फसल की खेती (Crop Cultivation)उद्यानिकी (Horticulture)

आलू फसल का क्षेत्र दोगुना हुआ

मप्र में आलू उत्पादन की उन्नत तकनीकी

  • डॉ. शिखा शर्मा द्य भारती चौधरी
  • संध्या बाकोडे , डॉ. वी. के पराडक़र
    आंचलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र,
    चंदनगांव, छिंदवाड़ा
    जवाहरलाल नेहरू कृषि विवि, जबलपुर

 

28 सितम्बर 2022, आलू फसल का क्षेत्र दोगुना हुआ – मप्र में आलू फसल सब्जी के रूप में उगाई जाने वाली एक मुख्य फसल है। अन्य फसलों जैसे- गेहंू, धान एवं मक्का फसलों की तुलना में आलू में अधिक शुष्क पदार्थ खाद्य प्रोटीन एवं मिनरल (खनिज) पाये जाते हैं यह फसल अल्पावधि वाली होने के कारण मिश्रित खेती के लिए लाभदायक है। अत: इसकी व्यापारिक खेती की जाती है।

म.प्र. में उच्च भौगोलिक विविधता है। कुल 9 कृषि जलवायु क्षेत्र हैं। विभिन्न प्रकार की सब्जियों के उत्पादन के लिये यहां की मृदा बहुत अच्छी है। राज्य में आलू की फसल का क्षेत्रफल 62000 हे. (2010) से लगभग दोगुणा से अधिक बढक़र 136290 हे. (2018) हो गया है। फलस्वरूप मध्यप्रदेश आलू उत्पादन की दृष्टि से पांचवे स्थान पर है। विगत 5 वर्षो में छिन्दवाड़ा में आलू का क्षेत्रफल 6800 हे. से बढक़र 9800 हे. हो चुका है वहीं उत्पादन की दृष्टि से आलू का उत्पादन 16 प्रतिशत बढ़ा है जो कि 170000 टन से बढक़र 197000 टन पहुंच चुका है। आलू की उत्पादकता में इसका योगदान 6.48 प्रतिशत का है। मप्र में मुख्यत: आलू उत्पादकता (25 टन/हे.) की दृष्टि में छिन्दवाड़ा का अग्रिम स्थान है तथा इंदौर, देवास, शाजापुर, उज्जैन एवं सागर में आलू की फसल प्रमुखता से ली जाती है।

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म.प्र. में आलू की बीज प्रणाली : औपचारिक बीज प्रणाली

म.प्र. में औपचारिक बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा बीज की अनुवांशिक एवं शुद्धता का निर्वारण किया जाता है। आधार बीज एवं प्रामणित बीज का उत्पादन कृषि विश्वविद्यालयों, फार्मों से स्टेट कार्पोरशन ऑफ इंडिया, नेशनल सीड कार्पोरशन, स्टेट सीड कार्पोरशन, स्टेट एग्रीकल्चर एवं हार्टिकल्चर डिपार्टमेंट के द्वारा किया जाता है।

अनौपचारिक बीज प्रणाली

इस पद्धति में किसान आधार बीज एवं प्रमाणित बीज को अधिकृत व्यक्तियों से एकत्रित करके लगाता है। यह बीज का उपयोग किसान स्वयं के लिए दो से तीन साल तक बीज उत्पादन के लिए करता है। इसके अलावा बीज की प्राप्ति राज्य के द्वारा पड़ोसी राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि जगहों से अधिक मात्रा में बीज की आधार पर किया जाता है।

बुआई समय

म.प्र. के विभिन्न जिलों जैसे छिंदवाड़ा देवास, धार एवं शाजापुर जो कि सिंचित क्षेत्र के अंतर्गत आते हंै। यहां आलू की बुआई सितम्बर से नंवम्बर में की जाती है। इस फसल को अगेती फसल के रूप में इसे मुख्य फसल के रूप में लगाकर पूर्ण खुदाई करके इसका परिवहन तथा शीत भंडारण किया जा सकता है।

