फसल की खेती (Crop Cultivation)

गर्मियों में लगाएं कद्दू, करेला, लौकी

28 मार्च 2025, नई दिल्ली: गर्मियों में लगाएं कद्दू, करेला, लौकी –

पोषकीय महत्व

कद्दूवर्गीय सब्जियों को मानव आहार का एक अभिन्न अंग माना जाता है। इन्हें बेल वाली सब्जियों के नाम से भी जाना जाता है जैसे – लौकी, खीरा, तोरई, गिल्की, करेला, कद्दू, तरबूज एवं खरबूज की खेती गर्मी के मौसम में आसानी से की जा सकती है। इन सब्जियों की अगेती खेती करके किसानों द्वारा अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। पोषण की दृष्टि से यह बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें आवश्यक विटामिन, खनिज तत्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं जो हमें स्वस्थ रखने में सहायक सिद्ध होते हैं। कद्दूवर्गीय सब्जियों की उपलब्धता वर्ष में आठ से दस महीने तक रहती है एवं इसका उपयोग सलाद के रूप में (खीरा, ककड़ी) पकाकर सब्जी के रूप में (लौकी, करेला, गिल्की, तोरई) मीठे फल के रूप में (तरबूज व खरबूज) मिठाई बनाने में (लौकी व पेठा) उपयोग मुख्य: रूप से किया जाता है।

Advertisement
Advertisement

उपयुक्त भूमि एवं खेत की तैयारी

कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन दुमट व बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है क्योंकि इसमें जल निकास अच्छी तरह से हो जाता है। मिट्टी में कार्बनिक तत्व पर्याप्त मात्रा में हो साथ ही पीएच मान करीब 6 से 7.5 के मध्य हो। बीज बुवाई से पूर्व खेत की एक गहरी जुताई एवं दो तीन हल्की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें एवं खेतों को समतल करने के लिए ऊपर से पाटा लगा दें।

खाद व उर्वरक

ज्यादातर बेल वाली सब्जियों में खेत की तैयारी के समय 15-20 टन प्रति हेक्टेयर अच्छी पकी हुई गोबर की खाद व 80 किलोग्राम नत्रजन की आधी मात्रा, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व उपयोग करें एवं शेष बची हुई नत्रजन की मात्रा को 20-25 दिन एवं 40 दिन की फसल अवस्था में दें।

Advertisement8
Advertisement

बीज बुवाई

खेत में लगभग 45-50 से.मी. चौड़ी तथा 30-40 से.मी. गहरी नालियां बना लें। एक नाली से दूसरी नाली की दूरी फसल की बेल की बढ़वार के अनुसार 2 से 5 मीटर तक रखें। जब नाली में नमी की मात्रा बीज बुवाई के लिए उपयुक्त हो जाये तो बुवाई के स्थान पर मिट्टी भुरभुरी करके थाले में एक स्थान पर 4-5 बीज की बुवाई करें।

Advertisement8
Advertisement

बीजदर

खीरा 2-2.5 कि.ग्रा., लौकी 4-5 कि.ग्रा., करेला 5-6 कि.ग्रा., तोरई 4.5-5 कि.ग्रा., कद्दू 3-4 कि.ग्रा., खरबूजा 2.5-3 कि.ग्रा., तरबूज 4-4.5 कि.ग्रा., टिण्डा 5-6 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।

बुवाई का समय

गर्मी फसल की बुवाई के लिए मध्य फरवरी से मार्च तक का समय उपयुक्त होता है।

सिंचाई

गर्मी की फसल में 6-7 दिन के अंतराल पर एवं आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करें।

उपज

खीरा 110-120, लौकी 300-350, करेला 80-100, तोरई 100-120, कद्दू 300-400, खरबूजा 150-200, तरबूज 200-250 तथा टिण्डा 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त होती है।

Advertisement8
Advertisement

सब्जियों की तुड़ाई उपरांत प्रबंधन

बेल वाली फसलें जैसे खीरा, घिया, तोरी, करेला व कद्दू में तुड़ाई कच्चे व मुलायम अवस्था में करें। फलों को डंठल सहित तोड़ें एवं इसके पश्चात् रंग व आकार के आधार पर श्रेणीकरण कर पैकिंग करें तथा पैक किये गये फलों को शीघ्र मण्डी पहुंचाये या शीतगृह में रखें।

कद्दूवर्गीय सब्जियों की विभिन्न किस्में व संकर प्रजातियां 
फसलकिस्म
लौकीपूसा हाईब्रिड-3, पूसा संदेश, अर्का बहार, पूसा नवीन, पंत लौकी चार, पूसा संतुष्टि, पूसा समृद्धि
करेला पूसा विश्ेाष, काशी मयूरी, पूसा दो मौसमी, पूसा हाईब्रिड 2
तोरई चिकनी तोरी – पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, पूसा चिकनी एवं धारीदार तोरी-पूसा नसदार, पूसा नूतन एवं सतपुतिया
खीरा पूसा संयोग, पूसा बरखा, पूसा उदय, पूसा हाईब्रिड 1
खरबूज सुगर बेबी, दुर्गापुर मीठा, अर्का मानिक
कद्दूपूसा विश्वास, पूसा विकास, पूसा हाईब्रिड 1
पेठा पूसा उज्जवले
खरबूजपूसा मधुरस, अर्का मधु, हरा मधु, अर्का राजहंश, दुर्गापुर मधु

