राज्य कृषि समाचार (State News)फसल की खेती (Crop Cultivation)

पशुओं का प्रिय भोजन बनी पराली, बालाघाट ने दिखाया सही तरीका

20 नवंबर 2024, भोपाल: पशुओं का प्रिय भोजन बनी पराली, बालाघाट ने दिखाया सही तरीका – मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले ने पराली जलाने की घटनाओं पर रोक लगाकर एक अनुकरणीय मिसाल पेश की है। यहां के किसान परंपरागत कृषि शैली को अपनाते हुए धान की फसल के अवशेष (पराली) को जलाने की बजाय पशुओं के चारे के रूप में उपयोग कर रहे हैं। यह न केवल पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे रहा है बल्कि पशुपालन को भी बढ़ावा दे रहा है।

कृषि अभियांत्रिकी विभाग भोपाल द्वारा जारी सैटेलाइट डेटा के अनुसार, 15 सितंबर से 14 नवंबर 2024 के बीच मध्यप्रदेश में पराली जलाने की 8917 घटनाएं दर्ज की गई हैं। इनमें से सबसे कम घटनाएं बालाघाट जिले में हुईं। 15 नवंबर को बालाघाट में केवल एक घटना दर्ज की गई, जबकि श्योपुर में 489 और जबलपुर में 275 घटनाएं सामने आईं। बालाघाट के किसानों ने पराली जलाने के बजाय इसे उपयोगी संसाधन के रूप में अपनाकर अन्य जिलों को प्रेरणा दी है।

पराली जलाने के बजाय पशुओं का चारा बना रहे किसान

बालाघाट के उप संचालक कृषि श्री राजेश खोब्रागड़े ने बताया कि जिले के किसान धान कटाई के बाद बचे अवशेषों को जलाने की बजाय पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं। कटाई के बाद बचे धान के खूंट (पराली) को खेतों में ही छोड़ दिया जाता है या फिर काटकर रोल के रूप में संग्रहित किया जाता है। इससे न केवल चारे की कमी पूरी होती है, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचता।

बालाघाट जिले में खरीफ सीजन में 2.6 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में धान की फसल उगाई जाती है। यह प्रदेश का एकमात्र ऐसा जिला है, जहां रबी सीजन में भी 30 हजार हेक्टेयर में धान की खेती होती है। इस वर्ष जिले में धान कटाई का 60-70% कार्य रिपर मशीनों से हुआ, जबकि 10-20% कटाई हाथों से की गई।

पराली का उपयोग: चारे से लेकर खाद तक

यहां के किसान पराली का उपयोग पशुओं के चारे के अलावा खाद बनाने, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और ऊर्जा उत्पादन जैसे कई कार्यों में करते हैं। पराली में मौजूद उच्च गुणवत्ता का फाइबर और पोषक तत्व इसे पशुओं के लिए एक आदर्श भोजन बनाते हैं।

बालाघाट में पराली पशुओं के भोजन का प्रमुख हिस्सा है। 20वीं पशु संगणना (2018-19) के अनुसार, जिले में 11.27 लाख से अधिक पशु हैं, जो इसे प्रदेश के शीर्ष पशुपालन जिलों में शामिल करते हैं। ताजा और हरी पराली पशुओं को विशेष रूप से पसंद आती है।

पराली प्रबंधन से पर्यावरण को राहत

बालाघाट के किसानों ने पराली जलाने की परंपरा को छोड़कर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अहम कदम उठाया है। यह पहल न केवल वायु प्रदूषण को कम कर रही है बल्कि पशुपालन को भी आर्थिक रूप से लाभकारी बना रही है।

बालाघाट का यह मॉडल अन्य जिलों और राज्यों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। सही प्रबंधन और जागरूकता के माध्यम से पराली जलाने की घटनाओं को कम किया जा सकता है, जिससे पर्यावरण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था दोनों को लाभ पहुंचेगा।

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