मिर्च को कीट-रोगों से बचायें
भारत में फसलों में मिर्च की खेती का एक महत्वपूर्ण स्थान है। मिर्च का प्रयोग हरी मिर्च की तरह एवं मसाले के रूप में किया जाता है, इसे सब्जियों और चटनियों में डाला जाता है। मिर्च में अनेक औषधीय गुण भी होते हैं, एस्कार्बिक अम्ल, विटामिन-सी की धनी होती है। भारत वर्ष में इसकी खेती प्राय: सभी प्रांतों में थोड़ी या बहुत मात्रा में इसकी व्यवासयिक रूप से खेती की जाती, यदि किसान इसकी खेती उन्नत व वैज्ञानिक तरीके से करे तो कम लागत पर अधिक उत्पादन एवं आय प्राप्त कर सकता है। वहीं मिर्च में कई प्रकार के कीट-रोग का आक्रमण भी होता है जिनका प्रबंधन दिया जा रहा है।
प्रमुख रोग: इसमें प्रमुख रूप से आद्र्रगलन, भभूतिया रोग, उकटा, पर्ण कुंचन एवं श्यामवर्ण व फल सडऩ का प्रकोप होता है।
आर्द्रगलन रोग: यह रोग ज्यादातर नर्सरी की पौध में आता है। इस रोग में सतह, जमीन के पास का तना गलने लगता है तथा पौध मर जाते हैं। इस रोग से बचने के लिए बुआई से पहले बीज का उपचार फफंदूनाशक दवा मेटालेक्जिल/कैप्टान दो ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें। इसके अलावा मेटालेक्जिल+ मेंकोजेब/कैप्टान दो ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर सप्ताह में एक बार नर्सरी में छिड़काव किया जाना चाहिए।
पद गलन रोग: यह रोग पीथियम या फाइटोप्थोरा नामक फफूंद से होता है, तब मिट्टी की सतह पर पौध के तने से धागे जैसी संरचना बन जाती है, और पौधा गिरकर सड़ जाता है। कभी-कभी ध्यान न देने पर पूरी पौध नष्ट हो जाती है, इसके नियंत्रण के लिए 1.5 से 2.0 ग्राम/लीटर कार्बेण्डाजिम 50 एस.पी. के घोल को 10-15 दिन बाद क्यारी में डालकर क्यारियों को तर कर दें।
एन्थ्रेक्नोज रोग / डाईबेक: यह रोग कोलाट्रोट्राइकम नामक फफूंद से होता है। रोग के शुरूआती लक्षणों में पत्तियों पर छोटे-छोटे विशेष आकार के गहरे, भूरे और काले धब्बे बनते हैं। रोग के तीव्रता होने पर शाखाएं ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगती है। फलों के पकने की अवस्था में छोटे-छोटे काले गोल धब्बे बनने लगते है बाद में इनका रंग धूसर हो जाता है जिसके किनारों पर गहरे रंग की रेखा होती है। प्रभावित फल समय से पहले झडऩे लगते हैं। अधिक आर्द्रता इस रोग को फैलाने मे सहायक होती है।
नियंत्रण : इसके बचाव के लिए मेंकोजेब या कार्बेण्डाजिम नामक दवा 2 ग्राम/लीटर पानी में घोल बनाकर पर्णीय छिड़काव करें।
भभूतिया रोग: यह रोग ज्यादातर गर्मियों में आता है। इस रोग में पत्तियों पर सफेद चूर्ण युक्त धब्बे बनने लगते है। रोग की तीव्रता होने पर पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती, पौधा बौना हो जाता है।
नियंत्रण: रोग से रोकथाम के लिये सल्फेक्स या कैलेक्सिन का 0.2 प्रतिशत सांद्र्रता का घोल 15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें।
लीफ कर्ल (मरोडिया या चुर्रामुर्रा रोग) : यह मिर्च की एक भयंकर बीमारी है। यह एक विषाणु जनित रोग है यह रोग बरसात की फसल में ज्यादातर आता है। इसमें पत्तियां अनियमित ढंग से मुड़ जाती हैं और पौधे की वृद्धि रुक जाती हैं तथा फलों का आकार कम होने लगता है अधिक प्रकोप होने पर पौध फल विहीन हो जाता हैं अगर इसके समय रहते नहीं नियंत्रण किया गया हो तो ये पैदावार को भारी नकुसान पहुंचाता है।
नियंत्रण: यह एक विषाणु रोग है जिसका कोई दवा द्धारा नित्रंयण नहीं किया जा सकता है। यह रोग विषाणु, सफेद मक्खी से फैलता है। अत: इसका नियंत्रण भी सफेद मक्खी से छुटकारा पा कर ही किया जा सकता है। बुवाई से पूर्व कार्बोफ्यूरान 3 जी, 8 से 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से भूमि में मिलायें तथा पौध रोपण के 15 से 20 दिन बाद डाइमिथिएट 30 ई.सी. 1 मिली लीटर प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 1/2 मिली लीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। यह छिड़काव 10 से 12 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार दोहरायेें। फूल आने के बाद उपरोक्त कीटनाशी दवाओं के स्थान पर मैलाथियान 50 ई.सी. एक मिली लीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। रोगयुक्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें इस रोग की प्रतिरोधी किस्में जैसे-पूसा ज्वाला, पूसा सदाबाहर और पन्त सी-1 को लगाना चाहिए।
मौजेक रोग: इस रोग में हल्के पीले रंग के धब्बे पत्तों पर पड़ जाते हैं। बाद में पत्तियाँ पूरी तरह से पीली पड़ जाती है तथा वृद्धि रुक जाती है। यह भी एक विषाणु रोग है जिसका नियंत्रण लीफ कर्ल मरोडिया रोग की तरह ही है। थ्रिप्स एवं एफिड ये कीट पत्तियों से रस चूसते हंै और उपज के लिए हानिकारक होते हैं।
नियंत्रण: मोजेक रोग की रोकथाम के लिए रोगग्रसित पौधे को उखाड़ कर जला दें। रसायनिक उपचार के लिए घुलनशील गंधक और डाइमिथिएट 30 प्रतिशत का पर्णीय छिड़काव लाभकारी है। अत्यधिक रोग होने की दशा में इमीडाक्लोप्रिड 19.8 प्रतिशत 8 मिली/लीटर का घोल बनाकर पर्णीय छिड़काव करें।
प्रमुख कीट:
थ्रिप्स : यह सफेद और भूरे रंग का कीट होता है जो पत्तियों निचली सतह पर चिपका रहता है और पत्तियों का रस चूसता है । यह बहुत छोटा सफेद रंग का होता है जो आसानी से दिखाई नहीं देता। चश्मा या लैंस की सहायता से देखने पर बहुत संख्या में दिखाई देते हैं। रस चूसने पर बहुत संख्या में दिखाई देते हैं। रस चूसने से पत्तियां अनियंत्रित रूप से मुड़ जाती है तथा पत्तियां छोटी भी हो जाती हैं अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों का गुच्छा बन जाता है। इस कीट के नियंत्रण के लिए 2.75 मिली/लीटर पानी और सल्फर 2 ग्राम/लीटर के घोल बनाकर पर्णीय छिड़काव पत्तियों की निचली सतह पर करें।
- बालकृष्ण पाटीदार
- धर्मेन्द्र पाटीदार
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