Horticulture (उद्यानिकी)

बीज किस्म ही दोषी क्यों ?

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कपास उत्पादन एवं किस्म

बीटी कपास से कपास उत्पादन में क्रांति आई है। कपास के कीट नियंत्रण मेें सरकार किसान, कीटनाशी कम्पनियां वर्ष 2001-02 या इससे पूर्व ‘किम् कत्र्तव्य विमूढ की स्थिति में आने पर भारत में खरीफ 2002 में बीटी कपास उगाने की स्वीकृति सरकार ने दी और कृषकों ने भी इस नवीनतम तकनीकी को हाथों-हाथ लिया। इस 12 वर्षों के अल्पकाल में भारत ने कपास का उत्पादन जो साधारणतया 168-170 लाख गांठें होता था वह अब 400-410 लाख गांठों तक पहुंच रहा है। यद्यपि यह कपास उत्पादन के सभी अवयवों का सम्मिलित प्रभाव है परंतु बीटी कपास का प्रभाव अधिक है। बीटी कपास से यह सम्भव हुआ। बीटी कपास उत्पादन नहीं बढ़ाती बल्कि किसान को उत्पादन बढ़ता हुआ महसूस होता है क्योंकि बीटी किस्मों में कपास के कीड़ों (हरी, चितकबरी तथा गुलाबी सुन्डी) को मारने की क्षमता होती और इन कीड़ों से कपास में होने वाली हानि नहीं होती और किसान को लगता है कि उत्पादन बढ़ रहा है।
बीटी कपास और रोग
बीटी कपास में किस्मों में केवल कीटों से रक्षा का गुण समाहित किया है परंतु रोगों के प्रति रोधक क्षमता नहीं है। कृषक वर्ग का अधिकांश भाग अशिक्षित या अर्धशिक्षित होता है। प्रसारविद् बीटी किस्मों की वास्तविकता से कृषकों का अवगत नहीं कराते कि ये किस्में केवल कीड़ों को और वे ऊपर लिखित 3 कीड़ों को नियन्त्रित करती है। बीटी कपास की किस्मों में अन्य कीट जैसे मिलीबग या मरोडिया रोग (सीएससीवी) के प्रतिरोधक क्षमता नहीं है परंतु पिछले दिनों कृषकों के दिलों-दिमाग में यह बात घर कर गई कि बीटी किस्म का बीज निम्रस्तर का है। राज्य में इसके लिए दर्जनों जगह कृषक आंदोलन चले। बड़े खेद का विषय है कि बीटी बीज उत्पादन कम्पनियां कितने करोड़ रुपए अपने बीज विक्रय प्रचार के लिए खर्च करती है परंतु इन आंदोलनों को गलत ठहराने या इन आंदोलन की भयावहता को कम करने हेतु न कोई बयान प्रिंट मीडिया और न ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आया।
देशी कपास और कीट
हरियाणा में ही नहींं बल्कि पूरे देश में बीटी कपास उत्पादन 80-95 प्रतिशत तक बढ़ा। यद्यपि बीटी कपास केवल 3 प्रकार के कीड़ों से ही रक्षा करती है परंतु कृषकों के मन मस्तिष्क में विश्वास बढ़ा है कि अब किसान कपास को कीटों तथा बीमारियों से मुक्त हो गया है। यही प्रभाव देशी कपास की बिजाई करने वाले कृषकों में पनपा है। कृषक अधिक ध्यान नरमा की ओर देता है और देशी कपास द्वितीय स्तर में आती है। पिछले वर्ष देशी कपास के खेतों में कृषि विश्वविद्यालयों एवं निजी संस्थाओं की बढिय़ा अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों में कीट प्रबंधन सही और समय पर न होने के कारण खेत खाली रह गये और उत्पादन नहीं आया तथा किसान का ध्यान अंतत: किस्म पर टिका और किस्म को ही दोषी ठहराया। पुन: प्रश्र उठता है कीट नियंत्रण उचित समय पर न होने पर किस्म ही दोषी क्यों?
वास्तव में पिछले वर्ष देशी कपास में कीड़ा आया। कृषक का ध्यान नरमा की तरफ होता है अत: कीड़ा ध्यान में नहीं आया। यद्यपि वे रसचूसक कीटों के लिए लगातार कान्फीडोर, इकटारा, ऐसीटामिप्रिड का स्प्रे करते रहे और इन रसायनों का प्रभाव कीड़ों पर न होने के कारण नुकसान होता रहा और अंतत: खेत खाली रह गए।
धान में और खासतौर से बासमती धान में बकानी/ झण्डा रोग आता है। बकानी या स्टेम रॉट के लिए बीज उपचार आवश्यक है यदि कृषक बीज उपचार करके नहीं बीजता तो बकानी रोग के कारण 12 प्रतिशत तक पौधे किस्म की सामान्य ऊंचाई से 6 ईंच तक अधिक हो जाते हैं और इसका दोष भी किस्म को दिया जाता है।
पिछले वर्ष धान की बासमती किस्म पीपीबी 1509 जो अन्य बासमती किस्मों में सबसे कम समय में तैयार होती है, के बारे में शैलर मालिकों ने भ्रामक प्रचार किया कि किस्म 1509 न होकर के यह किस्म 1709 है। जबकि ऐसी कोई किस्म नहीं है। अत: 1509 किस्म को भ्रामक प्रचार कर फेल करने का किया। इस शैलरों के पास किस्म 1709 बताने का कोई आधार भी नहीं है। इस प्रकार के गलत प्रचार के लिए किस्म ही दोषी क्यों?

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