खजूर की खेती से पोकरण के किसानों की बदली किस्मत, सालाना कमा रहे 27 लाख रुपए
29 जुलाई 2025, भोपाल: खजूर की खेती से पोकरण के किसानों की बदली किस्मत, सालाना कमा रहे 27 लाख रुपए – एक समय था जब पोकरण के किसान केवल खरीफ की बारानी फसलों पर निर्भर रहते थे। रेतीली जमीन, पानी की कमी और अत्यधिक गर्मी के कारण खेती करना बेहद मुश्किल था। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। आज जैसलमेर के किसान उन्नत तकनीकों की मदद से खेती में नए आयाम स्थापित कर रहे हैं।
रेत में खजूर की खेती से मुनाफे की बगिया
जिले में अब किसान खजूर की खेती में नवाचार अपनाकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। यहां का मौसम , चाहे 50 डिग्री सेल्सियस हो या 1 डिग्री खजूर की खेती के लिए अनुकूल है। बंजर जमीन और कम गुणवत्ता वाले पानी में भी खजूर की खेती संभव है। इसी कारण अब जैसलमेर जिला खजूर उत्पादन के लिए अन्य राज्यों के किसानों की पहली पसंद बनता जा रहा है।

गुजरात से आए दो किसान, बनाई नई पहचान
गुजरात के किसान अनिल संतानी और दिलीप गोयल ने खजूर की खेती से प्रेरित होकर जैसलमेर के पोकरण तहसील के लोहटा गांव में साल 2012 में खजूर की खेती शुरू की। उन्होंने खुनेजी, बरही और खलास जैसी उन्नत किस्मों के 1500 पौधे लगाए।
नवाचार से बढ़ी आमदनी
शुरुआत में करीब 1300 पौधों से प्रति पौधा 30-40 किलो उपज मिली। जब उन्होंने इसे 40-50 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा, तो कुल सालाना 12 लाख रुपये की आय हुई। लेकिन इस कमाई से लागत भी नहीं निकल रही थी।
केवीके पोकरण से जुड़कर मिली सफलता
वर्ष 2018 में ये किसान कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), पोकरण से जुड़े। उन्होंने प्रशिक्षण कार्यक्रमों और वैज्ञानिकों की सलाह से खजूर का प्रसंस्करण, ग्रेडिंग, पैकेजिंग और मूल्य संवर्धन सीखा। इसके बाद उन्होंने खजूर को डोका अवस्था में न बेचकर पिंड के रूप में बेचना शुरू किया।
इस नवाचार से उनकी सालाना आय बढ़कर 23 लाख रुपये हो गई। साथ ही वे हर साल 1500 रुपये प्रति सकर्स के हिसाब से पौधों की सेपलिंग बेचकर 3 से 4 लाख रुपये की अतिरिक्त कमाई भी कर रहे हैं।
देश-विदेश तक पहुंचा ‘हेवन वेली’ ब्रांड
आज उनके खजूर ‘हेवन वेली’ नाम से ब्रांड बन चुके हैं। न केवल राजस्थान बल्कि देश-विदेश से भी इनके खजूर की मांग हो रही है। वे एफएसएसएआई के सभी मानकों का पालन करते हैं, जिससे गुणवत्ता बनी रहती है। स्वाद और पोषण के कारण ये खजूर अब अरब देशों से आने वाले खजूरों को भी टक्कर दे रहे हैं।
खेत पर लगाए 200 और पौधे
किसान अनिल संतानी ने बताया कि अच्छी कीमत मिलने से उन्होंने अपने खेत पर 200 और खजूर के पौधे लगाए हैं। इन पौधों को शुरू में मेहनत और देखभाल की ज़रूरत होती है, लेकिन एक बार तैयार हो जाएं तो ये पौधे लगभग 100 साल तक फल देते हैं और किसानों के लिए स्थायी आय का स्रोत बन जाते हैं।
जैसलमेर का वातावरण बना वरदान
यहाँ का शुष्क वातावरण, कम कीट रोग और लंबे समय तक फल देने की क्षमता के कारण अब ज्यादा से ज्यादा किसान खजूर की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। अनिल संतानी और दिलीप गोयल न सिर्फ खुद मुनाफा कमा रहे हैं बल्कि अपने फार्म पर 10 से ज्यादा लोगों को सालभर रोजगार भी दे रहे हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र की भूमिका अहम
केवीके पोकरण के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. दशरथ प्रसाद ने बताया कि केंद्र द्वारा आयोजित प्रशिक्षणों और प्रसार कार्यक्रमों का सीधा असर अब किसानों की आय पर दिख रहा है। खजूर की प्रोसेसिंग, मूल्य संवर्धन और ऑनलाइन मार्केटिंग जैसे नवाचारों को अपनाकर किसानों ने नई राह बनाई है।
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