सनाय: एक बहुमुखी औषधीय पौधा
लेखक: अरुणा मेहता, पूनम, शबनम एवं हिमानी शर्मा , कॉलेज़ ऑफ़ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री, थुनाग, मंडी, हिमाचल प्रदेश
30 सितम्बर 2022, भोपाल: सनाय: एक बहुमुखी औषधीय पौधा – व्यापारिक दृष्टिकोण से केशिया वंश की विभिन्न प्रजातियों को औषधी के रूप में उपयोग में लाया जाता है जिनमे केशिया अन्गुस्टिफोलिया सबसे मह्त्वपूर्ण है। सनाय (सेन्ना) एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है जिसका उपयोग यूनानी व् अन्य पारंपरिक प्रणालियों में प्राकृतिक दस्तावार के रूप में किया जाता है।
बहुमुखी औषधीय पौधा “सनाय (सेन्ना)”
सेन्ना की पत्तियों और फली से पृथक रेचक सिद्धांत (सेनोसाइड ए और सेनोसाइड बी) रेचक दवाओं में महत्वपूर्ण तत्व होते हैं। सनाय सऊदी अरब और सोमालिया का मूल निवासी है।
इस औषधीय जड़ी बूटी की शुरुआत दक्षिण भारत में 11वीं शताब्दी में अरब के चिकित्सक और व्यापारी द्वारा की गई थी तथा पहली बार खेती तमिलनाडु राज्य की सूखी भूमि पर की गई थी। भारत में इसकी खेती, गुजरात, राजस्थान और तमिलनाडु में थिरुनेलवेली, रामनाथपुरम, मदुरई, सेलम और तिरुचिरापल्ली जिलों में की जाती है ।
वैज्ञानिक नाम: केशिया अंगुस्टीफोलीआ (Cassia angustifolia)
कुल: लेगुमीनोसे (Leguminosae)
अंग्रेजी: इंडियन सेन्ना
हिन्दी: सेन्ना, तिन्नेवैली सेन्ना, सोनामुखी
संस्कृत: स्वर्णपत्री, सनाय
महत्वपूर्ण भाग: फली के छिलके और पत्तियाँ
सनाय का क्षेत्र और उत्पादन
सनाय (सेन्ना) की खेती व्यावसायिक रूप से तमिलनाडु, राजस्थान और गुजरात में अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में लगभग एक लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में की जाती है। वर्तमान में तमिलनाडु में सेन्ना के तहत 8000-10000 हेक्टेयर क्षेत्र कम हो गया है जबकि राजस्थान में इस फसल के अंतरगत पैदावार एवं क्षेत्र दोनों बढ़ रहे हैं। भारत सेन्ना के पत्तों, फलियों, कुल सेनोसाइड का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है। यह निर्यात के माध्यम से विदेशी मुद्रा का दूसरा सबसे बड़ा अर्जक भी है। सनाय की भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत अच्छी मांग है और भारतीय उत्पादित सेन्ना का लगभग 75 प्रतिशत जर्मनी, फ्रांस, यूएसए और यूके को निर्यात किया जाता है। वर्तमान में भारतीय सेन्ना का निर्यात यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण पूर्व एशिया को भी किया जाता है।
आकृति विज्ञान
सनाय एक छोटा झाड़ीनुमा व बारहमासी पौधा है जिसकी ऊंचाई एक से दो मीटर तक होती है।
इसका तना सीधा, चिकना त्तथा हलके हरे रंग से लेकर भूरे रंग का होता है। पत्तियां संयुक्त होती है जिसमें चार से आठ जोड़े पत्रक होते है। पत्तियां हलकी मिठास लिए व विशिष्ट गंधयुक्त होती है। इसमें छोटे छोटे पीले रंग के फूल लगते है तथा फलियां चौड़ी आयताकार होती है जो पांच से आठ सेंटीमीटर लम्बी तथा दो से तीन सेंटीमीटर चौड़ी होती है।
सनाय (सेन्ना) की खेती
जलवायु: सेन्ना की खेती आमतौर पर बारिश पर निर्भर सूखी फसल के रूप में व बहुत कम सिंचित फसल के रूप में कुछ क्षेत्रों में की जाती है। यह फसल वृद्धि के लिए गर्म व शुष्क मौसम की मांग करता है और जल भराव की स्थिति के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। पौधे एक दिन की भी जलमग्न अवस्था होने पर जीवित नहीं रह सकते।
मृदा: यह फसल विभिन्न प्रकार की मिट्टी पर अच्छी तरह से उगती है, लेकिन मुख्य रूप से रेतीली दोमट, लाल दोमट और जलोढ़ दोमट मिट्टी उपयुक्त पायी गयी है। इस फसल में उच्च मिट्टी की लवणता के लिए अच्छी सहनशीलता है हालांकि इसके कारण निचली कुछ पत्तियों अक्सर झड़ जाती है। खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी का पीएच 7.0-8.5 है।
बुवाई का समय
उत्तर भारत में सामान्यतः बुवाई दो बार की जताई है।
- फरवरी से मार्च – सिंचित फसल
- जुलाई से नवंबर – बारिश पर निर्भर फसल
बुवाई की विधि एवं बीज दर
सामान्यत: किसान सनाय की बुआई छिटक कर करते हैं परन्तु 45×30 सेंटीमीटर पंक्ति एवं पौधों की दूरी पर बुआई करने से पश्चिम भारत में सबसे अधिक उपज प्राप्त हुई है। प्रसारण विधि द्वारा सेन्ना की बुवाई के लिए मोटे, रोगमुक्त और परिपक्व बीजों का प्रयोग करना चाहिए। सिंचित अवस्था में लगभग 15 कि0 ग्रा0 बीज प्रति हेक्टेयर तथा असिंचित अवस्था में लगभग 25 कि0 ग्रा0 बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है। बीज को पंक्तियों में डिबलिंग विधि द्वारा बोया जाए तो प्रति हेक्टेयर लगभग 6 किलो बीज पर्याप्त है। शीघ्र अंकुरण के लिए बीज की सतह को मोटे बालू से रगड़ने के बाद तीन घंटे के लिए पानी में भिगोकर बुवाई से पहले प्राकृतिक खाद के साथ मिला देना चाहिए। अंकुरण के समय होने वाली बिमारियों से बचने के लिए थीरम तीन ग्राम प्रति किलो की दर से बीज उपचार करना चाहिए।
सिंचाई
सेन्ना को आमतौर पर वर्षा आधारित फसल के रूप में उगाया जाता है और कुछ क्षेत्रों में इसे अवशिष्ट मिट्टी की नमी की स्थिति में उगाया जाता है। इसलिए, अधिकांश क्षेत्रों में सेन्ना बिना सिंचाई या सीमित सिंचाई सुविधाओं के साथ उगाया जाता है।
फसल की कटाई एवं उपज
जब पत्तियाँ पूरी तरह से विकसित, मोटी व हरे-नीले रंग की हो जाती हैं फसल की कटाई उस समय की जाती है। असिंचिंत खेत्रों में कटाई वर्ष में एक बार की जाती है जबकि सिंचित खेत्रों में अधिकतम पत्ती उपज प्राप्त करने के लिए तीन कटाई की सलाह दी जाती है। पहली कटाई आमतौर पर बुवाई के 90 दिन बाद की जाती है और दूसरी और तीसरी कटाई बुवाई के 150 और 210 दिनों के बाद की जाती है। फलियों को उनके हरे रंग को बनाए रखने के लिए परिपक्वता से थोड़ा पहले काटा जाता है। बीज उत्पादन के लिए फरवरी-मार्च महीने में जब फली का रंग भूरा हो जाता है, तब एकत्र किया जाता है। वर्षा सिंचित अवस्था में औसतन प्राप्त सूखे पत्ते एवं फली की उपज लगभग 600-700 किग्रा एवं 300 किग्रा प्रति हेक्टेयर क्रमश पायी गयी है। सिंचित अवस्था में उपज लगभग 1500-2000 किग्रा सूखे पत्ते एवं 800 किग्रा फली प्रति हेक्टेयर पायी गयी है।
श्रेणीकरण (रंग के आधार पर)
श्रेणी 1 – बड़े पत्ते और पीले हरे रंग की फली बाजार में उचित मूल्य प्राप्त करने के लिए।
श्रेणी 2 – पत्तियाँ और फलियाँ भूरे रंग की होती हैं।
श्रेणी 3 – छोटी व टूटी फलियां।
सामान्य तौर पर, परिपक्व पत्तियां में 2.0 से 2.5 प्रतिशत व फलियों में 2.5 से 3.0 प्रतिशत सेनोसाइड की मात्रा उद्योग के लिए स्वीकार्य हैं। पत्तियों को उचित सुखाने व् वर्गीकरण के बाद ठंडे और सूखे स्थान पर संग्रहित किया जाना चाहिए।
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