समस्या – समाधान
समस्या- मैं सब्जी के लिए राजमा की खेती करना चाहता हूं, कृपया मार्गदर्शन दें।
– हेमराज खत्री, गैरतगंज
समाधान- इसके लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है।
1. बोनी के लिए अगस्त-सितम्बर या जनवरी-फरवरी उपयुक्त समय है। 15 से 25 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त तामक्रम।
2. मुख्य किस्में अर्का कोमल, अर्का सुविधा, कोनटेनडर, पंत अनुपमा, पूसा पार्वती, पूसा हिमलता।
3. भूमि का उपयुक्त पीएच 5.5 से 6.0
4. खाद 20-25 टन गोबर की खाद, 25 किलो नत्रजन, 75 किलो फास्फोरस तथा 75 किलो पोटाश बुआई के पूर्व तथा 25 किलो नत्रजन बुआई के एक माह बाद।
5. 80-90 किलो बीज प्रति हेक्टर।
6. लाईन से लाईन की दूरी 40 से 60 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 से.मी.
7. मेड़ बनाकर मेड़ के किनारों में बीज लगायें।
समस्या- मैं जीरे की फसल लेना चाहता हूं उचित सलाह देने की कृपा करें।
– रामसुख पाटीदार, जावरा
समाधान- अच्छे जल निकास वाली भूमि का चुनाव करें।
1. बुआई के पूर्व 5-10 टन अच्छी सड़ी गोबर की खाद अंतिम जुताई के समय भूमि में मिला दें।
2. आर.एस. 1, गुजरात जीरा-1, आर.जेड.-19, एम.सी. 43, बीजापुर 2-5 में से जाति का चुनाव करें।
3. बुआई के पूर्व बीज को इन्डोल-3 एसिटिक अम्ल के 100 पीपीए घोल से उपचारित करें, फिर थायरम से (2 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें।
4. बुआई के पूर्व 30 किलो नत्रजन, 45 किलो फास्फोरस तथा 30 किलो पोटाश प्रति हेक्टर के मान से खेत में मिला दें।
5. बीमारियों व कीटों के लिए फसल की निगरानी रखेंं तथा प्रबंधन के उपाय अपनायें।
समस्या- कलौंजी की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी उपयुक्त रहती है। इसकी खेती में किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।
– रमेश सोनकर, बड़वानी
समाधान- कलौंजी की खेती सभी प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है। परन्तु दोमट या काली मिट्टी जिसमें पानी सोखने की क्षमता अधिक रहती है इसकी खेती के लिए उपयुक्त रहती है।
इसकी खेती आप यदि पहली बार कर रहे हों तो निम्न बातों का ध्यान रखें।
1. खेत की अच्छी तरह तैयार कर समतल कर लें।
2. जहां तक सम्भव हो बोनी अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में कर लें।
3. एक हेक्टर में 5-7 किलो बीज लगेगा। बीज को 1 ग्राम बाविस्टीन प्रति किलो बीज मान से उपचारित करें।
4. बीज को 8-10 किलो गोबर की छनी खाद में मिलाकर बोनी करें ताकि बीज समान रूप से खेत में गिरे।
5. कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 से.मी. रखेंं।
6. एक हेक्टर में 60 किलो यूरिया, 150 किलो सिंगल सुपर फास्फेट तथा 30 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश बोनी के पूर्व मिट्टी में मिला दें।
7. उन्नत जातियों में एन.एस.-44, एन.एस.-48 में से कोई एक लें।
8. शाखा निकलते समय तथा फूल आते समय सिंचाई दें।
समस्या- क्या हमारे यहां जई की खेती हो सकती है? आवश्यक सलाह दें।
– भाऊलाल सिंह, खुरई, जिला- सागर
समाधान- आपके क्षेत्र में भी जई की फसल उगाई जा सकती है। इसकी खेती गेहूं की खेती की तरह की जाती है। पहले इसे चारा फसल के रूप में ही लिया जाता था परन्तु अब अनाज की फसल के रूप में लिया जा रहा है। क्योंकि इसके दानों में कम कैलोरी तथा उच्च प्रोटीन व रेसा (फायबर) रहता है तथा स्वास्थ्य के लिए कई गुण पाये जाते हैं।
खेती के लिए आवश्यक बातें-
1. यदि उपजाऊ दोमट मिट्टी जिसमें पानी का निकास अच्छा हो पीएच मान 50-60 हो तो अति उत्तम।
2. खेत गेहूं की तरह तैयार कर लें। बीज दर 70-80 किलो प्रति हेक्टर रखें।
3. इसको 45 किलो नत्रजन, 20-25 किलो फास्फोरस की आवश्यकता होती है। भूमि में यदि पोटाश कम है तो 20 किलो पोटाश भी दें।
4. 20 दिन के अन्तराल से सिंचाई करें।
5. प्रमुख जातियां बु्रनकर-10, एन.पी. 2, वेस्टन-11, बुन्देल जई- 822, हरिता (आरओ-19), सवजार, हरियान जई-8, बुन्देल जई 2001-3
समस्या- मैंने 200 संतरे के पौधे 4-5 दिन पूर्व लगाये हैं। इनको स्वस्थ रखने के लिए कौन-कौन सी दवा का स्प्रे किया जाय।
– प्रकाशचन्द माली
मालीपुरा, महिदपुर, जिला- उज्जैन
समाधान- संतरे की फसल में कीट व रोगों के प्रकोप पर निगरानी रखना बहुत आवश्यक है। इसमें लगने वाले कीटों में काली मक्खी, सिल्ला, पत्तों का सुरंग कीट, छाल खाने वाली इल्ली मिली बग, माहू, थ्रिप्स, फलों की मक्खी प्रमुख हैं। इसमें माइट का प्रकोप भी होता है। बीमारियों में टहनियों का झुलसना, गोंद निकलना, जड़ तथा तने का जमीन के पास गलना है। आप प्रत्येक पौधे की निगरानी रखते रहिए किसी कीट या बीमारी का प्रकोप आरंभ होने पर ही रसायनिक नियंत्रण के उपाय समस्या देखकर ही अपनायें। बिना समस्या को देखे पीढ़कनाशकों का उपयोग न करें। समस्या आने पर उसके लक्षण बताते हुए पुन: पत्राचार करें।