चारा उत्पादन पर तकनीकी सलाह
कृषि विज्ञान केन्द्र, पन्ना के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी.एस. किरार एवं डॉ. आर.के. जायसवाल वैज्ञानिक द्वारा ग्राम मनौर मेहरा चारा उत्पादक कृषक संतोष यादव के खेत पर जाकर रिजिका बाजरी हरे चाले वाली फसल के विपुल उत्पादन पर तकनीकी जानाकरी दी गयी। कृषक खेत की जुताई कर बुवाई हेतु लम्बी क्यारियाँ बनाकर उनमें उर्वरक डी.ए.पी. एवं यूरिया छिड़क देता है उसके बाद बीज बोकर सिंचाई कर देता है। कृषक को डॉ. बी.एस. किरार ने बताया कि इस प्रकार बुवाई करने से डी.ए.पी. और यूरिया व्यर्थ जाता है फसल को कोई लाभ नहीं मिलता है और छिड़क कर बोने से बीज अधिक मात्रा में लगता है। इसलिये डी.ए.पी. 50-60 कि.ग्रा. और म्यूरेट ऑफ पोटाश 10-12 कि.ग्रा. प्रति एकड़ बुवाई से पहले अंतिम जुताई के समय खेत में छिड़क कर मिला देना चाहिए और बीज नारी हल से कतार से कतार की दूरी 25-30 से.मी. की दूरी पर बुवाई करना चाहिए और यूरिया 20 कि.ग्रा. प्रति एकड़ फसल बुवाई के 10-12 दिन बाद छिड़काव करें। इस चारे की प्रथम कटाई 25 दिन बाद शुरू हो जाती है। प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई करने के दूसरे दिन फसल में 20-25 कि.ग्रा. प्रति एकड़ यूरिया का छिड़काव करना चाहिए। इस प्रकार कृषक एक मौसम में 5-6 कटाई कर पशुओं को खिलाकर गर्मी में अच्छा दुग्धोत्पादन ले सकता है और बाजार के पशु आहार पर होने वाले व्यय को कम कर सकते हैं। संतोष यादव, कृषक के घर में हरा चारा काटने हेतु चाँप कटर मशीन (हाथ से चारा काटने वाली) लगी हुयी है जिससे चारा को कुट्टी बनाकर गेहूँ को भूसा में मिलाकर दाना खली मिलाकर सानी बनाकर खिलाया जाता है। जिससे पशुओं के दुग्धोत्पादन में वृद्धि होती है साथ ही उसका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। हमारे अन्य पशुपालकों को भी यह सलाह दी जाती है कि जिनके पास सिंचाई के साधन हो तो वे कृषक भी संतोष यादव की तरह वर्षभर हरा चारा का उत्पादन कर दुग्धोत्पादन को लाभ का व्यवसाय बना सकते हैं।
चारा अभाव के समय पशुओं का आहार