Horticulture (उद्यानिकी)

जिमीकंद की खेती कर अधिक मुनाफा कमाएं

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  • डॉ. राकेश कुमार मीणा
    असिस्टेंट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर साइंस, करियर पॉइंट यूनिवर्सिटी, अलनिया, कोटा (राज.)
  • डॉ. सुशील कुमार त्रिवेदी
    अधिष्ठाता (कृषि) ,स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर साइंस, करियर पॉइंट यूनिवर्सिटी, अलनिया, कोटा (राज.)

 

5 जुलाई  2021,  जिमीकंद की खेती कर अधिक मुनाफा कमाएं – जिमीकंद ‘एरेसी’ कुल का एक सर्वपरिचित पौधा है जिसे भारतवर्ष में सूरन, बालुकन्द, तथा चीनी आदि अनेक नामों से जाना जाता है। इसकी खेती भारत में प्राचीन काल से होती आ रही है तथा अपने गुणों के कारण यह सब्जियों में एक अलग स्थान रखता है। बिहार में इसकी खेती गृह वाटिका से लेकर बड़े पैमाने पर हो रही है तथा यहाँ के किसान इसकी खेती आज नगदी फसल के रूप में कर रहे हैं। जिमीकंद में पोषक तत्वों के साथ ही अनेक औषधीय गुण पाये जाते हैं जिनके कारण इसे आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोग किया जाता है। इसे बवासीर, खुनी बवासीर, पेचिश, ट्यूमर, दमा, फेफड़े की सूजन, उदर पीड़ा, रक्त विकार में उपयोगी बताया गया है। इसकी खेती हल्के छायादार स्थानों में भी भली-भांति की जा सकती है।

मिट्टी एवं खेत की तैयारी

जिमीकंद के सर्वोतम विकास एवं अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उत्तम जल निकास वाली हल्की और भुरभुरी मिट्टी सर्वोत्तम है। इस फसल के लिए बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश पदार्थ का प्रचुर मात्रा हो, उपयुक्त पायी गयी है, खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और दो-तीन बार देशी हल से अच्छी तरह जोत कर मिट्टी को मुलायम तथा भुरभुरी बना लें। प्रत्येक जुताई के बाद खेत में पट्टा चलाकर समतल कर दें।
यह प्रभेद आज पूरे भारत में फ़ैल गया है, साथ ही हमारे बिहार राज्य में पूरी तरह छा गया है। यह 200-215 दिनों में तैयार होने वाली प्रजाति है। इस प्रजाति की औसत उपज 40-50 टन/हे. है।

बीज एवं बुआई

जिमीकंद का प्रवर्धन वानस्पतिक विधि द्वारा किया जाता है जिसके लिए पूर्ण कंद या कंद को काट कर लगाया जाता है। बुआई हेतु 250-500 ग्राम का कंद उपयुक्त होता है। यदि उपरोक्त वजन के पूर्ण कंद उपलब्ध हो तो उनका ही उपयोग करें। ऐसा करने पर प्रस्फुटन अग्रिम होता है जिससे फसल पहले तैयार एवं अधिक उपज की प्राप्ति होती है। यदि कंद का आकार बड़ा हो तो उसे 250-500 ग्राम के टुकड़ों में काट कर बुआई करें। परन्तु कंद को काटते समय एस बात का ध्यान रखें कि प्रत्येक टुकड़े में कम से कम कालर (कलिका) का कुछ भाग अवश्य रहे।

उपरोक्त कंदों को बोने से पूर्व कन्दोपचार करें। इसके लिए इमीसान 5 ग्राम एवं स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोल कर कंद को 25-30 मिनट तक या ताजा गोबर का गाढ़ा घोल बनाकर उसमें 2 ग्राम कार्बेंडाजिम (बाविस्टीन) पाउडर प्रति लीटर घोल में मिलाकर कंद को उपचारित कर छाया में सुखाने के बाद ही लगायें। उपरोक्त आकार के कंद लगाने पर इनकी बढ़वार 8-10 गुणा के बीच होता है।

बुआई का समय

अप्रैल-जून

विधि: दो विधियों द्वारा जिमीकंद की बुआई की जाती है।
चौरस खेत में: जिमीकंद की बुआई करने के लिए अंतिम जुताई के समय गोबर की सड़ी खाद एवं रासायनिक उर्वरक में नेत्रजन एवं पोटाश की 1/3 मात्रा एवं फास्फोरस की पूर्ण मात्रा को खेत में मिलाकर जुताई कर देते हैं। उसके बाद कंदों के आकार के अनुसार 75 से 90 सें.मी. की दूरी पर कुदाल द्वारा 20 से 30 सें.मी. गहरी नाली बनाकर कंदों की बुआई कर दी जाती है तथा नाली को मिट्टी से ढक दिया जाता है।

गड्ढों में:

इस विधि से अधिकांशत: जिमीकंद की बुआई की जाती है। इस विधि में 75&75&30 सेमी या 1.0&1.0 मी. & 30 सेमी चौड़ा एवं गहरा गड्ढा खोद कर कंदों की रोपाई की जाती है। रोपाई के पूर्व निर्धारित मात्रा में खाद एवं उर्वरक मिलाकर गड्ढा में डाल दें। कंदों को बुआई के बाद मिट्टी से पिरामिड के आकार में 15 सें.मी. उंचा कर दें। कंद की बुआई इस प्रकार करते हैं कि कंद का कलिका युक्त भाग ऊपर की तरु सीधा रहे।

खाद एवं उर्वरक

जिमीकंद की अच्छी उपज हेतु खाद एवं उर्वरक का इस्तेमाल करना बहुत ही आवश्यक है। इसके लिए 10-15 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद, नेत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश 80:60:80 किग्रा./हे. के अनुपात में प्रयोग करें। बुआई के पूर्व गोबर की सड़ी खाद को अंतिम जुताई के समय खेत में मिला दें। फास्फोरस की सम्पूर्ण मात्रा, नेत्रजन एवं पोटाश की 1/3 मात्रा बेसल ड्रेसिंग के रूप में तथा शेष बची नेत्रजन एवं पोटाश को दो बराबर भागों में बाँट कर कंदों के रोपाई के 50-60 तथा 80-90 दिनों बाद गुड़ाई एवं मिट्टी चढ़ाते समय प्रयोग करें।

मल्चिंग

बुआई के बाद पुआल अथवा शीशम की पत्तियों से ढक दें जिससे जिमीकंद का अंकुरण जल्दी होता है, खेत में नमी बनी रहती है तथा खरपतवार कम होने के साथ ही अच्छी उपज प्राप्त होती है।

जल प्रबंधन

यदि खेत में नमी की मात्रा कम हो तो एक या दो हल्की सिंचाई अवश्य कर दें। वर्षा आरम्भ होने तक खेत में नमी की मात्रा को बनाये रखें। बरसात में पौधों के पास जल जमाव न होने दें।

निंदाई-गुड़ाई

बुआई के 25-30 दिनों के अंदर पौधे उग जाते हैं। 50-60 दिनों बाद पहली तथा 80-90 दिनों बाद दूसरी निंदाई करें। निंदाई के समय पौधों पर मिट्टी भी चढ़ाते जायें।

फसल चक्र

जिमीकंद-गेहूँ, जिमीकंद-मटर, जिमीकंद-अदरक, जिमीकंद-प्याज।

खुदाई एवं भंडारण

बुआई के सात से आठ माह के बाद जब पत्तियाँ पीली पड़ कर सूखने लगती है तब फसल खुदाई हेतु तैयार हो जाती है। खुदाई के पश्चात कंदों की अच्छी तरह मिट्टी साफ़ कर दो-तीन दिन धूप में रखकर सुखा लें। कटे या चोट ग्रस्त कंद को स्वस्थ कंदों से अलग कर लें। इसके बाद कंद को किसी हवादार भण्डार गृह में लकड़ी के मचान पर रखकर भण्डारित करें। इस प्रकार जिमीकंद को पांच से छ: माह तक आसानी से भण्डारित किया जा सकता है।

लाभ

यदि उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर जिमीकंद की खेती किया जाये तो इससे रु. 1,25,000/- से 1,50,000/- तक शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

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