Editorial (संपादकीय)

नदी किनारे लगाएं – कद्दू, करेला, लौकी, टिण्डा

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भूमि व खेत की तैयारी : नदी के किनारों पर यदि सुरक्षात्मक उपाय उपलब्ध हों जहां कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अच्छी हो एवं जल भराव न हो वहां पर कद्दूवर्गीय सब्जियों को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। खरबूज को बलुई दोमट मिट्टी में अच्छी खाद मात्रा के साथ उगाकर अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। जहां बुवाई करनी है वहां पर 10-12 किग्रा गोबर खाद डालकर थाला बनते हैं।

जलवायु : कद्दूवर्गीय सब्जियों के उत्पादन के लिए कम से कम 20 डिग्री एवं अधिकतम 35-40 डिग्री तापमान उचित है। करेला, ककड़ी, खरबूज, तरबूज सभी ग्रीष्म ऋतु में जहां मृदा पीएच 5.5-6.5 के मध्य हो खेती आसानी से की जा सकती है।

उन्नत किस्में-

करेला- पूसा विशेष, पूसा दो मौसमी
लौकी- पूसा समर प्रौफेलिक राउण्ड, पूसा समर प्रौफेलिक लांग, पूसा नवीन
तरोई- पूसा चिकनी, पूसा नसदार
तरबूज- पूसा सरबती, पूसा मधुरस, हरा मधु, अर्का जीत, अर्का राजहंस

बीज उपचार एवं बुवाई

बुवाई के पूर्व 2-3 ग्राम थाइरम प्रति किग्रा बीज से बीजोपचार करें। प्रत्येक थाले में 4-5 बीज डालकर 3 सेमी गहराई पर बुवाई की जाती है। उर्वरक की उचित मात्रा का प्रयोग करते हुए नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय व फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय तथा शेष नाइट्रोजन एक माह के बाद देते हैं।

कद्दूवर्गीय सब्जियों को ग्रीष्म में नदियों के तट पर शैय्या बनाकर कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती आसानी से की जा सकती है। कद्दूवर्गीय सब्जियों में मुख्यत: कद्दू, करेला, लौकी, तुरई, टिण्डा, तरबूज, खरबूज, खीरा आदि महत्वपूर्ण है। ये सब्जियां खाने में अत्यंत स्वादिष्ट एवं पौष्टिकता से भरपूर होती हैं। इन्हें सब्जियों के अलावा फल एवं सलाद के रुप में उपयोग किया जाता है।

सहारा देने का तरीका

कद्दूवर्गीय सब्जियां नार वाली होती है एवं आसानी से फैलती है इन्हें सहारा देने के लिए लम्बे बांस गड़ाकर इसके ऊपर तार बांध कर तारों के बीज रस्सी लगाकर अच्छी तरह सहारा दिया जाता है।

पौध संरक्षण
प्रमुख कीट

कद्दू वाला लाल भृंग – यह कीट लाल रंग का होता है यह नई पत्तियों को खाकर छेद कर देता है इसके रोकथाम हेतु 2 ग्राम कार्बोरिल या 3 मिली क्लोरोफिल प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर सुबह के समय छिड़के।  आवश्यकता होने पर 15 दिन बाद पुन: दोहरायें।

फल मक्खी – यह फल मक्खी फलों में छेद करके फल के अंदर अण्डे देता है जिससे फल सड़ जाते हैं। यह फलों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाती है। फसल को इनसे बचाने के लिए 2 मिली मिथाइल पैराथियान प्रति लीटर पानी में गुड़ के घोल में मिलाकर छिड़कें।

बीज की मात्रा एवं बुवाई की दूरी
कद्दूवर्गीय सब्जियां बीज की मात्रा दूरी कतार कतार (मी.) पौध से पौध (सेमी)
खीरा 1.5-2.0 किग्रा/हे 1 50-60
लौकी 3.5-4.0 किग्रा/हे 1 50.6
कद्दू 4.0-6.0 किग्रा/हे 3.0-4.0 75-80
करेला 6-7 किग्रा/हे 1.0-2.0 50-60
खरबूज 2.0-2.5 किग्रा/हे 1.5-2.0 60
तरबूज 4.0-5.0 किग्रा/हे 2.5-3.4 90-100

बीमारियां

चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्डयू) – यह एक प्रकार की फफूंदी से फैलने वाली बीमारी है जिसका संक्रमण होने पर बेलों, पत्तियों एवं तनों पर सफेद परत चढ़ जाती है। इसकी रोकथाम हेतु प्रति हेक्टेयर 2 ग्राम बाविस्टीन प्रति लीटर पानी से हिसाब से घोल बनाकर छिड़कें।

मृदु रोमिल आसिता (डाउनी मिल्डयू) – इस बीमारी के प्रभाव से पत्तियों की निचली सतह पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं रोग का प्रकोप अधिक होने पर पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं तथा फलों का मीठापन कम हो जाता है।

रोग नियंत्रण – रोग के रोकथाम हेतु डाइथेन जेड-78 के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें एवं आवश्यकता पडऩे पर 15 दिन बाद पुन: दोहराये।

श्याम वर्ण (एन्थ्रेक्नोज) – इस रोग के प्रकोप से फूलों एवं पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। गर्म मौसम में प्रकोप अधिक होता है। रोगग्रसित भाग मुरझाकर सूखने लगते हैं।

रोग नियंत्रण – रोग के रोकथाम हेतु डाईथेन जेड-78 के 0.2 से 0.3 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।

  • रश्मि गौरहा एवं दीपमाला किण्डो
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