प्रोटीनयुक्त मैथी लगायें
भूमि तथा जलवायु: मैथी को अच्छे जल निकास एवं पर्याप्त जीवांश पदार्थ वाली सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है। परन्तु दोमट मिट्टी इसके लिये उत्तम रहती है। यह ठण्डे मौसम की फसल है तथा पाले व लवणीयता को भी कुछ स्तर तक सहन कर सकती है। मैथी की प्रारम्भिक वृद्धि के लिये मध्यम आद्र्र जलवायु तथा कम तापमान उपयुक्त है, परन्तु पकने के समय गर्म व शुष्क मौसम उपज के लिये लाभप्रद होता है, पुष्प व फल बनते समय अगर आकाश बादलों से आच्छादित हो तो फसल पर कीड़ों तथा बीमारियों के प्रकोप की सम्भावना बढ़ जाती है।
खेत की तैयारी: भारी मिट्टी में खेत की 3-4 व हल्की मिट्टी में 2-3 जुताई करके पाटा लगा देना चाहिये तथा खरपतवार निकाल देना चाहिये। जुताई के समय भूमिगत कीड़ों से बचाव हेतु 25 किलो क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण भूमि में मिला देना चाहिये।
यह मसाले की एक प्रमुख फसल है। इसकी हरी पत्तियों में प्रोटीन विटामिन सी तथा खनिज तत्व पाये जाते हैं। बीज मसाले तथा दवाई के रूप में उपयोगी है। भारत में इसकी खेती व्यवसायिक/वाणिज्यिक स्तर पर राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात,उत्तरप्रदेश तथा पंजाब राज्यों में की जाती है। भारत मैथी का मुख्य उत्पादक तथा निर्यातक देश है। वर्ष 2015-16 के दौरान मैथी और इसके उत्पाद के निर्यात से भारतवर्ष ने 143 करोड़ रूपये की विदेशी मुद्रा अर्जित की। |
खाद एवं उर्वरक: प्रति हेक्टेयर 10-15 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद खेत तैयार करते समय डालें। इसके अलावा 40 किलो नत्रजन एवं 40 किलो फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व खेत में ऊर कर दें।
उपयुक्त किस्में: आर एम टी 1, आर एम टी 143, आर एम टी 303, आर एम टी 305।
बीज की बुवाई एवं मात्रा : इसकी बुवाई अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक की जाती है। बुवाई में देरी करने से फसल के पकने की अवस्था के समय तापमान अधिक हो जाता है। जिससे फसल शीघ्र पक जाती है तथा उपज में कमी आती है एवं पिछेती फसल में कीट व बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसके लिये 20-25 किलो बीज की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। बीजों को 30 सेन्टीमीटर की दूरी पर कतारों में 5 सेन्टीमीटर की गहराई पर बोना चाहिये। बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर बोने से फसल को लाभ मिलता है।
अधिक उपज हेतु प्रभावी बिन्दु:प्रमाणित एवं रोगरोधक उन्नत किस्मों के बीज ही बोयें।पौधे निश्चित संख्या एवं दूरी पर रखें।निराई-गुड़ाई अवश्य करें।उर्वरकों का प्रयोग करें।सिंचाई भूमि एवं फसल की आवश्कतानुसार करें।फसल चक्र एवं फसल संरक्षण उपाय अपनायें।फसल की कटाई समय पर करें। |
सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई: मैथी की खेती रबी में सिंचित फसल के रूप में की जाती है। सिंचाइयों की संख्या मृदा की संरचना व वर्षा पर निर्भर करती है। वैसे रेतीली दोमट मिट्टी में अच्छी उपज हेतु करीब आठ सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है। परन्तु अच्छे जल धारण क्षमता वाली भूमि में 4-5 सिंचाइयां पर्याप्त हैं। फली व बीजों के विकास के समय पानी की कमी नहीं रहे। बीज बोने के बाद हल्की सिंचाई करें उसके बाद आवश्यकतानुसार 15 से 20 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें। बुवाई के 30 दिन बाद निराई गुड़ाई कर पौधों की छंटाई कर देनी चाहिये व कतारों में बोई फसल में अनावश्यक पौधों को हटाकर पौधों के बीच की दूरी 10 से.मी. रखें। आवश्यकता हो तो 50 दिन बाद दूसरी निराई गुड़ाई करें। पौधों के वृद्धि की प्राथमिक अवस्था में निराई-गुड़ाई करने से मृदा में पूर्णरूप से वायु का संचार होता है तथा खरपतवार रोकने में मदद मिलती है। खरपतवार नियंत्रण हेतु रसायनों का प्रयोग करने से उपजव मुनाफे में कोई कमी नहीं आती है जैसे कि फ्लूक्लोरेलिन 0.75 किलोग्राम सक्रिय तत्व (1.75 लीटर बॉसालीन) प्रति हैक्टेयर (2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में) या पेण्डीमिथालिन 0.75 किलोग्राम सक्रिय तत्व (2.5 लीटर स्टाम्प) प्रति हेक्टेयर (3.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में) को 750 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
उपरोक्त रसायनों में से बासालीन को बुवाई पूर्व छिड़काव कर भूमि में मिला देवें एवं स्टाम्प का प्रथम सिंचाई बाद खरपतवार उगने के पूर्व छिड़काव कर देना चाहिये। छिड़काव के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिये।
कटाई: जब पौधों की पत्तियां झडऩे लगे व पीले रंग की हो जायें तो पौधों को उखाड़कर या दतारी से काटकर खेत में छोटी-छोटी ढेरियों में रखें। सूखने के बाद कूट कर दाने अलग कर लें तथा थ्रेसर से निकाल लेंं। ज्यादा पकने पर कटाई करने से बीजों के खेत में बिखरने, जबकि पूर्ण पकने से पूर्व कटाई करने से बीजों के सिकुडऩे की समस्या उत्पन्न होती है। साफ दानों को पूर्ण रूप से सुखाने के बाद बोरियों में भरें।
उपज: समुचित कृषि क्रियाओं को अपनाने से 15-20 क्विंटल बीज की प्रति हैक्टेयर पैदावार हो सकती है।
- बाघसिंह राठौड़
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