धान की सीधी बुआई तकनीक
धान की सीधी बुआई तकनीक
धान खाद्यान्न फसलों में गेहूँ के बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल है। खरीफ में धान की खेती के अंतर्गत ज्यादातर वर्षा आधारित क्षेत्र है जिनमे सिंचाई का साधन सीमित रहता है वहीं धान – गेहूं फसल पद्धति वाले क्षेत्रों में भूमिगत जलस्तर नीचे जाने, नहरों में पानी अंतिम मुहाने पर नहीं पहुंचने, श्रमिकों की कमी एवं मानसून के विलम्ब से आने के कारण धान की रोपाई का कार्य समय पर नहीं हो पाता है जिसके कारण उत्पादन प्रभावित होता है।
धान की खेती में ज्यादा संसाधन जैसे पानी, श्रम तथा ऊर्जा की आवश्यकता होती है एवं धान उत्पादन क्षेत्र में इन संसाधनों की कमी आती जा रही है। धान उत्पादन में जहाँ पानी खेतों में भर कर रखा जाता है जिसके कारण मीथेन गैस उत्सर्जन भी बढ़ता है जो की जलवायु परिवर्तन का एक मुख्य कारण है। रोपण पद्धति के लिए खेतों में पानी भरकर उसे ट्रैक्टर से मचाया जाता है जिससे मृदा के भौतिक गुण जैसे मृदा संरचना, मिट्टी संघनता तथा अंदरूनी सतह में जल की पारगम्यता आदि खराब हो जाती है जिससे आगामी फसलों की उत्पादकता में कमी आने लगती है। जलवायु परिवर्तन, मानसून की अनिश्चितता, भू-जल संकट, श्रमिकों की कमी और धान उत्पादन की बढ़ती लागत को देखते हुए हमें धान उपजाने की परंपरागत पद्धति-सीधी बुआई विधि को पुन: अपनाना होगा तभी हम आगामी समय में पर्याप्त धान पैदा करने में सक्षम हो सकते है।
धान में सीधी बुवाई की आवश्यकता क्यों
रोपण विधि से धान की खेती करने में पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है। अनुमान है की 1 किलो धान पैदा करने के लिए लगभग 4000 – 5000 लीटर पानी की खपत होती है। विश्व में उपलब्ध ताजे जल की सर्वाधिक खपत धान की खेती में होती है। पानी की अन्य क्षेत्रों में मांग बढऩे के कारण आने वाले समय में खेती के लिए पानी की उपलब्धता कम होना सुनिश्चित है। रोपण विधि से धान की खेती करने के लिए समय पर नर्सरी तैयार करना, खेत में पानी की उचित व्यवस्था करके मचाई करना एवं अंत में मजदूरों से रोपाई करने की आवश्यकता होती है। इससे धान की खेती की कुल लागत में बढ़ोतरी हो जाती है। समय पर वर्षा का पानी अथवा नहर का पानी न मिलने से खेतों की मचाई एवं पौध रोपण करने में विलम्ब हो जाता है।
पौध रोपण हेतु लगातार खेत मचाने से मिट्टी की भौतिक दशा बिगड़ जाती है जो कि रबी फसलों की खेती के लिए उपयुक्त नहीं रहती है जिससे इन फसलों की उत्पादकता में कमी हो जाती है। लगातार धान-गेहूं फसल चक्र अपनाने से भूमि की भौतिक दशा खराब होने के साथ-साथ उनकी उर्वरता भी कम हो गई है। इन क्षेत्रों में पानी के अत्यधिक प्रयोग से भू-जल स्तर में निरंतर गिरावट दर्ज होती जा रही है। ऐसे में धान की रोपण विधि से खेती को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है। धान की सीधी बुवाई तकनीक अपनाकर उपरोक्त समस्याओं को कम किया जा सकता है एवं उच्च उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
सीधी बुवाई के लिए उपयुक्त मशीने
धान की सीधी बुवाई के लिए जीरो टिल ड्रिल अथवा मल्टीक्राप प्रयोग में लाया जाता है। सीधी बुआई हेतु बैल चलित सीड ड्रिल का भी उपयोग किया जा सकता है। जिन खेतों में फसलों के अवशेष हो और जमीन आच्छादित हो वहा हैपी सीडर या रोटरी डिस्क ड्रिल जैसी मशीनों से धान की बुवाई करनी चाहिए। नौ कतार वाली जीरो टिल ड्रिल से करीब प्रति घण्टा एक एकड़ में धान की सीधी बुवाई हो जाती है। ध्यान देने योग्य बात है कि बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
बीज दर एवं बुआई
