Crop Cultivation (फसल की खेती)

अरहर की खेती

Share

भारत में खरीफ दलहन परिदृश्य-2

  • डॉ. ए. के. तिवारी, निदेशक , डॉ. ए. के. शिवहरे, संयुक्त निदेशक
    दलहन विकास निदेशालय, (कृषि मंत्रालय, भारत सरकार) भोपाल

5 जून 2021, भोपाल ।  अरहर की खेती – भारत का विश्व में अरहर के क्षेत्रफल व उत्पादन में प्रथम स्थान हैं। विश्व के कुल क्षेत्रफल में भारत की कुल भागीदारी 79.65 प्रतिशत व उत्पादन में 67.28 प्रतिशत है। अरहर का सामान्य क्षेत्र 44.29 लाख हे हैए जिसमें 80.6 किलोग्राम/हेक्टेयर की उत्पादकता के साथ 35.69 लाख टन का उत्पादन होता है। कुल खरीफ दलहन क्षेत्र में अकेले अरहर का योगदान लगभग 34 प्रतिशत और उत्पादन में 47 प्रतिशत योगदान है ।

प्रमुख राज्य

क्षेत्राच्छादन में योगदान, 97प्रतिशत : महाराष्ट्र 29प्रतिशत, कर्नाटक 22प्रतिशत, मध्य प्रदेश 12प्रतिशत, तेलंगाना 7प्रतिशत, आंध्र प्रदेश, गुजरात एवं उत्तर प्रदेश, प्रत्येक 6प्रतिशत, झारखण्ड 5प्रतिशत,ओडिशा 3प्रतिशत एवं तमिलनाडु 1प्रतिशत

उत्पादन में योगदान- 97 प्रतिशत : महाराष्ट्र 27 प्रतिशत, कर्नाटक 19 प्रतिशत, मध्य प्रदेश 16प्रतिशत, गुजरात 9त्न, उत्तर प्रदेश 7प्रतिशत, झारखण्ड 6 प्रतिशत, तेलंगाना 5 प्रतिशत, ओडिशा 4 प्रतिशत,  आंध्र प्रदेश 3त्न, तमिलनाडु 2 प्रतिशत
2016-17 के दौरान अरहर में सबसे अधिक क्षेत्रफल और उत्पादन 53 लाख हे. से अधिक और 48 लाख टन से अधिक था। 2017-18 के दौरान उच्चतम उत्पादकता 967 किलोग्राम/ हेक्टेयर थी।

कृषि कार्यमाला

दलहनी फसलों में अरहर का विशेष स्थान है। अरहर की दाल में लगभग 20-21 प्रतिशत तक प्रोटीन पाई जाती है, साथ ही इस प्रोटीन का पाच्यमूल्य भी अन्य प्रोटीन से अच्छा होता है। अरहर की दीर्घकालीन प्रजातियाँ मृदा में 200 कि.ग्रा. तक वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर मृदा उर्वरकता एवं उत्पादकता में वृद्धि करती है।

प्रजातियों का चुनाव

बहुफसलीय उत्पादन पद्धति में एवं हल्की ढलान वाली असिंचित भूमि में जल्दी पकने वाली प्रजातियाँ बोनी चाहिए। मध्यम गहरी भूमि में जहां पर्याप्त वर्षा होती हो, सिंचित एवं असिंचित दोनों स्थिति में मध्यम अवधि की प्रजातियाँ बोयें।

खेत की तैयारी

मिट्टी पलट हल से एक गहरी जुताई के उपरांत 2-3 जुताई हल अथवा हैरो से करना उचित रहता है। प्रत्येक जुताई के बाद सिंचाई एवं जल निकास की पर्याप्त व्यवस्था हेतु पाटा लगाना आवश्यक है।

बुआई का समय तथा विधि

शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की बुआई जून के प्रथम पखवाड़े मे पलेवा करके करना चाहिए तथा मध्यम व देर से पकने वाली प्रजातियों की बुआई जून से जुलाई के प्रथम पखवाड़े में करें।

उर्वरक

मृदा परीक्षण के आधार पर समस्त उर्वरक अंतिम जुताई के समय हल के पीछे कूड़ में बीज की सतह से 5 से.मी. गहराई व 5 से.मी. साइड में देना सर्वोत्तम रहता है। बुआई के समय 20-25 कि.ग्रा. नत्रजन, 40-50 कि.ग्रा. फास्फोरस, 20-25 कि.ग्रा पोटाश प्रति हेक्टर कतारों में बीज के नीचे दें।

