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बेलवाली फसल लगायें, आमदनी बढ़ायें

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भूमि:-
कद्दूवर्गीय सब्जियों को हल्की भारी भूमि में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है । चयन की दृष्टि से अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट जीवांश युक्त भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है । मिट्टी का पी.एच. 6.6 से 7.0 के मध्य उपयुक्त होता है । इस वर्ग में कुछ फसलों की खेती नदी तट पर बालू में थाला बनाकर भी की जाती है ।
भूमि की तैयारी:-
खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और दो-तीन जुताई देशी हल से करके पाटा लगाकर खेत को समतल एवं मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिये। इस वर्ग की सभी फसलें या तो कतारों की मेड़ पर या थालों में लगाई जाती है। ग्रीष्मकालीन जुताई करने से कीटों के प्यूपा एवं अंडे नष्ट हो जाते हैं।

  • थालों में लगाई जाने वाली फसल में सिंचाई नाली कतार से कतार की दूरी की दुगनी दूरी पर सिंचाई नाली बनाई जाती है एवं इन नालियों के बीच दो कतारें परन्तु त्रिभुजाकार आकार में लगाई जाते हैं और इन पौधों के थालों को मुख्य नाली से जोड़ दिया जाता है । इस विधि में लगाये गये पौधों को खाद भी थालों में दिया जाता है।
  • बोनी करने के लिये सर्वप्रथम पौधे की कतार से कतार दुगुनी दूरी पर 60 से.मी. चौड़ी नाली बना ली जाती है एवं नालियों के दोनों तरफ बीजों को इस प्रकार बोया जाता है कि पहली कतार के दो बीजों के मध्य में दूसरी कतार का पौधा आये। एक स्थान पर 4 से 5 बीज की बुवाई करें ।
    खाद एवं उर्वरक की मात्रा:-
    सामान्य रूप से सभी फसलों के लिये लगभग खाद एवं उर्वरक की मात्रा एक समान होती है प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल गोबर की खाद, 80 से 100 कि.ग्रा. नत्रजन, 50 से 80 कि.ग्रा. स्फुर एवं 50 से 80 कि.ग्रा. पोटाश की आवश्यकता होती है ।
  • गोबर की खाद के साथ स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा एवं 33 प्रतिशत नत्रजन (एक तिहाई नत्रजन की मात्रा) को खेत की अन्तिम जुताई तैयारी के समय कतारों में बोई जाने वाली फसल के लिये फैलाकर दें। यदि फसल को थालों में लगाया जाना है तो मात्रा का निर्धारण फसल की दूरी को ध्यान में रखकर प्रति पौधा निर्धारित करें एवं थालों में खाद डालें।
  • शेष बची नत्रजन को 66 प्रतिशत (दो तिहाई मात्रा) को दो बराबर भागों में बांटकर भाग को बीज बोवाई के 30 दिन एवं 45 से 50 दिन पौधे के चारों ओर डालकर हल्की सी गुड़ाई कर दें ताकि नत्रजन मिट्टी के साथ मिल जाये। ध्यान रखें नत्रजन के रूप में प्रयोग की जाने वाली खाद पौधों के सीधे सम्पर्क में न आवें ।
    सिंचाई:-
    बरसात के मौसम मे लगाई गई फसल की सिंचाई आवश्यकतानुसार करेें एवं ग्रीष्म ऋतु में लगाई गई फसल को 6 से 7 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है ।
    बेलों को सहारा देना:-
    वर्षा ऋतु में लगाई गई फसलें जैसे लौकी, करेला को सहारा देना उचित होता है । ऐसा करने से फल जमीन के सम्पर्क में न आने के कारण खराब नहीं होते एवं रोगों का प्रकोप कम होता है । इन फसलों को ग्रीष्म ऋतु में भी सहारा दिया जा सकता है या मंडप बनाकर बेलों को चढ़ाया जा सकता है ।
    मचान या मण्डप कैसे बनाये:-
    मचान बनाने के लिये 2.25 से 2.50 मीटर लम्बे बंास के डण्डों को 2.5 & 2.5 या 3 & 3 मी. की दूरी पर खेत में लगभग 30 से 40 से.मी. गहरा गाड़ देते है । डण्डों को 1.5 मी. की ऊंचाई पर लोहे के तार की सहायता से एक दूसरे को बांध देते हंै, इसके बाद उपर रस्सी या पतले तार से जाल बना दिया जाता है। इस प्रकार बने मचान बेलों को फैलने के लिये तैयार हो जाते हैं। मचान के चारों कोनों के डण्डों और खेत के किनारों के डण्डों मजबूत रखने के लिये इन डण्डों को तार या रस्सी की सहायता से खींचकर खूंटी की सहायता से बांध देते है जिससे मचान या मण्डप सीधा एवं मजबूत खड़ा रहे।
    विशेष:-
  • रसायनों का प्रयोग ग्रसित पत्तियों एवं फलों को नष्ट करने के बाद करें ।
  • रोग एवं कीट रोधक जातियों का प्रयोग करें ।
  • जल निकास का उचित प्रबंध करें ।
  • कीटनाशकों दवाओं का प्रयोग सूर्योदय के पूर्व करना अधिक लाभदायक होता है।
  • ग्रीष्मकालीन जुताई अवश्य करें एवं फसल चक्र अपनाएं
  • फलों के नीचे पलवार बिछाने से फल कम खराब होते हैं।
    उपज:-
    खीरा 100-150 क्विंटल /हेक्टेयर, लौकी 150-200 क्विंटल/ हेक्टर, करेला 100-150 क्विंटल/हेक्टर, कद्दू 200-250 क्विंटल/हेक्टर उपज प्राप्त की जा सकती है ।
जैविक विधि के प्रति रुझान
यह लौकी की बेल जिसमें हर फल 5 फिट से अधिक का है, मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री श्री गौरीशंकर बिसेन के भोपाल स्थित बंगले में लगी है।
 कद्दू वर्गीय फसलों में लगने वाले रोग एवं कीट:-
 रोग एवं कीट  उपाय
रोग फल विगलन उचित जल निकास एवं सिंचाई व्यवस्था करें । आवश्यकता से अधिक सिंचाई न करें। डायथेन एम 45 (2 ग्राम /ली. पानी)   या मेटालेक्सिल मेन्कोजेब (1.5 ग्राम /ली. पानी) का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें ।
डाउनी मिलड्यू डायथेन एम-45 या ब्लाइटॉक्स-50 घोल (2.5 ग्राम दवा/लीटर पानी) का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें ।
एन्थ्रेक्नोज डायथेन जेड-78 या ब्लाइटॉक्स-50 घोल का छिड़काव करें ।
पर्ण दाग डायथेन जेड-78 या ब्लाइटॉक्स-50 घोल का छिड़काव करें ।
कीट फलबेधक मक्खी मेलाथियान (50 ई.सी.)/डाईक्लोरोवास का 2 मि.ली. एवं 100 ग्राम गुड़ का एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें ।
लाल कद्दू भृंग फसल अंकुरण के तुरन्त बाद मिथाइल पेराथियान 0.2 प्रतिशत पाउडर 20 किलो प्रति हेक्टेयर लगाते समय या क्लोरोपयरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. 2 मि.ली. प्रति ली. की दर से अंकुरण के 10 दिन बाद छिड़काव करें ।
एफिड डाईक्लोरोवास (2 मि.ली./लीटर पानी) का छिड़काव करें ।
फसल उन्नत किस्में बीज की मात्रा/हे. बुवाई विधि बुवाई समय कतार से कतार पौधे से पौधे की दूरी
खीरा चाइना, जापानी लौंग ग्रीन, बालम खीरा, पूना खीरा 4-5 कि.ग्रा. क्यारियों की मेढ़ों पर फरवरी-मार्च, जून-जुलाई 1.5 X1.0  मीटर
लोकी पूसा  मंजरी, पूसा मेघदूत, पूसा नवीन, नरेन्द्र ज्योति 5 कि.ग्रा. 3-4 कि.ग्रा. मेढ़ एवं थालों में फरवरी-मार्च, जून-जुलाई 1.5 X 1.0 मीटर
करेला अर्का हरित, पूसा प्रिया, पूसा हाइब्रिड, पूसा विशेष, पंजाब-14 4-5 कि.ग्रा. कोरों एवं थालों में फरवरी-मार्च, जून-जुलाई 1 X 1 मीटर
कद्दू अर्का सूर्यमुखी, अर्का चन्दन, को-2, पूसा विकास 5 कि.ग्रा. क्यारियों या थालें में फरवरी-मार्च, जून-जुलाई 2.3 X 1.5 मीटर
  • डॉ. विशाल मेश्राम
  • डॉ. के.के.सिंह
  • डॉ. उत्तम कुमार बिसेन
  • सुभाष रावत
    email : kvkmandla@rediffmail.com
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