Horticulture (उद्यानिकी)

प्रमुख सब्जियों में रोगों एवं कीटों का समेकित प्रबंधन

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  • मेघना सिंह राजोतिया
    चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार

 

17 मई 2023, प्रमुख सब्जियों में रोगों एवं कीटों का समेकित प्रबंधन – कद्दूवर्गीय सब्जियाँ बहुत महत्वपूर्ण और सब्जियों का एक बड़ा समूह है, जिसमें लौकी, कद्दू, तोरई, करेला, टिण्डा, खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूज आदि सब्जियां शामिल हैं। इन फसलों की बड़े पैमाने पर पूरे भारत में खेती की जाती है। ये बहुत ही लोकप्रिय और अत्यधिक लाभकारी सब्जियाँ हैं। जिनकी खेती ज्यादातर गर्मियों तथा खरीफ मौसम में की जाती है। भारत में कद्दूवर्गीय सब्जियों का हिस्सा कुल सब्जी उत्पादन का 5-6 प्रतिशत तथा उत्पादकता लगभग 40 टन प्रति हेक्टेयर है, जो दूसरे देशों की तुलना में काफी कम है, मौसम या बेमौसम की गई खेती के कारण, विभिन्न नाशीजीवों से 20 से 25 प्रतिशत तक का आर्थिक नुकसान होता है। सालभर के विभिन्न ऋतु के दौरान की गयी कहद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती के कारण, कीटों, रोगों और सूत्रकृमियों को स्थायित्व तथा संख्या वृद्धि के लिए सतत् और प्रचुर मात्रा में भोजन की आपूर्ति हो जाती है। नाशीजीवों के कारण हुए नुकसान को कम करने के लिए किसान रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग पर अत्यधिक निर्भर हो रहे हैं रसायनों पर अत्यधिक निर्भरता के परिणामस्वरूप प्रतिरोधकता, पुनरुत्थान, पर्यावरण प्रदूषण की समस्याओं के अतिरिक्त, किसानों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव देखे जा रहे हैं। जो नाशीजीवों तथा मित्र कीटों के बीच समन्वय को प्रभावित करता है।

कद्दूवर्गीय प्रमुख रोग

जड़ सडऩ- जो कि राईजोक्टोनिया सोलेनाई की वजह से होता है, जमीन के ऊपर तथा नीचे थोड़ा धंसा घाव होता है, भूमि के स्तर से ऊपर कम शक्ति, छोटे और विल्ट वाले पौधे होते हंै।

मृदुल आसिता- यह गंभीर रोगों में से एक है, जिसकी शुरूआत में पत्ती पर पानी से भीगे कोणीय धब्बे, उच्च आर्द्रता तथा मध्यम तापमान की अवस्था में बनते हैं और जल्दी ही पत्ती हरितहीन हो जाती हैं व अंतत: पत्ती की निचली सतह बैंगनी रंग में बदल जाती है।

चूर्णिल आसिता– पत्तियों, तनों तथा लताओं पर सफेद पावडर जैसी फफूँद विकसित हो जाना इसका मुख्य लक्षण है। यह रोग लगभग सभी कद्दूवर्गीय सब्जियों में पाया जाता है और जिसके कारण काफी हानि होती है। प्रभावित पत्तियां मुरझा कर सूख जाती हैं। चूर्णित आसिता फलों की गुणवत्ता को प्रभावित करती है तथा फल का आकार और संख्या कम होने से पैदावार में कमी आ जाती है।

विषाणु- यह बेगोमो विषाणु सफेद मक्खी द्वारा फैलता है। जो कहूवर्गीय सब्जियों के लिए प्रबल अवरोध है। जिसके कारण पत्ती मोडक़, पीला मोजेक तथा स्टनटिंग जैसे रोग विकसित होते हैं। ककड़ी मोजेक का प्ररूपी लक्षण मोजेक कोमल पत्तियों पर प्रकट होता है। जिसमे पत्तियों पर एकांतर में गहरे हरे रंग के साथ हल्के हरे रंग के धब्बे होते हैं।

मूल ग्रंथी सूत्रकृमि- कद्दूवर्गीय सब्जियों में सूत्रकृमि ग्रसित पौधों की जड़ों में ग्रंथियाँ बन जाती हैं। जो की जड़ गांठ या गाल के नाम से जानी जाती हैं। जिसके कारण पत्तियों में पीलापन, पत्तों का झडऩा, अपरिपक्वता, मुरझान तथा पौधों का बौनापन इत्यादि लक्षण दिखाई देते हैं। सूत्रकृमि संक्रमित पौधों की पत्तियां छोटी रह जाती हैं और फूल कम होते हैं।

कद्दूवर्गीय प्रमुख कीट

रेड पम्पकिन बीटल (कद्दू का लाल कीड़ा) – यह लौकी का प्रमुख कीट है और कद्दू, ककड़ी तथा तरबूज को भी प्रभावित करता है। यह पत्ते, फूलों की कलियों और फूलों को लगातार खाती है। अंकुरण के समय में इसके द्वारा हुआ नुकसान 75 प्रतिशत तक पहुँच सकता है। मृदा में उपस्थित भृंग, जड़ों तथा भूमिगत तनों को खाते हैं, जबकि वयस्क बीजपत्र व पत्तों को खाते हैं। जिससे पौधों का विकास रूक जाता है तथा अंतत पौधे मर जाते हैं। भृंग दुधिया सफेद, जबकि वयस्क चमकीले नारंगी लाल होते हैं।

पर्ण सुरंगक– वयस्क पीले रंग के होते हैं, जबकि लार्वा सूक्ष्म, बिना पैर के व नारंगी पीले रंग के होते हैं, ये पत्तियों की सुरंगों में प्यूपा बनाते हैं। लार्वा पत्तियों में सांप के आकार की सुरंगें बनाकर अंदर से खाते रहते हैं। इनका अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं।

फल मक्खी- यह मक्खी हर जगह पाई जाती हैं एवं जुलाई से सितंबर माह के दौरान अधिक सक्रिय रहती है। यह सभी कद्दूवर्गीय फसलों विशेषकर करेला तथा तरबूज को हानि पहुंचाती है। गर्भित मादा सफेद, सिगार के आकार के अंडे, कोमल, नरम फलों में 2 से 4 मिलीमीटर अंदर देती है। नवजात शिशु फलों को अंदर से खा जाते हैं एवं गैलरी बनाते हैं, जिस कारण फल सड़ जाते हैं सफेद मक्खी-यह करेला तथा लौकी का प्रमुख कीट है। सुंडी व वयस्क दोनों, पौधों का रस मुख्य रूप से पत्तियों के निचले भाग से चूसते हैं तथा मधुरस स्रावित करते हैं। जिससे पत्तियों के ऊपर काली फफूंद विकसित हो जाती है, जिसके कारण पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कम हो जाती है। उनके भक्षण द्वारा हुए प्रत्यक्ष नुकसान के अलावा ये वायरल रोगों के वाहक के रूप में भी काम करते हैं।

कद्दूवर्गीय सब्जियों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन के उपाय
  • ट्राईकोडर्मा के सक्षम स्ट्रेन से 40 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करें तथा मृदा उपचार के लिए अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ 25 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिलाएं।
  • फसल की प्रारम्भिक अवस्था में हड्डा बीटल, लौकी के लाल पम्पकिन बीटल के लिए नीम 300 पीपीएम का 40 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से करेले पर 2 से 3 छिडक़ाव करें।
  • लौकी तथा ककड़ी की प्रारम्भिक अवस्था में लाल पम्पकिन बीटल के प्रबंधन के लिए डीडीवीपी- 76 ई. सी. का 500 ग्राम सतत प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता अनुसार छिडक़ाव करें।
  • करेले के ककड़ी मोथ से सुरक्षा के लिए बेसिलस थुजान्सेस 2 डब्ल्यू पी का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से 2 छिडक़ाव करें।
  • करेले में ककड़ी मोथ से सुरक्षा के लिए कलोरएन्ट्रानिलिप्रोल 485 एस सी का 20 से 25 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता अनुसार छिडक़ाव करें।
  • फल मक्खी के वृहद क्षेत्र में नियंत्रण के लिए ल्योर टैप 40 प्रति एकड़ की दर से स्थापित करें। प्लाईवुड के छोटे टुकड़े को इथनोल + क्यूल्योर + कीटनाशी (डीडीवीपी) 82 के अनुपात के घोल में 48 घंटे तक डुबोयें।
  • कद्दूवर्गीय सब्जियों में फल मक्खी के प्युपे को धूप के संपर्क में लाने के लिए मिट्टी की निराई-गुड़ाई करें।
  • कद्दूवर्गीय सब्जियों में फल मक्खी के प्रबंधन के लिए पीले रंग के चिपचिपे ट्रैप को 40 प्रति एकड़ की दर से स्थापित करें।
  • कद्दूवर्गीय सब्जियों में समय पर फल मक्खी से संक्रमित फलों को एकत्रित कर के नष्ट करें।
  • चूर्णिल असिता, पत्ती धब्बा तथा एन्थ्रेक्नोज के नियंत्रण के लिए मेन्कोजेब 75 डब्ल्यूपी या जिनेब 75 डब्ल्यूपी का 0.2 प्रतिशत की दर से सुरक्षात्मक छिडक़ाव करें।
  • मृदुल आसिता तथा नमी में कमी लाने और हवा के आसान आवागमन के लिए ककड़ी को बांस के सहारे या ग्रीन हाऊस में लगाएं।
  • सफेद मक्खी तथा थ्रिप्स के लिए क्रमश: डेल्टा और नीले रंग के टैप 5 प्रति एकड़ प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें। इसके बाद नीम का छिडक़ाव किया जा सकता है।
  • कद्दूवर्गीय सब्जियों में किसी भी रासायनिक कीटनाशक का छिडक़ाव करने से पहले, सभी परिपक्व फल काट लेने चाहिए।
  • सूत्रकृमि प्रबंधन के लिए नीम खली का 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता अनुसार प्रयोग करें।
  • ककड़ी में मृदुल आसिता की रोकथाम के लिए साइमोक्सनिल 8 प्रतिशत + मेन्कोजेब 64 प्रतिशत का 0.3 प्रतिशत और घेरकीन में फेनामिदोने 40 प्रतिशत + मेंकोजेब 50 डब्ल्यू जी 0.3 प्रतिशत।
  • चूर्णिल असिता के प्रबंधन के लिए कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 0.2 प्रतिशत तथा एन्थे्रक्नोज के नियंत्रण के लिए थायोफिनेट मिथाईल 70 डब्ल्यू पी का 4430 ग्राम प्रति 900 लीटर पानी की दर से आवश्यकता अनुसार छिडक़ाव करें।
  • मिट्टी में बोरोन की कमी दूर करने के लिए 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोरेक्स का प्रयोग करें या बोरेक्स का 400 ग्राम प्रति 490 लीटर पानी की दर से पर्ण छिडक़ाव भी किया जा सकता है।
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