Editorial (संपादकीय)

किसानों के हित में एक और श्वेत क्रांति की जरूरत

Share
  • मधुकर पवार,
    मो. : 8770218785

 

29 अप्रैल 2023, भोपाल । किसानों के हित में एक और श्वेत क्रांति की जरूरत – हाल ही में मीडिया में खबर थी कि देश में दूध की मांग और आपूर्ति में काफी अंतर आने से दूध का आयात किया जायेगा। पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में करीब 92 हजार मीट्रिक टन दूध का आयात किया गया था जबकि इस वर्ष यह आंकड़ा एक लाख मीट्रिक टन तक पहुंच जाने की सम्भावना जतायी जा रही है। कोरोना के बाद दूध की मांग में 7 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई है जबकि उत्पादन में केवल 01 प्रतिशत की वृद्धि ही हुई है। इस सम्बंध में भारत सरकार ने स्पष्टीकरण दिया है कि कोविड-19 महामारी के बाद पौष्टिक, सुरक्षित और स्वच्छ दूध एवं दुग्ध उत्पादों की बढ़ती मांग की वजह से डेयरी क्षेत्र में कुल मांग और आपूर्ति में कुछ अंतर देखा जा रहा है। बढ़ती मांग को पूरा करने के साथ-साथ इस तथ्य पर विचार करते हुए कि चालू ग्रीष्म ऋतु के सुस्त सीजन में दूध की आपूर्ति कम हो सकती है। कई डेयरी सहकारी समितियों की ओर से संरक्षित डेयरी उत्पादों जैसे कि मिल्क फैट और पाउडर के आयात की मांग की जा रही थी। आवश्यकता पडऩे पर गर्मियों के मौसम में इनकी मांग को पूरा करने में डेयरी सहकारी समितियों के लिए स्थिति को सहज बनाने में मदद के लिए आयात किया जा सकता है। हालांकि, उस स्थिति में भी यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इसका इंतजाम केवल राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के माध्यम से ही किया जाए और उचित ढंग से आकलन करने के बाद जरूरतमंद यूनियनों को बाजार मूल्य पर स्टॉक दिया जाए।

हालांकि विश्व में भारत दूध उत्पादन के क्षेत्र में करीब 6 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि के साथ पहले स्थान पर है। वर्ष 2021-22 के दौरान 22.30 करोड़ मीट्रिक टन दूध का उत्पादन हुआ था जबकि वर्ष 1991-92 में यह मात्र 55.60 मिलियन यानी करीब 5.5 करोड़ मीट्रिक टन था। जहां तक दूध की खपत की बात है, इसमें भी काफी वृद्धि हुई है। देश में सन् 1950-51 में दूध का उत्पादन केवल 1.70 करोड़ मीट्रिक टन था और खपत 124 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन थी जबकि वर्ष 1970 में खपत घटकर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन मात्र 107 ग्राम रह गई थी। देश में सन् 1970 में शुरू किये गये आपरेशन फ्लड अर्थात् श्वेत क्रांति से क्रांतिकारी बदलाव के कारण दुग्ध उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई और खपत में भी इजाफा हुआ। परिणाम स्वरूप भारत वर्तमान में विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया है और समूचे विश्व का करीब 24 प्रतिशत दूध का उत्पादन कर रहा है। भारत में 2021-22 में खपत भी बढक़र 444 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन हो गई है जबकि विश्व में औसत खपत करीब 322 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। केन्द्र सरकार ने आगामी तीन वर्षों के दौरान देश भर में ग्रामीण क्षेत्रों में दो लाख प्राथमिक डेयरी स्थापित करने की योजना बनाई है। यह किसानों को श्वेत क्रांति से जोडऩे के साथ भारत को दुग्ध उत्पादों के क्षेत्र में एक बड़ा निर्यातक देश बनाने में मदद करेगी। भारत का राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में डेयरी क्षेत्र का योगदान 4.2 प्रतिशत है। डेयरी क्षेत्र भारत में कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोजग़ार का क्षेत्र भी है।

उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ

दूध और दुग्ध उत्पादों की कीमतों में लगातार हो रही वृद्धि से आम उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। अब सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती है कि लम्पी वायरस के संक्रमण से लाखों की संख्या में दुधारू पशुओं की मौत और चारा, खली आदि की कीमतों में इजाफा के कारण उत्पादन लागत भी बढ़ी है जिससे दूध और इससे बनने वाले उत्पादों की बढ़ती कीमतों को कैसे स्थिर रखा जाये? इससे भी बड़ी चुनौती यह है कि मांग और आपूर्ति के अंतर को कैसे कम किया जाये ? यदि सरकार आयात को मंजूरी देती है तो घरेलू दुग्ध उत्पादक किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल सकेगा और आयात नहीं किया तो दूध के दाम बढ़ेंगे। ऐसी स्थिति में कोई बीच का रास्ता निकालना भी कोई आसान काम नहीं है। आगामी महीनों में विधानसभा और अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव के मद्देनजर सरकार कोई भी जोखिम नहीं उठाना चाहेगी लेकिन सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे.. ऐसी कोई स्थिति नजर नहीं आ रही है।

नये स्वरूप पर ध्यान देना होगा

अब सरकार को नये सिरे से दूध की मांग और आपूर्ति में सामंजस्य बिठाने के लिये श्वेत क्रांति को नया स्वरूप प्रदान करने पर ध्यान देना चाहिये। इसके लिये सबसे पहले दूध की उत्पादन लागत कम करने के लिये हर सम्भव कदम उठाने की जरूरत है। कृषि में यंत्रीकरण के कारण पशुओं के भोजन के लिये सबसे ज्यादा उपयोग में लाया जाने वाले गेहूं के भूसे की उपलब्धता कम हो गई है। इसके कारण भूसा की कीमत 15 रूपये किलो तक हो जाती है। इसके साथ ही खली, दाना और अन्य सामग्री की कीमतें भी काफी बढ़ गई हैं। धान उत्पादक राज्यों में पराली जलाया जाता है जबकि इसका उपयोग पशुचारे के रूप में किया जा सकता है। साथ ही यह भी अनिवार्य कर देना चाहिये कि हार्वेस्टिंग के दौरान गेहूं का भूसा व्यर्थ खेतों में नहीं जाये ताकि भूसा का उपयोग चारा के लिये किया जा सके। दुधारू पशुओं के लिये चारे और खली की कीमतें पशुपालकों और किसानों की पहुंच में रहेंगी तो निश्चित ही किसान पशुपालन के लिये प्रेरित होंगे। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि किसानों को अपने खेतों के लिये गोबर खाद भी उपलब्ध हो सकेगा जिससे रासायनिक खादों पर निर्भरता कम होगी। अभी वर्तमान में लघु और सीमांत किसान नाममात्र के लिये ही पशुपालन कर रहे हैं। यदि उन्हें प्रोत्साहित किया जाये तो वे अधिक संख्या में पशुपालन कर सकेंगे। इससे उनकी आय में भी वृद्धि होगी।

भारत भले ही दुनिया का अव्वल दुग्ध उत्पादक देश बन गया हो, लेकिन यहां के दुधारू पशुओं की उत्पादकता भी संतोषजनक नहीं है। यदि उत्पादकता बेहतर होती तो देश में दुधारू पशुओं की संख्या के मान से दूध का उत्पादन डेढ़ गुना हो सकता था। पशुओं की संख्या के हिसाब से चारे की उपलब्धता कम है। चारे की मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर है जिसके कारण दूध और दुग्ध उत्पादों की कीमतें बढऩा स्वाभाविक है। दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिये उन्नत प्रजाति के दुधारू पशुओं के साथ पर्याप्त मात्रा में चारा की उपलब्धता सुनिश्चित करने की जरूरत है।

दूध उत्पादों की मांग में वृद्धि

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के पशुपालन और डेयरी विभाग की वर्ष 2022-23 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार भारत में उत्पादित दूध की लगभग 46 प्रतिशत मात्रा या तो उत्पादक स्तर पर या गैर उत्पादकों को बेचा जाता है जबकि 54 प्रतिशत दूध संगठित और असंगठित क्षेत्र में बेचा जाता है। शहरीकरण और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के कारण भी दूध की मांग बढ़ रही है। अधिकांश शाकाहारी जनसंख्या के लिये प्रोटीन की उपलभ्दता के लिये दूध ही सर्वोत्तम स्रोत है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में दूध और दूध के उत्पादों की मांग में निरंतर वृद्धि हो रही है तथा भविष्य में भी यही क्रम जारी रहेगा। वर्ष 2021 में देश में डेयरी बाजार का आकार 13.17 लाख करोड़ रूपये था जो 2027 तक 30 लाख करोड़ रूपये से अधिक होने की सम्भावना है। मंत्रालय का मानना है कि पारम्परिक डेयरी उत्पादों जैसे घी, पनीर, आईसक्रीम, खोआ, दही की घरेलू खपत 16.1 करोड़ मीट्रिक टन थी जो वर्ष 2030 तक बढक़र 26.7 करोड़ मीट्रिक टन होने की उम्मीद है। नीति आयोग ने भी वर्ष 2030 तक देश में दूध का उत्पादन 30 करोड़ मीट्रिक टन होने का अनुमान लगाया है।

देश में दूध की मांग में हो रही वृद्धि के मद्देनजर अब एक और श्वेत क्रांति का जरूरत महसूस की जा रही है। इसके साथ ही उपभोक्ताओं को शुद्ध दूध और दुग्ध उत्पादों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये एक ऐसी नीति तैयार करनी होगी जिससे दूध उत्पादकों और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा हो सके। अर्थात दूध उत्पादकों को दूध की लागत कम होने के साथ ही उचित मूल्य मिल सके और उपभोक्ताओं पर भी आर्थिक बोझ न पड़े।

सख्ती की जरूरत

मिलावट और नकली दूध के कारोबार पर भी सख्ती से रोक लगाने के आवश्यकता है। उपभोक्ताओं को जब नकली और मिलावटी दूध सस्ता मिलता है तब वे किसानों से दूध खरीदने के बजाये इस कारोबर में लिप्त लोगों से खरीदने को प्राथमिकता देते हैं। हालाकि शहरों में सांची, मदर डेयरी, अमूल आदि संस्थाओं के माध्यम से दूध की आपूर्ति हो रही है लेकिन दूध और दुग्ध उत्पादों की कीमतें में समय-समय पर इजाफा हो रहा है। देश में अधिकांश दुग्ध उत्पादक असंगठित हैं इसलिये उन्हें इसका लाभ नहीं मिल  पाता है।

महत्वपूर्ण खबर: गेहूं की फसल को चूहों से बचाने के उपाय बतायें

Share
Advertisements