फसल की खेती (Crop Cultivation)उद्यानिकी (Horticulture)

गुलाब के रोग एवं उपचार

गुलाब पर भी अनेक प्रकार के रोग लगते हैं, बड़े शौक और तमन्नाओं के साथ लगाए गुलाब के पौधे में मनमुताबिक फूल न लगने और छोटे व कम फूल लगने या पौधों में बीमारी लगने पर खीज और निराशा होने लगती है, अत: गुलाब से संबंधित रोग की जानकारी होना और उनका समय पर नियंत्रण, बचाव करना जरूरी है।

गुलाब के रोग एवं बचाव-

डाइबेक या शीर्षारंभी क्षय रोग ,

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पाउडरी मिल्ड्यू

तने का अंगमारी रोग (ब्लाइट)

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पत्ती धब्बा रोग

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डाइबेक या शीर्षारंभी क्षय रोग –

देशी गुलाब पर यह कवक जनित प्रमुख रोग है। यह पौधे के ऊपरी भाग से नीचे की ओर आता है। सामान्यतया शाखाओं की कटाई के बाद कटे हुए स्थान से आगे बढ़ते जाते हैं और पौधे मर भी सकते हैं। कवक के अलावा यह रोग उर्वरकों के अनुचित प्रयोग, अनुचित सिंचाई व जल निकास एवं सूर्य की रोशनी के अभाव में होता हैं।

उपचार –  

  • रोगग्रस्त शाखा को काटकर अलग कर दें।
  • जब कटाई-छंटाई करें। कटे हुए स्थान पर ब्लाइटॉक्स 50 की मात्रा 500 ग्राम, चूना 250 ग्राम, डायजिनान 5 मिलीग्राम को 5 लीटर पानी में पेस्ट बनाकर जरूर लगायें।
  • चार भाग कापर कार्बोनेट, चार भाग लाल सीसा, पांच भाग अलसी के तेल का लेप बनाकर भी लगाया जा सकता है।
  • किसी वजह से पेस्ट न बन पाने पर बाविस्टीन, ब्लाइटॉक्स 50 फायटोलान, डायथेन एम 45 का छिड़काव करें। (2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी)।
  • बाविस्टीन या बेनलेट को अलसी के तेल में मिला कर लगाया जा सकता है।
  • रोगग्रस्त शाखा को काटकर 0.1 प्रतिशत की दर से बाविस्टीन का छिड़काव करना चाहिये।

पाउडरी मिल्ड्यू-

यह भी एक कवक जनित रोग है जो शीतल एवं शुष्क मौसम में उत्पन्न होता है। इस रोग के लक्षण पौधे के सभी भागों पर दिखाई देते हैं। सबसे पहले यह रोग पौधे की पत्तियों पर दिखाई देता है तथा बाद में पौधे के दूसरे भागों पर भी फैल जाता है पौधे की पत्तियों पर दोनों सतहों पर सफेद पाउडर जैसी परत जम जाती है तनों पर साथ ही साथ कलियों पर भी रोग होने पर फूल नहीं खिलता पत्तियां झडऩे लगती हैं।

उपचार –

  • सल्फेक्स (सल्फर) 2 ग्राम एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  • डायथेन एम-45 (मेंकोजेब) 2 से 3 ग्राम एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  • बाविस्टीन (कार्बेंडाजिम) का 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें। (एक ग्राम प्रति लीटर पानी)
  • सल्फर डस्ट (गंधक चूर्ण) का भुरकाव करें। (20 से 25 किलो प्रति हेक्टेयर)

ब्लैक स्पॉट या काले धब्बे- यह रोग भी कवक द्वारा फैलता है। जमीन में पोटाश की कमी से भी यह रोग होता है। इसमें पानी एवं पर्णवृंत पर लाल-भूरे रंग के छाले या फफोले के रूप दिखाई देते हैं। जो काले हो जाते हैं।

उपचार-

  • डायथेन एम 45 (मेंकोजेब) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • बाविस्टीन (कार्बेंडाजिम) का 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करना चाहिये।

तने का अंगमारी रोग (ब्लाइट) –

गुलाब का यह कवक जनित रोग डाइबेक के रोग के साथ-साथ पाया जाता है तने पर छोटे-छोटे बादामी रंग के धब्बे बनते हैं।

उपचार-

  • रोग्रस्त शाखा को काटकर जला दें।
  • डाइनोकेप दो ग्राम एक लीटर पानी में घोलकर 2-3 बार छिड़काव करें।

पत्ती धब्बा रोग-

वर्षा के मौसम में इस रोग द्वारा अत्याधिक हानि होती है पीले-भूरे से गहरे रंग के धब्बे पत्ती एवं वृंत पर दिखाई देते हैं रोगग्रस्त हिस्सा गिर जाता है पत्तियों में छोटे-छोटे छिद्र बन जाते हैं।

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उपचार-

  • रोगग्रस्त शाखा पत्तियों को काटकर जला दें।
  • मैंकोजेब (डायथेन एम-45) को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 2-3 छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल से करें।
  • म्लानि रोग- इस रोग में संपूर्ण पौधा मुरझा जाता है। अथवा सूख जाता हैं।

उपचार –

  • बाविस्टीन (कार्बेंडाजिम) 1 ग्राम प्रति लीटर में घोलकर छिड़काव करें।
  • श्यामवर्ण रोग (एंथे्रक्रोज)- इस रोग के लक्षण पर्ण शिराओं, पत्तियों, वृन्तों एवं तनों पर दिखाई देते हैं। पत्तियों एवं तनों पर विक्षत भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। इनके चारों ओर लाल-भूरे रंग की उभरी हुई किनारी बन जाती हैं।

उपचार- 

  • डायथेन एम-45 (मेंकोजेब) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
  • केंकर रोग- केेंकर शब्द केंसर का अपभ्रंश है इस रोग में पौधे की छाल अथवा तने के कर्टेक्स में एक मृत क्षेत्र बन जाता है जो कैंकर कहलाता है सर्वप्रथम तने की छाल पर लाल या पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो आकार में बढ़ जाते हैं और तने की मृत छाल उतर जाती है।

उपचार- 

  • डायथेन एम-45 (मेंकोजेब) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करना चाहिए अथवा कोई भी ताम्रयुक्त फफंूदीनाशी दवा 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
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