स्वस्थ आहार प्रणाली एवं कृषक महिलाओं की पोषण संबंधी आवश्यकताएँ
लेखक: डॉ. निधि जोशी, विषय वस्तु विशेषज्ञ कृषि विज्ञान केन्द्र, भा.कृ.अनु.प. केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल
14 नवंबर 2024, भोपाल: स्वस्थ आहार प्रणाली एवं कृषक महिलाओं की पोषण संबंधी आवश्यकताएँ –
प्रस्तावना
भारत विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश है और विश्व की सबसे अधिक 141 करोड़ जनसँख्या यहीं निवास करती है। भारत का कुल क्षेत्रफल विश्व के क्षेत्रफल का केवल 2.4 प्रतिशत है, लेकिन इस क्षेत्रफल पर विश्व की 17 से 18 प्रतिशत आबादी रहती है। भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 328.7 मिलियन हेक्टेयर है। कृषि के लिए उपयुक्त भूमि 140 मिलियन हेक्टेयर है। भारत में आधी से अधिक जनसंख्या (54.6 प्रतिशत) कृषि कार्यों से आजीविका प्राप्त करती है।
हमारा देश बहुत-सी फसलों का अग्रणी उत्पादक है। भारत दूध, दालों और मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक है। जबकि गेहूं, धान, मूंगफली, गन्ना, चाय, कपास, जूट, फल और सब्जियों के उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है। इतनी खाद्य समृधता होने के बावजूद भारत में हर तीन में से एक बच्चा कुपोषण से ग्रस्त है। वहीं आधे से अधिक बच्चे और महिलाएँ एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी से ग्रसित हैं। वहीं, मोटापे का दर भी बढ़ता जा रहा है। इस प्रकार हमारा देश कुपोषण का तिहरा बोझ झेल रहा है। पोषण आधारित कृषि, स्वस्थ एवं विविध आहार प्रणाली द्वारा कुपोषण, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी और अति-पोषण पर काबू पाया जा सकता है।
आहार एवं पोषक तत्त्व
हम सभी जानते हैं भोजन शरीर की मूलभूत आवश्यकता है। संतुलित आहार से प्राप्त उचित पोषण द्वारा व्यक्ति का शरीर स्वस्थ एवं सशक्त रहता है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए उचित पोषण और संतुलित आहार अत्यधिक आवश्यक है। आहार की स्वास्थ्य एवं रोग की स्तिथियों में महत्वपूर्ण भूमिका है। सही पोषण से बच्चों का शारीरिक तथा मानसिक विकास अच्छा होता है। उचित पोषण से उत्पादकता में बढ़ोतरी होती है, जिससे देश का बेहतर भविष्य सुनिश्चित होता है। बदलती हुई जीवनशैली को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक हो गया है की सभी आयु वर्गों में उचित तथा संतुलित पोषण को बढ़ावा दिया जाए। एक स्वस्थ और सुपोषित समाज द्वारा ही एक विकसित देश का निर्माण होता है।
आहार के विषय में सोचते ही हमारे मस्तिष्क में अनेक चित्र उभरते हैं। आहार के अंतर्गत वह सभी खाद्य पदार्थ आते हैं जिन्हें हम खाते या पीतें हैं। हमारा आहार अनेक छोटी-छोटी इकाईयों से निर्मित है जो शरीर को पोषण प्रदान करते हैं, यह पोषक तत्त्व कहलाते हैं। यह पोषक तत्व शरीर में विशिष्ट कार्यों हेतु निर्धारित मात्रा में आवश्यक होते हैं। पोषक तत्त्वों की यह मात्रा यदि आवश्यकता से अधिक या कम होती है, तो यह स्तिथि असंतुलन की होती है जिसके परिणामस्वरुप व्यक्ति में कुपोषण (अतिपोषण या अल्पपोषण) देखा जा सकता है। इस स्तिथि में व्यक्ति बीमार हो जाता है या उसकी शारीरिक वृद्धि में रुकावट आ जाती है। पोष्टिक तत्त्व निम्न प्रकार के होते हैं-
