Editorial (संपादकीय)

जायद में सिंचाई प्रबंध

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19 अप्रैल 2023, भोपाल जायद में सिंचाई प्रबंध – जल ही जीवन है ग्रीष्मकाल में तो बूंद-बूंद पानी की सुरक्षा जरूरी है जहां एक ओर पीने के पानी की उपलब्धि आवश्यकता से बहुत कम है दूसरी ओर वर्षा जल का संचय बांधों में किया जाकर सिंचाई क्षमता बढ़ाई जा रही है ताकि एक-दो नहीं बल्कि तीन-तीन फसलों के पालन-पोषण के लिये पर्याप्त जल उपलब्ध हो सके। वर्ष 1998-99 में जहां देश की सिंचाई क्षमता केवल 596 लाख हेक्टर थी आज बढक़र लगभग 872 लाख हेक्टर हो गई है जिसका मुख्य कारण बड़े मध्यम तथा छोटे बांधों का निर्माण किया गया और जायद की फसल लेने की कल्पना को साकार किया गया। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि सिंचाई जल का 70 प्रतिशत जल व्यर्थ चला जाता है जिसका 25 प्रतिशत जल वाष्पीकरण के कारण होता है। जल का खेतों में बहाव का मुख्य कारण भूमि में समतलीकरण की कमी है। आज भी अधिकांश भूमि उबड़-खाबड़ तथा ढलान वाली है जिसमें सिंचाई की व्यवस्था करना आसान कार्य नहीं हो पाता है। खेत के समतलीकरण होने से फसल सघनता 35-40 प्रतिशत तक तथा फसलोत्पादन 20-25 प्रतिशत तक वृद्धि पाई गई है यही कारण है। कमांड क्षेत्रों में जल की उपयोगिता का प्रतिशत बढ़ाने के उद्देश्य से भूमि का समतलीकरण कार्य शासकीय स्तर पर किया जा रहा है ताकि जल उपयोगिता में 20-25 प्रतिशत तक की बढ़त की जा सके। सिंचाई जल में वाष्पीकरण की समस्या सबसे अधिक है  जायद के मौसम में होती है क्योंकि तापमान अधिक होता जाता है जैसे-जैसे  फसल की जल आवश्यकता बढ़ती है वैसे-वैसे इसकी खपत भी बढ़ती जाती है। सिंचाई जल की उपयोगिता बढ़ाने के लिये  मिट्टी के प्रकार के अनुरूप सिंचाई नाली का आकार एवं ढलान सही रखना जरूरी होता है उचित तरीके से की गई सिंचाई तकनीकी से सिंचाई जल की उपयोगिता का प्रतिशत बढ़ाया जाना स्वयं के हाथों में होता है तथा जल उपयोगिता 65 से 85 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है। यथासंभव असमतल खेतों में सिंचाई की फव्वारा पद्धति को अपनाना आज की जरूरत बन गई है।

उल्लेखनीय है कि फव्वारा पद्धति लगाने के लिये शासन से अनुदान की पात्रता भी है जिसका लाभ किसान उठा सकते हंै। इसके अलावा ड्रिप पद्धति भी अपनाई जा सकती है जिसमें वाष्पीकरण की समस्या नहीं होती है। इस मौसम में सबसे अधिक क्षेत्र में मूंग, उड़द इत्यादि खेतों में गेहूं काटने के बाद लगाई गई है। कुछ क्षेत्रों में कद्दूवर्गीय फसलें भी हैं जो मुख्यत: नदी किनारों की रेत में लगाई गई  जहां पर घड़े से सिंचाई की जाती है जिससे जल का अपव्यय बिल्कुल नहीं होता है। मूंग, उड़द की फसलों में यदि जल की कमी हो गई तो उसका सीधा असर फसल की बढ़वार पर होगा और साथ-साथ जड़ों द्वारा वायुमंडल से नत्रजन इकट्ठा करने की क्रिया पर भी विपरीत असर पड़ेगा। जड़ों में ग्रन्थियां कम बन पायेगी फूल कम होंगे तथा गिरने लगेंगे परिणाम फल्लियां कम बनेगी और उत्पादन प्रभावित होगा। उल्लेखनीय है कि जायद की मूंग, उड़द का उत्पादन सामान्य परिस्थिति में वर्षाकालीन फसल की तुलना मेें दो से तीन गुना अधिक हो सकता है। क्याोंकि इस मौसम में वर्षा का, वातावरण का, सूर्य प्रकाश का कीट/रोग की क्रियाशीलता का कुप्रभाव नहीं होता है। यही कारण है कि वर्तमान में जायद का रकबा बढ़ रहा है सिंचाई जल के समुचित उपयोग के लिये सिंचाई का समय यदि शाम को रखा जाये तो अधिक उपयोगी सिद्ध होगा। पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिनों बाद इसके बाद 3-4 दिनों में सिंचाई करने से फसल की बढ़वार बराबर होगी तथा  उत्पादन भी अच्छा होगा। ग्रीष्मकाल में हरियाली देखकर  हल धर का मन खुश हो जाता है कारण केवल सिंचाई प्रबंध होता है।

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