खरीफ सीजन में सोयाबीन की खेती: IARI ने बताई उन्नत किस्में और वैज्ञानिक तकनीकें
26 मई 2025, नई दिल्ली: खरीफ सीजन में सोयाबीन की खेती: IARI ने बताई उन्नत किस्में और वैज्ञानिक तकनीकें – खरीफ सीजन की शुरुआत होते ही देश के विभिन्न हिस्सों में किसान भाई सोयाबीन की बुआई की तैयारियों में जुट जाते हैं. तिलहन फसलों में सोयाबीन एक प्रमुख फसल है, जो न केवल प्रोटीन और रेशे से भरपूर होती है, बल्कि पशु आहार और तेल उद्योग के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की उन्नत किस्मों और वैज्ञानिक खेती की तकनीकों को लेकर किसानों को जरूरी जानकारी दी है, जिससे बेहतर उत्पादन संभव हो सके.
किस तरह की भूमि है उपयुक्त?
सोयाबीन की अच्छी पैदावार के लिए भूमि का चुनाव सबसे जरूरी है. IARI के विशेषज्ञों के अनुसार, रेतीली लोम और दोमट मिट्टी जिसमें जैविक कार्बन की मात्रा अधिक हो, वह सोयाबीन के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है. खेत की गहरी जुताई हर 2-3 साल में एक बार जरूर करनी चाहिए ताकि मिट्टी में नमी और पोषक तत्वों का संतुलन बना रहे.
बुआई से पहले खेत की तैयारी
वर्षा शुरू होने के बाद खेत को 2-3 बार कल्टीवेटर और पाटा चलाकर समतल करना चाहिए. अंतिम बार कल्टीवेटर चलाते समय प्रति हेक्टेयर 5 से 10 टन गोबर की सड़ी खाद या 2.5 टन मुर्गी की खाद मिलाना फायदेमंद होता है.
क्षेत्र अनुसार उन्नत किस्मों का चयन
IARI ने भिन्न-भिन्न एग्रो-क्लाइमेट ज़ोन्स के अनुसार कुछ उन्नत किस्में सुझाई हैं:
- उत्तर मैदानी क्षेत्र (जैसे दिल्ली): पूसा 12, SL 952, NRC 130
- मध्य क्षेत्र (मध्यप्रदेश आदि): JS 20-34, JS 116, JS 335, NRC 128
बीज उपचार और बुआई का तरीका
बीजों का अंकुरण 70% से कम नहीं होना चाहिए. यदि अंकुरण कम है तो बीज दर को बढ़ाना चाहिए. बुआई से पहले बीजों को थीरम या कार्बेन्डाजिम जैसी फफूंदनाशक दवाओं से उपचारित करना जरूरी है.
बुआई पद्धति:
- कतार से कतार की दूरी: 35-45 सेमी
- पौधे से पौधे की दूरी: 4-5 सेमी
- बीज गहराई: 3-4 सेमी
- प्रति हेक्टेयर बीज मात्रा: 65-75 किग्रा
बुआई का उपयुक्त समय:
15 जून से 5 जुलाई के बीच का समय बुआई के लिए सबसे अच्छा माना जाता है.
पोषक तत्वों की सही मात्रा
प्रति हेक्टेयर सोयाबीन खेती के लिए यह उर्वरक मात्रा सुझाई जाती है:
- यूरिया: 56 किग्रा
- सुपर फॉस्फेट: 450-625 किग्रा
- म्यूरेट ऑफ पोटाश: 34-84 किग्रा
जल प्रबंधन और खरपतवार नियंत्रण
सोयाबीन एक वर्षा आधारित फसल है, परंतु यदि समय पर वर्षा नहीं होती तो जल प्रबंधन जरूरी हो जाता है. विशेषकर पौधे के नवजात अवस्था, फूल आने और फली भरने के समय पानी की आवश्यकता अधिक होती है.
खरपतवार सोयाबीन की प्रमुख समस्या है. इसके नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन यह कार्य कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर ही करें ताकि फसल को नुकसान न हो.
सोयाबीन की खेती अगर वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो यह किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प बन सकती है. IARI द्वारा सुझाई गई उन्नत किस्में और खेती की तकनीकें अपनाकर किसान भाई उपज बढ़ा सकते हैं और कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.
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