- कार्बोहायड्रेटः यह पोषक तत्त्व ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत है।
- प्रोटीनः शारीरिक वृद्धि एवं उत्तकों के मरम्मत के लिए आवश्यक है।
- वसाः उर्जा का सघन स्त्रोत तथा वसा में घुलनशील विटामिन को अवशोषित करने के लिए आवश्यक है।
- विटामिन एवं खनिज लवणः शारीरिक प्रक्रियाओं के विनियमन तथा बिमारियों से बचाव करते हैं।
संतुलित आहार की संकल्पना
संतुलित आहार में सभी खाद्य समूहों से खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं और यह शरीर की सभी पोषक तत्त्वों की आवश्यकता पूर्ण करता है। कोई भी एक या दो खाद्य पदार्थ शरीर को समस्त पोषक तत्त्व प्रदान नहीं कर सकते। केवल विविध खाद्य पदार्थों द्वारा ही शरीर की पोषक तत्त्वों की आवश्यकता पूर्ण की जा सकती है। संतुलित आहार में मौजूद जैव सक्रिय एवं पादप रसायन स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं और विभिन्न बिमारियों से बचाव करते हैं।
संतुलित आहार निम्नलिखित बिन्दुओं पर आधारित है-
- आहार में विविधता होनी चाहिए। विभिन्न खाद्य पदार्थों जैसे फल, सब्जियाँ, फलियाँ, सूखे मेवे, साबुत अनाज एवं दुग्ध पदार्थ हमारे आहार में सम्मिलित हों।
- ऊर्जा के व्यय एवं सेवन में संतुलन होना चाहिए, जिससे वजन को नियंत्रित रखा जा सके।
- मोटे एवं अपरिष्कृत अनाज (जिनमें अधिक मात्रा में पोषक तत्त्व एवं रेशे पाए जाते हैं), उन्हें आहार में सम्मिलित करना चाहिए।
- रेशे युक्त खाद्य पदार्थों, श्री अन्न, फल, सब्जियों, साबुत दालों एवं फलियों का आहार में अधिक प्रयोग करना चाहिए।
- वसा, चीनी एवं नमक का सीमित सेवन करना।
- एक समय पर भरपेट भोजन करने की अपेक्षा छोटे-छोटे अंतरालों पर कम मात्रा में भोजन ग्रहण करना चाहिए।
- क. वसा एवं तेल के माध्यम से शरीर को प्रतिदिन 30 प्रतिशत से कम एवं शक्कर से 5 प्रतिशत से कम ऊर्जा प्राप्त होनी चाहिए।
- ख. नमक का दैनिक उपयोग पांच ग्राम या उससे कम होना चाहिए।
- आहार में डालडा का उपयोग नहीं करना चाहिए।
- विभिन्न प्रकार के वनस्पति तेलों का प्रयोग, जैसे सरसों, मूंगफली, सूरजमुखी, अधिक स्वास्थ्यवर्धक होता है।
- पर्याप्त मात्रा में पानी व अन्य तरल पदार्थों का सेवन करें।
- उन पाक विधियों का चुनाव करें जिसके प्रयोग द्वारा पोषक तत्त्वों को न्यूनतम क्षति हो, उदहारणतः भाप में पकाना, प्रेशर कुक करना।
- उच्च वसा, चीनी, नमक युक्त एवं अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का कम सेवन करें।
- भोजन को खरीदने से पूर्व बाहरी पैकेट में दी गई जानकारी को पढ़ें।
आधारभूत खाद्य समूह एवं दैनिक आहार प्लेट
भोजन के शरीर में कई कार्य होते हैं; भोजन के शारीरिक कार्य जिसमें शरीर को ऊर्जा प्रदान करना, शरीर के उत्तकों की मरम्मत, नई कोशिकाओं और उत्तकों का निर्माण, शारीरिक प्रक्रियाओं को विनियमित करना, बिमारियों से बचाव शामिल है। इसके अलावा भोजन के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कार्य भी हैं। खाद्य पदार्थों को निम्नलिखित समूहों में विभाजित किया जाता है-
समूह 1- अनाज: इस समूह में अनाज तथा मोटे अनाज या उनसे बने खाद्य पदार्थ सम्मिलित हैं। प्रमुख अनाज गेहूँ, चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी, कोडो, कुटकी, इत्यादि। इस समूह से शरीर को ऊर्जा, प्रोटीन, वसा, विटामिन बी1, विटामिन बी 2, फोलिक अम्ल, लौह लवण तथा रेशे प्राप्त होते हैं।
समूह 2- दालें एवं फलियाँ: इस समूह में चना, उड़द, मूंग, राजमा, लोभिया, मसूर, सुखी मटर इत्यादि सम्मिलित हैं। यह ऊर्जा, प्रोटीन, स्वस्थ वसा, विटामिन बी1, विटामिन बी2, फोलिक अम्ल, कैल्शियम, लौह लवण और रेशे का अच्छा स्त्रोत है।
समूह 3- दूध एवं डेरी पदार्थः इस समूह में दूध, दही, पनीर एवं अन्य डेरी पदार्थ शामिल हैं। यह समूह प्रोटीन, वसा, विटामिन बी 2 और कैल्शियम का अच्छा स्त्रोत है।
समूह 4- मांस, पोल्ट्री, मछली एवं अंडाः यह समूह प्रोटीन, वसा, विटामिन बी 2, लौह लवण और फॉस्फोरस का अच्छा स्त्रोत है।
समूह 5- फल एवं सब्जियाँ: इसमें सभी प्रकार के फल शामिल हैं, जो कि रेशा, बीटा कैरोटीन और विटामिन सी का अच्छा स्त्रोत है।
सब्जियों में हरी पत्तेदार सब्जियाँ (पालाक, मेथी, सरसों) व अन्य सब्जियाँ (लौकी, भिन्डी, तोरई, कद्ध फूलगोभी, करेला, शिमला मिर्च) शामिल हैं। सब्जियाँ कैरोटीनॉयडस्, विटामिन बी2, फोलिक अम्ल, कैल्शियम, लौह लवण और रेशे का उत्तम स्त्रोत हैं।
समूह 6- घी, तेल एवं शर्कराः इसमें घी, मक्खन, डालडा, वनस्पति तेल शामिल है, जो कि ऊर्जा, आवश्यक वसीय अम्ल, विटामिन ए, विटामिन डी एवं विटामिन ई का उत्तम स्त्रोत है।
समूह 7- सूखे मेवे, बीज एवं तिलहन: इस समूह में अखरोट, काजू, बादाम, मूंगफली, पिस्ता व अन्य बीज शामिल हैं। इस खाद्य समूह में प्रोटीन, असंतृप्त वसा, विटामिन ई, जिंक तथा सेलेनियम अच्छी मात्रा में पाया जाता है।
समूह 8- जड़ एवं कंद मूलः इसमें आलू, शकरकंद, चुकंदर, गाजर, मुली, शलगम, इत्यादि सम्मिलित है। यह खाद्य समूह मुख्य रूप से ऊर्जा, बीटा कैरोटीन, रेशे एवं जैव यौगिक पदार्थों का अच्छा स्त्रोत है।
कम-से-कम 5-7 खाद्य समूहों को पर्याप्त मात्रा में दैनिक रूप से हमारे आहार में लेना चाहिए। स्वस्थ खाने की प्लेट या संतुलित आहार की बात करें तो आई.सी.एम.आर. राष्ट्रीय पोषण संस्थान के अनुसार एक स्वस्थ व्यक्ति को नियमित रूप से 250 ग्राम अनाज व मोटे अनाज का सेवन करना चाहिए। दैनिक प्लेट का आधा हिस्सा 400 ग्राम सब्जियों जिसमें हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अन्य सब्जियाँ व जड़ एवं कंद मूल शामिल हैं, एवं 100 ग्राम फलों से निर्मित होना चाहिए। लगभग 300 मी.ली. दुग्ध एवं डेरी पदार्थ, 85 ग्राम दालें एवं फलियाँ- जिसमें 30 ग्राम दालों के स्थान पर मांस, पोल्ट्री एवं मछली को शामिल किया जा सकता है। घी, मक्खन एवं तेल का सेवन 27 ग्राम एवं 35 ग्राम सूखे मेवे दैनिक आहार में सम्मिलित होने चाहिए।
कृषक महिलाओं की पोषण संबंधी आवश्यकताएँ
महिला किसानों की कृषि एवं खाद्य सुरक्षा में महत्तवपूर्ण भूमिका है। भारत में कृषि कार्यों में 63 प्रतिशत महिला श्रमिकों का योगदान है। परिवार में भोजन पकाने का कार्य महिलाओं द्वारा किया जाता है, और यदि उनका स्वास्थ्य अच्छा है तथा उन्हें पोषण सम्बन्धी जानकारी है, तो यह उनके परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है I कृषक महिलाओं को खेती कार्य के अलावा घर-गृहस्थी के कार्य, खाना पकाना, बच्चों एवं परिवार की देखभाल भी करनी होती है। समय का अभाव एवं थकावट के कारण वह अपनी खाद्य एवं पोषण आवश्यकताओं पर ध्यान नहीं दे पाती हैं। इससे उसके स्वास्थ्य एवं कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए एक संतुलित आहार के द्वारा समस्त पोषक तत्त्वों की आवश्यकता को पूर्ण करके कृषक महिलाएं अपने स्वास्थ्य को बेहतर बना सकती हैं। कृषक महिलाओं द्वारा कठोर शारीरिक श्रम, पोषक तत्त्वों की आवश्यकता को बढ़ाता है। एक व्यस्क स्वस्थ कृषक महिला को प्रतिदिन अपने आहार में उक्त मात्रा में भोज्य समूह शमिल करने चाहिए-
क्र.सं | भोज्य समूह | दैनिक सेवन |
1 | अनाज व मोटे अनाज | 480 ग्राम |
2 | दालें | 90 ग्राम |
3 | दूध एवं डेरी पदार्थ | 300 ग्राम |
4 | हरी पत्तेदार सब्जियाँ | 100 ग्राम |
5 | अन्य सब्जियाँ | 250 ग्राम |
6 | जड़ एवं कंद मूल | 50 ग्राम |
7 | फल | 100 ग्राम |
8 | सूखे मेवे, बीज एवं तिलहन | 27 ग्राम |
9 | शर्करा | 45 ग्राम |
10 | वसा (घी, मक्खन, तेल) | 30 ग्राम |
इसके अलावा पयाप्त मात्रा में जल एवं अन्य तरल पदार्थों (2.5 लीटर) का सेवन करना चाहिए।
असंतुलित आहार प्रणाली के दुष्प्रभाव
असंतुलित आहार प्रणाली द्वारा शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी के कारण कई पोषण एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ शरीर में आने लगती हैं, जैसे-
- वजन गिरना और कमजोरी आना।
- शिशुओं में प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण।
- विटामिन ए की कमी से रतौंधी रात में देखने की क्षमता कम होना।
- विटामिन डी और कैल्शियम की कमी से हड्डियाँ कमजोर होना एवं शिशुओं में सुखा रोग।
- लौह तत्त्व की कमी से अनीमिया शरीर में रक्त की कमी।
- आयोडीन की कमी से धंधा रोग, मानसिक एवं शारीरिक वृद्धि में रुकावट।
- जिंक की कमी से शारीरिक विकास में बाध्यता एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट।
- विटामिन सी की कमी से मसूड़ों से खून आना।
विटामिन डी और कैल्शियम की कमी से हड्डियाँ कमजोर होना एवं शिशुओं में सुखा रोग। लौह तत्त्व की कमी से अनीमिया शरीर में रक्त की कमी। आयोडीन की कमी से धंधा रोग, मानसिक एवं शारीरिक वृद्धि में रुकावट। जिंक की कमी से शारीरिक विकास में बाध्यता एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट। विटामिन सी की कमी से मसूड़ों से खून आना।
(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़, टेलीग्राम, व्हाट्सएप्प)
(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)
कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
www.krishakjagat.org/kj_epaper/
कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें: