Editorial (संपादकीय)

हरे चारे का साइलेज एवं ‘हे’ द्वारा संरक्षित, पूरे साल मिलेगा हरा चारा

Share

– डॉ. शंकर लाल गोलाड़ा

– डॉ. जी.एल. शर्मा
– डॉ. राजेन्द्र सिंह गढवाल

Email : slagro_1967@yahoo.co.in,
Mob:08890035360

साइलेज आचार बनाया हुआ हरा चारा है जो स्वादिष्ट तथा सुपाच्य होता है। हरे चारे को संरक्षित करके अधिक लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। मानसून शुरू होने पहले एवं मानसून के बाद अर्थात् मई-जून तथा नवम्बर-दिसम्बर तथा फरवरी-मार्च के महीनों में हरे चारे का उत्पादन जरूरत से ज्यादा होता है। इन फालतू चारों का हे अथवा साइलेज बनाकर भंडारण किया जा सकता है जो चारे की कमी के दिनों में पशुओं को खिलाने के काम में आएगा। यह पशुओं द्वारा बहुत पसंद किया जाता है। साइलो गड्डे का आकार पशुओं की संख्या, खिलाने की अवधि, साइलेज की गुणवत्ता तथा साइलेज बनाने के लिये चारे की उपलब्धता पर निर्भर करता है। साइलेज उस चारे को कहते है जिसका वायु रहित फरमेंटेशन (खमीर) किया गया हो। हरे चारों को वायुरोधी गड्डों में अच्छी तरह दबाकर भर दिया जाता है। गड्डे के भीतर होने वाली प्रक्रियाओं से तेजाब (अम्ल) पैदा होता है जो चारे को अचार जैसा बना देता है। जिस प्रकार हम अपने लिए हरा धनिया, पुदीना आदि को हल्की धूप में सुखाकर कमी के दिनों में खाने के लिए प्रयोग करते है , ठीक उसी तरह फालतू हरे चारे को सुखाकर कमी के दिनों में पशुओं को खिलाने के लिए हे बनाकर रखा जा सकता है।

साइलेज बनाना

साइलेज बनाने से हरा चारा काफी समय तक अपनी गुणवत्ता को बनाए रखता है। यह दुधारू पशुओं को आसानी से पचता है और साथ ही यह उनकी उत्पादन क्षमता को भी बनाए रखता है। हरे चारे वाली फसलें जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा, मीठी सुडान घास तथा जई आदि से अच्छा साइलेज बनाया जा सकता है जबकि बरसीम, रिजका, लोबिया आदि दलहनी फसलों से अच्छा साइलेज नहीं बन पाता क्योंकि इनमें जल की मात्रा ज्यादा होती है परन्तु कुछ उपाय के बाद इनका भी साइलेज बनाया जा सकता है। साइलेज बनाने लिए मक्का, ज्वार व जई को प्रारम्भिक या बीच की अवस्था में काट कर छेाटे-छोटे टुकड़े बना लेने चाहिए। इससे हरे चारों के सूखने की प्रक्रिया में तेजी आएगी और चारे में नमी केवल उतनी रह जाएगी जितने में भंडारण के दौरान फफूंदी का प्रकोप न हो। अत: चारे को गड्डे में डालते समय इसमें 65 से 70 प्रतिशत नमी रहे। आमतौर पर साइलेज बनाने के समय चारे में शुष्क पदार्थ 30 से 40 प्रतिशत तक रहना चाहिए। साइलेज बनाने वाले घुलनशील में खमीर बनाने की क्रिया होते समय अम्ल (पी. एच. 4.2) काफी मात्रा में रहे और वह चारे को खराब होने से बचाए। मक्का आदि से साइलेज बनाते समय यदि 500 ग्राम यूरिया प्रति क्विंटल चारे में मिलाया जाए तो साइलेज में प्रोटीन मात्रा बढ़ सकती है।