बीजशोधन

मृदाजनित रोगों से बचाव के लिए बीजों को 2 ग्राम थाइरम 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा अथवा 3 ग्राम थाइरम प्रति किग्रा की दर से शोधित करके बुआई करें या कार्बोक्सिन (वीटावेक्स) 2 ग्राम $ 5 ग्राम ट्रायकोडरमा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें। बीजशोधन बीजोपचार से 2-3 दिन पूर्व करें।

बीजोपचार

10 कि.ग्रा. अरहर के बीज के लिए राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट (100 ग्राम) पर्याप्त होता है। 50 ग्रा. गुड़ या चीनी को 1/2 ली. पानी में घोलकर उबाल लें। घोल के ठंडा होने पर उसमें राइजोबियम कल्चर मिला दें। इस कल्चर में 10 कि.ग्रा. बीज डाल कर अच्छी प्रकार मिला लें ताकि प्रत्येक बीज पर कल्चर का लेप चिपक जायें। उपचारित बीजों को छाया में सुखा कर, दूसरे दिन बोया जा सकता है। उपचारित बीज को कभी भी धूप में न सुखायें, व बीज उपचार दोपहर के बाद करें।

दूरी: शीघ्र पकने वाली: पंक्ति से पंक्ति: 45-60 से.मी. पौध से पौध:10-15 से.मी.
मध्यम व देर से पकने वाली: पंक्ति से पंक्ति: 60-75 से.मी. पौध से पौध:15-20 से.मी.

बीजदर

जल्दी पकने वाली जातियों का 20-25 किलोग्राम एवं मध्यम पकने वाली जातियों का 15 से 20 कि.ग्रा.बीज/हेक्टर बोयें। चौफली पद्धति से बोने पर 3-4 किलों बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर लगती है।

अंतरवर्तीय फसल

अंतरवर्तीय फसल पद्धति से मुख्य फसल की पूर्ण पैदावार एंव अंतरवर्तीय फसल की अतिरिक्त पैदावार प्राप्त होगी। मुख्य फसल में कीडों का प्रकोप होने पर या किसी समय में मौसम की प्रतिकूलता हेाने पर किसी न किसी फसल से सुनिश्चित लाभ होगा। साथ-साथ अंतरवर्तीय फसल पद्धति में कीड़ों और रोगों का प्रकोप नियंत्रित रहता है।

सिंचाई एवं जल निकास

चूॅंकि फसल असिंचित दशा में बोई जाती है अत: लम्बे समय तक वर्षा न होने पर फसल में तीन सिंचाई करना आवष्यक रहता है। ब्रान्चिग अवस्था (बुवाई से 30 दिन बाद) पुष्पावस्था (बुवाई से 70 दिन बाद) फली बनते समय (बुवाई से 110 दिन बाद) फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। अधिक अरहर उत्पादन के लिए खेत में उचित जलनिकास का होना प्रथम शर्त है अत: निचले एवं अधो जल निकास की समस्या वाले क्षेत्रों में मेड़ो पर बुआई करना उत्तम रहता है। मेड़ों पर बुवाई करने से अधिक जल भराव की स्थिति में भी अरहर की जड़ो के लिए पर्याप्त वायु संचार होता रहता है।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवारनाशक पेन्डीमेथीलिन 0.75-1.00 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हेक्टर बोनी के बाद प्रयोग करने से खरपतवार नियंत्रण होता है । खरपतवारनाशक प्रयोग के बाद एक ंिनराई लगभग 30 से 40 दिन की अवस्था पर करना लाभदायक होता है। किन्तु यदि पिछले वर्षों में खेत में खरपतवारों की गम्भीर समस्या रही हो तो अन्तिम जुताई के समय खेत में फ्लूक्लोरोलिन 50 प्रतिशत (बासालिन) की 1 कि.ग्रा. सक्रिय मात्रा को 800-1000 ली. पानी में घोलकर या एलाक्लोर (लासा) 50 प्रतिशत ई.सी. की 2-2.5 कि.ग्रा. (सक्रिय तत्व) कि.ग्रा. मात्रा को बीज अंकुरण से पूर्व छिड़कने से खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है।

कटाई एवं गहाई

जब पौधे की पत्तियां खिरने लगे एवं फलियांसूखने पर भूरे रंग की हो जाए तब फसल को काट लें। खलिहान मे 8-10 दिन धूप में सूखाकर टै्रक्टर या बैलों द्वारा दावन कर गहाई की जाती है।

उपज

15-20 क्ंिवटल/हे. उपज असिंचित में, 25-30 क्ंिवटल/हे. सिंचित में प्राप्त कर सकते हैं एवं 50-60 क्ंिवटल लकड़ी प्राप्त होती है।

भण्डारण

भण्डारण हेतु नमी का प्रतिशत 8-10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। भण्डारण में कीटों से सुरक्षा हेतु अल्यूमीनियम फास्फाइड की 2 गोली प्रति टन प्रयोग करे।

उन्नतशील प्रजातियाँ

बांझपन रोग प्रतिरोधी किस्में-
बी.आर.जी.-2, टी.जेटी.-501, बी.डी.एन.-711, बी.डी.एन.-708, एन.डी.ए-2, पूसा-992, बी.एस.एम.आर.- 853, बी.एस.एम.आर.-736
शीघ्र पकने वाली प्रजातियाँ –
पूसा 855, पूसा 33, पूसा अगेती, पी.ए.यू.-881, (ए.एल.1507) पंत अरहर-291, जाग्रति (आई.सी.पी.एल. 151), आई.सी.पी.एल.-84031(दुर्गा)
मध्यम समय में पकने वाली-
टाइप 21, जवाहर अरहर 4, आई.सी.पी.एल. 87119 (आशा)
देर से पकने वाली प्रजातियाँ –
बहार, एम.ए.एल.13, पूसा-9, शरद (डी.ए.11)
हाईब्रिड प्रजातियाँ –
पी.पी.एच.-4, आई.सी.पी.एच. 8, जी.टी.एच.-1 आई.सी.पी.एच.-2671, आई.सी.पी.एच.-2740
उकटा प्रतिरोधी किस्में –
वी.एल.अरहर-1, बी.डी.एन.-2, बी.डी.एन.-708, विपुला, जे.के.एम.-189, जी. टी.-101, पूसा 991, आजाद (के 91- 25), बी.एस.एम.आर.-736, एम.ए.-6

राज्यवार प्रमुख प्रजातियाँ
राज्य प्रजातियाँ

आंध्रप्रदेश            लक्ष्मी, एल.आर.जी. 41, एल.आर.जी. 38, डब्लू.आर.जी. 27, डब्लू.आर. जी. 53, बहार, एन..डी.ए.1, डब्लू.आर.जी. 65,
                          सूर्या (एम.आर.जी. 1004)
बिहार                  एम.ए. 6, आजाद, डी.ए 11, आई.पी.ए. 203, बहार, पूसा 9, नरेंद्र अरहर 2
मध्यप्रदेश            जे.के.एम.189,7, टी.जे.टी.501, टी.टी. 401,आई.सी.पी.एल. 87119
छत्तीसगढ़            राजीव लोचन, एम.ए. 3, आई.सी.पी.एल. 87119, विपुला, बी.एस.आर. 853
गुजरात                जी.टी.100, जी.टी.101,2 बानस, बी.डी.एन. 2, बी.एस.एम.आर.853
हरियाणा             पारस, पूसा 992, उपास 120, ए.एल. 201,मानक, पूसा 855, पी.ए.यू. 881
कर्नाटक             वांबन 3,सी.ओ.आर.जी. 9701, आई.सी.पी.एल. 84031, बी.आर.जी.2, मारूती (आई.सी.पी.8863),
                         डब्लू.आर.पी.1, आशा (आई.सी.पी.एल. 87119), टी.एस.3, के.एम. 7
महाराष्ट्र              बी.डी.एन. 711, बी.एस.एम.आर. 736, ए.के.टी. 8811, पी.के.वी. तारा, विपुला, बी.डी.एन.708,
                        आई.सी.पी.एल. 87119, बी.एस.एम.आर. 175, वैशाली ( बी.एस.एम.आर 853)
पंजाब               ए.एल. 201, पी.ए.यू. 881,पूसा 992, उपास 120
उत्तर प्रदेश        बहार, एन.डी.ए.1, एन.डी.ए. 2, अमर, एम.ए. 6, एम.ए.एल. 13, आई.पी.ए. 203, उपास 120
राजस्थान          उपास 120, पी.ए. 291, पूसा 992, आशा (आई.सी.पी.एल. 87119), वी.एल.ए.1
तमिलनाडू        को. 6, सी.ओ.आर.जी. 9701, वंबन 3, आई.सी.पी.एल.151,वंबन 1 एवं 2
झारखंड          बहार, आशा,एम.ए.3,
उत्तराखंड       वी.एल.ए.1, पी.ए. 291,उपास 120

स्त्रोत:- सीडनेट, कृषि एवं किसान कल्याण मंर्तालय , भारत सरकार एवं भा.द.अनु.सं.-भा.कृ.अनु.प., कानपुर।

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *