संपादकीय (Editorial)

अगले पांच वर्षों में 2 लाख नई प्राथमिक कृषि ऋण समितियों की स्थापना

  • डॉ. रबीन्द्र पस्तोर, सीईओ. ई-फसल
    मो. : 9425166766

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7 मार्च 2023, भोपाल ।  अगले पांच वर्षों में 2 लाख नई प्राथमिक कृषि ऋण समितियों की स्थापना – केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गत दिनों देश में सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के लिए अगले पांच वर्षों में 2 लाख नई प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (क्क्रष्टस्) और डेयरी-मत्स्य सहकारी समितियों की स्थापना को मंजूरी दी है। सन् 1844 में रोशडेल पायनियर्स ने लंकाशायर, इंग्लैंड में आधुनिक सहकारी आंदोलन की स्थापना की, ताकि समुदाय को किसी भी अधिशेष का उपयोग करके खराब गुणवत्ता, मिलावटी भोजन और प्रावधानों का एक किफायती विकल्प प्रदान कर लाभ पहुँचाया जा सके। भारत की पहली सहकारी समिति 1905 में कर्नाटक के गडग जिले के कनागिनहल गांव में सिद्दनगौडा सन्ना रामनगौड़ा पाटिल द्वारा पंजीकृत की गई थी, जिन्हें कर्नाटक में सहकारी आंदोलन के जनक के रूप में जाना जाता है। वर्तमान में, देश भर में लगभग 17 राष्ट्रीय सहकारी समितियां, 390 राज्य स्तरीय संघ, 2705 जिला संघ, 99,000 पैक्स में से लगभग 63,000 क्रियाशील पैक्स हैं। जिनका सदस्य आधार 13 करोड़ है; लगभग 1.5 करोड़ सदस्यों वाली 1,99,182 प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियां; और 25,297 प्राथमिक मत्स्य सहकारी समितियाँ, जिनमें लगभग 38 लाख सदस्य हैं। अभी भी 1.6 लाख पंचायतें पैक्स के बिना हैं और लगभग 2 लाख पंचायतें बिना किसी डेयरी सहकारी समिति के हैं। सहकारिता मंत्रालय ने प्रत्येक अछूती पंचायत में पैक्स, डेयरी सहकारी समिति और प्रत्येक तटीय पंचायत के साथ-साथ बड़ी जल संरचनाओं वाली पंचायत में मत्स्य सहकारी समिति स्थापित करने की योजना तैयार की है। प्रारंभ में, अगले पांच वर्षों में 2 लाख पैक्स/ डेयरी/मत्स्य सहकारी समितियों की स्थापना की जाएगी। परियोजना के कार्यान्वयन के लिए कार्य योजना नाबार्ड, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) और राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी) द्वारा तैयार की जाएगी। मंत्रिमंडल के निर्णय से किसान सदस्यों को उनकी उपज के विपणन के लिए आवश्यक आगे और पीछे के लिंकेज प्रदान करने, उनकी आय बढ़ाने और ग्रामीण स्तर पर ही ऋण सुविधाएं और अन्य सेवाएं प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

वर्तमान में चार योजनाएं – डेयरी विकास के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीडीडी), और पशुपालन और डेयरी विभाग के तहत डेयरी प्रसंस्करण और बुनियादी ढांचा विकास निधि (डीआईडीएफ); और मत्स्य पालन विभाग के तहत प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (क्करूरूस्ङ्घ), और मत्स्य पालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास (स्नढ्ढष्ठस्न) काम कर रही है। सहकारी समितियों की स्थापना की योजना के सुचारू क्रियान्वयन की देखरेख के लिए सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति को भी मंजूरी दी है। कृषि और किसान कल्याण मंत्री के साथ गृह और सहकारिता मंत्री की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय अंतर-मंत्रालयी समिति (आईएमसी); मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्री; संबंधित सचिव; अध्यक्ष नाबार्ड, एनडीडीबी के मुख्य कार्यकारी एनएफडीबी, सदस्यों के रूप में गठित किए गए हैं और योजना के सुचारू कार्यान्वयन के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए अधिकृत हैं, कार्य योजना के केंद्रित और प्रभावी निष्पादन को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर समितियों की भी परिकल्पना की गई है। पैक्स की व्यवहार्यता बढ़ाने और उनकी व्यावसायिक गतिविधियों में विविधता लाने के लिए, पैक्स के मॉडल उपनियम सहकारिता मंत्रालय द्वारा पहले ही तैयार कर लिए गए हैं। संबंधित राज्य उनके सहकारी अधिनियमों में उपयुक्त परिवर्तन कर ये मॉडल उपनियम लागू कर सकते है। जिससे वे 25 से अधिक व्यावसायिक गतिविधियों को करने में सक्षम हो सकेंगे। इनमें डेयरी, मत्स्य पालन, गोदामों की स्थापना, खाद्यान्न की खरीद, उर्वरक, बीज, एलपीजी/ सीएनजी/ पेट्रोल/ डीजल वितरण, अल्पकालिक और दीर्घकालिक ऋण, कस्टम हायरिंग सेंटर, कॉमन सर्विस सेंटर, उचित मूल्य की दुकानें, सामुदायिक सिंचाई, व्यवसाय संवाददाता गतिविधियाँ, कॉमन सर्विस सेंटर, आदि शामिल हैं। बेहतर कवरेज के साथ-साथ पैक्स के कामकाज को बढ़ाने व लाभदायक बनाने के लिए उनके प्रशासनिक ढाँचे का पुनर्गठन कर आवश्यक संसाधन जुटाने की क्षमता विकसित करना आवश्यक है। ताकि उच्च वित्तपोषण एजेंसियों से अधिक जमा और ऋण आकर्षित करने की उनकी क्षमता में वृद्धि हो सके। पैक्स को लंबी अवधि में सुसंगत नीतिगत समर्थन प्राप्त होना चाहिए और एक आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के निर्माण की इकाई के रूप में अपनी क्षमता का एहसास कराने के लिए आत्मनिर्भर भारत और वोकल फॉर लोकल पहल के लिए सरकार द्वारा आवश्यकता अनुसार नीतिगत व वित्तीय पोषण की सहायता दी जाना चाहिए।इन संस्थाओं को व्यवसायिक ढंग से संचालित करने के लिए इन के बोर्ड आफ डायरेक्टरों तथा प्रोफ़ेशनल मैनपॉवर की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए नयेपन से प्रशिक्षण कार्यक्रम तथा शिक्षण संस्थानों में नये पाठ्यक्रम संचालित किए जाने होंगे।

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