म.प्र. में कृषि जलवायु क्षेत्र

म.प्र. में आलू क्षेत्र पश्चिम मध्य मैदानों एवं उत्तर पूर्वी मैदानों के अंतर्गत आता है। जनवरी-फरवरी में जब तापमान कम रहता है तथा दिन छोटे होता है तब आलू की फसल 60 से 120 दिनों की होती है इस क्षेत्र में सामान्य आलू फसल रोगों से मुक्त होती है।

बुआई विधि

आलू को पौध से पौध 20 सेमी तथा पंक्ति से पंक्ति 60 सेमी की दूरी से लगाया जाता है। 25 से 30 ग्राम का कंद लगाया जाता है। बुआई के लिए अच्छी अंकुरण का बीज 30-35 क्वि./हे. के हिसाब से बीज लगता है तथा मिट्टी की ढकाई ट्रैक्टर से की जाती है बहुत से किसानों के यहां मिट्टी ढकाई डोरा से की जाती है।

उर्वरक

उर्वरक की मात्रा मृदा की उर्वरकता पर निर्भर करती है। इस क्षेत्र की मृदा नत्रजन उर्वरक के लिए अधिक प्रति किया है। आलू की फसल के लिए उर्वरक 100,100,100 एनपीके कि./हे. एवं 20 टन/हे. अच्छी तरह से सड़ी गोबर खाद (एफवायएम) आलू लगाने के पहले खेत में डाले। बुआई के 25-30 दिन बाद मिट्टी चढ़ाते समय 20 किग्रा नत्रजन/ हे. टॉप ड्रेसिंग के रूप में दें। सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिडक़ाव करने से आलू की उपज 15-18 प्रतिशत तक वृद्धि होती है।

सिंचाई

सिंचाई की संख्या मृदा के प्रकार पर निर्भर करती है यदि बुआई के पहले सिंचाई नहीं की गयी है तो बुआई के तुरंत बाद पानी देना आवश्यक है। पहली सिंचाई हल्की हो तथा दूसरी सिंचाई के एक हफ्ते के अंतराल में करें तथा इसके बाद 7-10 दिनों के अंतराल पर आवश्यकता के आधार पर सिंचाई करें। आलू की खुदाई के 10 से 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें। समान्यत: 7-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। सिंचाई के लिए नाली पद्धति तथा स्प्रिंकलर ड्रिप विधि से सिंचाई की जाती है।

खरपतवार नियंत्रण

आलू के 5 प्रतिशत अंकुरण होने पर पैराक्वाट (प्रेमेजोन) 2.5 लीटर पानी हेक्टेयर की दर से छिडक़ाव करें एवं जब फसल 30 दिन की अवस्था की हो तब 20 किग्रा नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से डालकर मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें तत्पश्चात सिंचाई करें।

भण्डारण

भारत में आलू की खुदाई फरवरी से मार्च में करते हंै। म.प्र. (इंदौर,गेगेटिक,प्लेम्स) में जब तापमान बढऩे लगता है तब इसे भण्डारण किया जाता है। म.प्र. में आलू का भण्डारण दो प्रकार से किया जाता है।

रेफ्रिजरेटेड : आलू की खुदाई फरवरी में करते हंै तथा इसका भण्डारण अक्टूबर तक रहता है। चंूकि लंबे समय तक भण्डारण किया जाता है इसलिए इसका रेफ्रिजरेटेड आवश्यक होता है। कम तापमान में भण्डारण इस क्षेत्र के आलू भण्डारण की सामान्य विधि है। यह एक प्रभावी विधि है। इस विधि के द्वारा आलू में अंकुरण एवं मेटावॉलिक (जैव रसायनिक) किया जाता है। इस प्रकार भण्डारण आलू के लिये लाभदायक है। शीत भण्डारण की कुल क्षमता 7 लाख टन से ज्यादा होती है। जिसमें 50 प्रतिशत सिर्फ आलू के लिये उपयोग की जाती है।

नान रेफ्रिजरेटेड भण्डारण और परंपरागत भण्डारण: किसानों द्वारा विभिन्न प्रकार की भण्डारण की विधि उपयोग में लायी जाती है। कम मात्रा में लगभग 15-20 आलू के भण्डारण 65-70 दिन के लिये किसान आलू को छोटे-छोटे गड्ढे बनाकर उनमें ढेर लगाकर रखते हंै। यह विधि सबसे सस्ती है।

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