गड्ढे की लम्बाई/चौड़़ाई

साइलेज बनाने के लिए गड्डा 6 फुट गहरा तथा 5 फुट चौड़ा होना चाहिए। एक घन फुट गड्डे में करीब 15 किलो हरा चारा साइलेज बनाने के लिए रखा जा सकता है अर्थात् 45 क्विंटल चारे के लिए गड्डे की लम्बाई 10 फुट होनी चाहिए। इस तरह करीब 70 क्ंिवटल चारे के लिए गड्डे की लम्बाई 15 फुट होगी। अगर साइलेज की जरूरत कम या ज्यादा हो सकती है। एक साइलेज गड्डा जिसकी लम्बाई 10 फुट, चौड़ाई 5 फुट एवं गहराई 6 फुट हो, उसमें करीब 45 क्ंिवटल हरा चारा आ सकता है। इस गड्डे को दो आदमी 4 से 5 दिनों में भर सकते हंै। इतना साइलेज दो-तीन महीने दुधारू पशुओं के लिए पर्याप्त है। प्रतिदिन दुधारू को 15-20 किलो साइलेज खिलाया जा सकता है। गड्डा जहां बनाएं वह जगह ऊंची तथा ढालू होनी चाहिए जिससे कि वर्षा का पानी अंदर न जाए। गड्डे कह दिवारें बिल्कुल सीधी, समतल व कोने गोल होने चाहिए। कच्चे गड्डे की दीवारों तथा फर्श को चारा भरने से पहले अच्छी तरह से मिट्टी से लिपाई कर देनी चाहिए जिससे उसमें से हवा अंदर जाने के लिए रास्ता न रहे। हवा अंदर जाने पर साइलेज में फफूंद लग जाएगी। हरा चारा भरने से पहले गड्डे में भूसा, फूस या पुआल बिछा दें। दीवार व चारे के बीच में भी भूसा या पुआल डालें जिससे कि चारे व दीवार सीधा संपर्क में न रहे। अगर गड्डा पक्का बना हो तो बहुत अच्छा होगा तथा पोषक तत्वों का नुकसान भी काफी कम होगा। गड्डे में चारा थोड़ा-थोड़ा भरकर उसे पैरों से दबा-दबा कर भरें जिससे चारे के बीच हवा न रह पाए। गड्डे को जमीन से 2-3 फुट ऊंचा रहे। गड्ढे के मुंह को बंद करने के लिए प्लास्टिक की चादर से ढककर उसके किनारों को अच्छी तरह से मिटटी से दबा दें ताकि हवा चादर के अंदर न घुस सके। प्लास्टिक के ऊपर भी अच्छी तरह से मिट्टी डाल देनी चाहिए। साइलेज तकरीबन दो महीने में तैयार हो जाता है। इसके बाद भी जरूरत हो गड्डे को खोलें तथा तैयार साइलेज पशुओं को खिलाएं। यह जरूरी है कि जिस गड्डे को खोलें उसमें से लगातार साइलेज निकालकर पशुओं को खिला दें।

अच्छे साइलेज की पहचान

बढिय़ा तैयार हुआ साइलेज हरा या सुनहरा हल्का सोने के रंग जैसा या हरे-भूरे रंग का होता है और खाने व पचने में आसान होता है। साइलेज का जानवरों पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है परन्तु खराब साइलेज नहीं खिलाना चाहिए। अच्छे साइलेज में विशेष प्रकार की खुशबू होती है और जायका तेजाबी होता है। बरसीम, रिजका तथा लोबिया में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट की मात्रा मक्का और ज्वार की तुलना में कम होती है तथा आद्र्रता व प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है। इसलिए इनसे स्वतंत्र रूप से साइलेज नहीं बनता। किंतु चार भाग बरसीम में एक भाग धान का पुआल मिलाकर साइलेज बनाया जा सकता है। ऐसे में धान का पुआल बरसीम की नमी को सोख लेता है, जिससे बरसीम नहीं सड़ता और साथ ही पुआल में पचनीय तत्व बढ़ जाता है। यदि इन चारों को छोटे-छोटे टुकड़ो में काटकर एक से डेढ़ दिन सुखाया जाए अथवा गेहूं के भूसे के साथ मिलाया जाए जिससे कि इन चारों में नमी की मात्रा घटकर लगभग 60 प्रतिशत हो जाए तो इससे साइलेज बनाया जा सकता है।
इन चारों में यदि शीरा उपलब्ध हो तो 2 प्रतिशत के हिसाब से मिला दें ताकि घुलनशील कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ जाए। इसके अलावा बरसीम, रिजका, लोबिया आदि के चारे को मक्का, ज्वार, जई आदि के चारों के साथ मिलाकर साइलेज बनाया जा सकता है लेकिन फलीदार चारों से साइलेज न बनाकर ‘हे’ बनाना ज्यादा अच्छा रहता है।

‘हे’ बनाना

हरे पौधे की नमी को इतना सुखाना कि उसे बड़े ढेर के रूप में इकट्टा करने पर भी उसमें सडऩे की क्रिया न हो वह ‘हे’ कहलाती है। फसल में फूल आने की अवस्था से पूर्व की अवस्था ‘हे’ बनाने के लिये सबसे उत्तम मानी जाती है। हे बनाने के लिए रिजका, बरसीम, लोबिया आदि फलीदार चारों को काम में लाया जाता है क्योंकि इनके तने पतले तथा घने पत्तियों वाले होते है। इन चारों को रेशा पडऩे से पहले यानि फसल में जब फल निकलने वाली हो तभी काट लेना चाहिए ताकि प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक पौष्टिक तत्व हो सके। इस अवस्था में काटकर सुखाने से रेशे की मात्रा कम तथा प्रोटीन मात्रा ज्यादा संचित रह पाएगी। अच्छी गुणवत्ता वाला ‘हे’ बनाने के लिए हरे चारों को फूल निकलने से ठीक पहले काटकर उसे मशीन द्वारा तकरीबन 4 से 5 इंच लंबा काट लें। काटने के लिए मशीन में एक ही गंडासे को काम में लाएं। इन कटे हुए चारों को 5 से 6 इंच मोटी तहों में किसी पक्के स्थान या समतल भूमि या मकानों की पक्की छतों पर धूप में सुखाएं। सूख रहे चारों को हर दो घंटे बाद पलटते रहें ताकि समान रूप से चारे को धूप व हवा मिलें। इस तरह करने से सारे चारे समान रूप से सूखकर 2 से 3 दिनों में तैयार हो जाएंगे। चारा पूर्ण रूप से सूखना चाहिए। इसके लिए चारे के एक तने को लेकर उसे तोडें़। यदि वह थोड़ा टूटे तथा रस न निकले तो समझें कि ‘हे’ तैयार है। अगर तना तुरंत टूट जाए तो समझें कि चारा ज्यादा सूख गया है। अधिक सूखे हुए चारों में पौष्टिक तत्व कम हो जाते हैं तथा पशु इसे चाव से नहीं खाते। इसके अलावा चारे की पत्तियां झड़कर अलग हो जाती है, यह ठीक नहीं है। चारे को ज्यादा सुखाने से इनमें विटामिन ‘ए’ (केरोटीन) की मात्रा कम हो जाती उसका रंग भूरा हो जाता है। परंतु कम सूखे चारे का भंडारण करने पर उसमें फॉरमेशन हो जाएगी व फफूंद पैदा हो सकती है। इस तरह के ‘हे’ पशुओं को खिलाने पर बीमारी लग जाती है। यदि चारों को सुखाते समय वर्षा होने का डर हो तो उसे गोदाम में 3 से 4 फुट की तह बनाकर रख दें और गोदाम के खिड़की दरवाजे खुले छोड़ दें ताकि हवा में चारा सूखता रहे। ‘हे’ बनाने के दूसरे तरीके में काटे हुए पौधों को तार के सहारे सीधा खड़ा कर देते हैं। बाद में छोटे-छोटे बंडलों में बांध देते हैं तथा ढेर के रूप में इक्कट्ठा कर लेते हैं। ‘हे’ तैयार किये हुए पौधों के छोटे-छोटे टुकड़ों में कुट्टी काट लेते हैं तथा नमी रहित भंडारों में एकत्रित कर लिया जाता है। सूखे चारों को गोदाम में रखने से पहले छोटी-छेाटी गांठें बना लें। फिर गोदाम में रखें। ऐसा करने से कम जगह में ज्यादा ‘हे’ रख पाएंगे।

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *