उपचारित करें। जब पौध 7 से 10 दिनों की हो जाए, तो उसकी मैन्कोजेब 25 ग्राम/10 लीटर पानी कार्बेंडाजिम 10 ग्राम/10 लीटर पानी से सिंचाई करें। पानी उतना ही दें, जितना जरूरी है।

फल सड़न

रोगकारक: फाइटोप्थोरा निकोशियानी उपप्रजाति पैरासिटिका: इस रोग के लक्षण केवल हरे फलों पर ही दिखाई देते हैं। प्रभावित फलों पर हल्के तथा गहरे भूरे रंग के गोलाकार धब्बे चक्र के रूप में दिखाई देते हैं। ये हिरण की आंख की तरह लगते हैं। रोगग्रस्त फल आमतौर से जमीन पर गिर जाते हैं तथा सड़ जाते हैं।

रोकथाम: पौधों को सहारा देकर सीधा खड़ा रखें। भूमि की सतह से 15-20 सें.मी. तक की पत्तियों को तोड़ दें। वर्षाकाल के आरंभ होते ही उपयुक्त जल निकास के लिए नालियां बनाएं। समय-समय पर रोगग्रस्त फलों को इक_ा करके गड्ढे में दबा दें। वर्षा ऋतु के आरंभ होने से पहले खेत की सतह पर घास की पत्तियों का पलवार बिछाएं। मानसून की वर्षा के आरंभ से ही फसल पर साइमोक्जानील-मैन्कोजेब 25 ग्राम/10 लीटर पानी का छिडक़ाव करें। इसके उपरांत मैन्कोजेब 25 ग्राम/10 लीटर पानी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 30 ग्राम/10 लीटर पानी या बोर्डो मिश्रण 800 ग्राम नीला थोथा, 800 ग्राम अनबुझा चूना 100 लीटर पानी का छिडक़ाव 7 से 10 दिनों के अंतराल पर करें।

अल्टरनेरिया धब्बा

रोगकारक: अल्टरनेरिया सोलेनाई, आ. अल्टरनाटा, आ. अल्टरनाटा उप प्रजाति लाइकोपरसिसी: पत्तों पर गहरे भूरे रंग के गोलाकार चक्रनुमा धब्बे बनते हैं, जो लक्ष्य पटल की तरह दिखाई देते हैं। नम वातावरण में ये धब्बे आपस में मिल जाते हैं और गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं। पत्ते समय से पहले पीले पड़ जाते हैं तथा गिर जाते हैं। इस रोग के लक्षण फलों पर भी धंसे हुए धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। अल्टरनेरिया धब्बे आकार में छोटे, गोलाकार, बिखरे हुए तथा गहरे भूरे रंग के होते हैं। पुराने धब्बे चक्रनुमा पीले क्षेत्रा से घिरे हुए होते हैं। हल्के भूरे रंग के कोणीय धब्बे बनते हैं, जो आकार में छोटे होते हैं। धब्बे किसी चक्रनुमा पीले क्षेत्रा से घिरे नहीं होते। इस रोग के लक्षण तने पर भी देखे जा सकते हैं।
रोकथाम : रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को इक_ा कर के नष्ट कर दें। बीज का कैप्टॉन 3 ग्राम/कि.ग्रा. बीज से उपचार करें। फसल पर मैन्कोजेब 25 ग्राम/10 लीटर पानी या मेटालैक्सिल एम 3.3 $ क्लोरोथालोनिल 33.1 एससी 20 ग्राम/10 लीटर पानी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 30 ग्राम/10 लीटर पानी का छिडक़ाव करें।

जीवाणु धब्बा

रोगकारक: जैन्थोमोनास वेसीकेटोरिया: इस रोग के लक्षण पौधों के पत्तों तथा तनों पर छोटे-छोटे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो बाद में गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं। धब्बे आपस में मिल जाते हैं तथा इनका आकार बड़ा हो जाता है। फलों पर भूरे काले रंग के उभरे हुए धब्बे बनते हैं, जिनके किनारे अनियमित होते हैं। बाद में ये धब्बे धंस जाते हैं।
रोकथाम: फसलचक्र अपनाएं तथा रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को इक_ा करके नष्ट कर दें। बीज को स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 1 ग्राम/10 लीटर पानी में 30 मिनट तक उपचारित करें। फसल पर रोग के लक्षण दिखते ही स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 1 ग्राम/10 लीटर पानी का छिडक़ाव करें। इसके बाद 7 से 10 दिनों के अंतराल पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 30 ग्राम/10 लीटर पानी का छिडक़ाव करें।