कद्दूवर्गीय फसलों के प्रमुख कीट एवं रोग

  • लाल कद्द भृंग – इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों ही फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। वयस्क पौधों के पत्ते में टेढ़े-मेढ़े छेद कर देते हैं। जबकि शिशु पौधों की जड़ों, भूमिगत तने एवं भूमि से सटे फलों तथा पत्तों को हानि पहुंचाते हैं।
  • प्रबंधन – फसल खत्म होने पर बेलों को खेत से हटाकर नष्ट कर दें तथा फसल की अगेती बुवाई से कीट के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके प्रबंधन हेतु नीम तेल 5 मि.ली./लीटर पानी या डेल्टामेथ्रिन 250 मिली. प्रति एकड़ की दर से 150-200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। पीला चिपचिपा प्रपंच के माध्यम से भी इसका प्रबंधन कर सकते हैं।
  • फल मक्खी – इस कीट की मक्खी फलों में अंडे देती है तथा शिशु अंडे से निकलने के तुरंत बाद फल के गूदे को भीतर ही भीतर खाकर सुरंग बना देते हैं।
  • प्रबंधन – ग्रसित फलों को एकत्रित करके नष्ट कर दें तथा फल मक्खियों को आकर्षित करने के लिए मीठे जहर जो गुड़ 25 ग्राम प्रति लीटर पानी में खराब हुई सब्जियों के साथ में मिलाकर किसी मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन में 20-25 जगह पर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रखने पर फल मक्खी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसी के साथ-साथ फसलों की पुष्पन एवं फलन के समय फैरोमौन ट्रेप 12-15 प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से नियंत्रित किया जा सकता है।
  • सफेद मक्खी – इस कीट के शिशुओं व वयस्कों के रस चूसने से पत्ते पीले पड़ जाते हैं। इनके मधुबिन्दु पर काली फफूंद आने से पौधों की भोजन बनाने की क्षमता कम हो जाती है। जिससे उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  • रोकथाम – इस कीट की रोकथाम के लिए वर्टीसिलियम लैकेनी 3 मिली/लीटर पानी में या इमिडाक्लोप्रिड (17.8 एसएल) 1 मिली ली. प्रति 3 लीटर पानी में या स्पिनोसेड (45 एस.सी.) 1 मि.ली. प्रति 4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • चेंपा – चेंपा लगभग सभी कद्दूवर्गीय फसलों में नुकसान पहुंचाते हैं। ये फसलों के कोमल भागों से रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं।
  • रोकथाम – इसके रोकथाम के लिए वर्टीसिलियम लैकेनी 3 मिली/लीटर पानी में या इमिडाक्लोप्रिड (17.8 एसएल) 1 मिली ली. प्रति 3 लीटर पानी में या स्पिनोसेड (45 एस.सी.) 1 मि.ली. प्रति 4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • मृदु रोमिल आसिता – इस बीमारी से पत्तियों के ऊपरी भाग पर पीले घब्बे तथा निचले भाग पर बैगनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
  • रोकथाम- इसके नियंत्रण हेतु क्लोरोथेलेनिल+मेंकोजेब की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें तथा आवश्यकतानुसार 15 दिवस के अंतराल में छिड़काव करें।
  • चूर्णिल असिता – इस बीमारी से ग्रस्त पौधों पर सफेद चूर्णिल धब्बे दिखाई देते हैं तथा अधिक प्रकोप की स्थिति में पत्तियां गिर जाती हैं और पौधा मुरझा जाता है।
  • रोकथाम – रोगग्रस्त पत्तियों को काटकर पौधों से अलग कर दें। इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर एजोक्सीस्ट्रोबिन+ डाईफेनोकोनाजोल की 2 ग्राम/लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • मोजेक रोग – यह एक विषाणु जनित रोग है जो सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है इस रोग से प्रभावित पत्तियों की लंबाई व चौड़ाई कम रह जाती है तथा फलों का रंग व आकार भी प्रभावित होता है।
  • प्रबंधन – रोग रोधी किस्मों का चुनाव करें। पौधों में रोग के लक्षण दिखाई देते ही रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर खेत से दूर गड्ढे में दबाकर नष्ट कर दें। सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड (17.8 एसएल) 1 मिली ली. प्रति 03 लीटर पानी में या स्पिनोसेड (45 एससी) 1 मिली प्रति 4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्रामव्हाट्सएप्प)

(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)

कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.krishakjagat.org/kj_epaper/

कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.en.krishakjagat.org

Advertisements
Advertisement5
Advertisement