मुरझान रोग

रोगकारक: रालस्टोनिया सोलेनेसिएरमा: संक्रमित पौधों के पत्ते अचानक ही नीचे की तरफ लटक जाते हैं तथा उनमें पीलापन दिखाई नहीं देता है। पूरा पौधा ही मुरझा जाता है।
रोकथाम: प्रभावित खेतों में फसल चक्र अपनाएं। रोग से प्रभावित खेत में प्याज, लहसुन, मक्का, गेहूं या गेंदा जैसी फसलें लगा सकते हैं। प्रभावित खेतों को गर्मियों के दिनों में मार्च से जून के बीच 30 से 45 दिनों तक सफेद पारदर्शी पॉलीथिन 100 गेज मोटा से सिंचाई करने के बाद ढककर रखने से भी रोग का संक्रमण कम हो जाता है। रोपण से पहले पौध की जड़ों को स्ट्रेप्टोसाइक्लीन1 ग्राम/10 लीटर पानी में 30 मिनट तक डुबोकर रखें तथा फिर रोपें।

विषाणु जनित रोग

रोगकारक: टोमेटो स्पोटिड विल्ट विषाणु: रोगग्रस्त पौधों के पत्तों का रंग कांस्य की तरह का हो जाता है। पत्ते मुरझा जाते हैं। पौधों की लंबाई भी कम हो जाती है। फलों की सतह पर लाल-पीले रंग के चक्र बनाते हुए धब्बे भी दिखाई देते हैं। बाद में रोगग्रस्त पौधे मर जाते हैं। पर पोषक फसलें होस्ट रेंज किसी भी विषाणु की अपेक्षा इस विषाणु की मारक क्षमता बहुत अधिक है। यह विषाणु शिमला मिर्च, लैट्यूस, मटर, तम्बाकू, आलू, टमाटर और बहुत सी सजावटी पौधों की प्रजातियों को संक्रमित करता है। संचारण प्राकृतिक रूप से इस विषाणु का संचारण ‘थ्रिप्स’ नामक कीट द्वारा होता है। इस विषाणु के कीट का लार्वा गहन पोषण प्राप्त करता है और इसका संचारण वयस्क कीट ही करता है।

रोकथाम : पौध को जालीनुमा घर में ही उगाएं, ताकि थ्रिप्स पौधशाला में प्रवेश न कर पाएं। यदि फसल पर रोग के लक्षण दिखाई दें, तो तत्काल प्रभावित पौधों को जड से निकालकर नष्ट कर दें तथा फसल पर डेल्टामेथ्रिन 2.8 10 मि.ली./10 लीटर पानी का छिडक़ाव करें।

पिछेता झुलसा

रोगकारक: फाइटोप्थोरा इन्पफेसटेन्स: इस रोग के लक्षण अधिकतर अगस्त के अंतिम व सितंबर के पहले सप्ताह में पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो बाद में भूरे काले धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं। नम व ठण्डे मौसम में ये धब्बे फैलने लगते हैं तथा 3-4 दिनों के पौधे पूरी तरह से झुलस जाते हैं। फलों पर भी गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

रोकथाम : फसल चक्र अपनाएं और खेत में उपयुक्त जल निकास का प्रबंध करें तथा फसल को खरपतवार से मुक्त रखें। सितंबर के पहले सप्ताह में फसल पर मैन्कोजेब 25 ग्राम/10 लीटर पानी का छिडक़ाव करें। इसके उपरांत साइमोक्जानील$+मैन्कोजेब 25 ग्राम/10 लीटर पानी या मेटालैक्सिल एम 3.3 +क्लोरोथालोनिल 33.1 एस सी या एजोक्सिस्ट्रोबिन 23 एस सी 10 ग्राम/10 लीटर पानी या पाइराक्लोस्ट्रोबिन 10 ग्राम/10 लीटर पानी बोर्डो मिश्रण का 7 से 10 दिनों के अंतराल पर छिडक़ाव करें।

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