सामान्यतौर पर किसान भाई धान की सीधी बुआई में 75-100 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर प्रयोग करते हंै, जो कि अलाभकारी है। बीज दर को कम करके उत्पादन लागत को कम किया जा सकता है। सीधी बुवाई विधि हेतु 45 से 50 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। परन्तु बीज प्रमाणित हो तथा उनकी जमाव क्षमता 85-90 प्रतिशत होना चाहिए। अंकुरण क्षमता कम होने पर बीज दर बढ़ा लेना आवश्यक है। बुवाई से पूर्व धान के बीजों का उपचार अति आवश्यक है एक किलोग्राम बीज की मात्रा के लिए 0.2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाईक्लिन के साथ 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम मिलाकर बीज को दो घंटे छाया में सुखाकर सीड ड्रिल मशीन द्वारा बुआई की जाती है।
उर्वरक प्रबंधन : मिट्टी परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करें। सामान्यत: सीधी बुवाई वाली धान में प्रति हेक्टेयर 120-140 कि.ग्रा. नत्रजन, 50-60 किलो फास्फोरस और 30 किलो पोटाश की जरूरत होती है। नत्रजन की एक तिहाई और फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करें। शेष नत्रजन की मात्रा को दो बराबर हिस्सों में बांटकर कल्ले फूटते समय तथा बाली निकलने के समय कतारों में दें। इसके अलावा धान-गेहंू फसल चक्र में 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट का प्रयोग बुवाई के समय करें।
सिंचाई प्रबंधन : धान फसल पर किये गए अनुसंधानों से ज्ञात हुआ है कि धान के खेत में लगातार जल भराव की जरूरत नहीं होती है। धान की सीधी बुवाई के समय खेत में उचित नमी होना जरूरी है। सूखे खेत में बुवाई की स्थिति में बुवाई के बाद दूसरे दिन हल्की सिंचाई करें। बुआई से प्रथम एक माह तक हल्की सिंचाई के द्वारा खेत में नमी बनाए रखें। फसल में पुष्पन अवस्थ प्रारंभ होने से 25-30 दिन तक खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखे। दाना बनने की अवस्था लगभग एक सप्ताह में पानी की कमी खेत में नहीं होनी चाहिए। मुख्यत: कल्ला फूटने के समय, गभोट अवस्था और दाना बनने वाली अवस्थाओं में धान के खेत में पर्याप्त नमीं बनाए रखना आवश्यक है। कटाई से 15-20 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें जिससे फसल की कटाई सुगमता से हो सके।
खरपतवार नियंत्रण : सीधी बिजाई वाले धान में खरपतवार प्रकोप अधिक होता है। खरपतवार-फसल प्रतिस्पर्धा के कारण धान उत्पादन में 20-80 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। अत: सीधी बिजाई वाले धान में खरपतवार नियंत्रण अत्यावश्यक है। धान की सीधी बुआई में प्रथम 2-3 सप्ताह तक खेत में खरपतवार रहित अवस्था प्रदान करना उचित पैदावार के लिए आवश्यक है। सूखी अवस्था में धान की बुआई करने के बाद पेंडीमिथालिन 30 प्रतिशत की 3.3 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के दूसरे-तीसरे दिन बाद परंतु अंकुरण के पूर्व छिड़काव करें। इससे चौड़ी पत्ती तथा घासकुल के खरपतवारों का जमाव रुक जाता है। बुआई के 20-25 दिन बाद आलमिक्स 20 प्रतिशत की 20 ग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के साथ-साथ मोथाकुल के खरपतवार भी नियंत्रित रहते है। इसके बाद खरपतवार प्रकोप होने पर 1-2 निराई की जा सकती है।
धान की सीधी बुवाई तकनीक से लाभ
- धान की कुल सिंचाई की आवश्यकता का लगभग 20 प्रतिशत पानी रोपाई हेतु खेत मचाने (लेव) में प्रयुक्त होता है। सीधी बुआई तकनीक अपनाने से 20 से 25 प्रतिशत पानी की बचत होती है क्योंकि इस इस विधि से धान की बुवाई करने पर खेत में लगातार पानी बनाए रखने की आवश्यकता नही पड़ती है।
- सीधी बुआई करने से रोपाई की तुलना में 25-30 श्रमिक प्रति हेक्टेयर की वचत होती है। इस विधि में समय की बचत भी हो जाती है क्योंकि इस विधि में धान की पौध तैयार और रोपाई करने की जरूरत नहीं पड़ती है।
- धान की नर्सरी उगाने, खेत मचाने तथा खेत में पौध रोपण का खर्च बच जाता है। इस प्रकार सीधी बुआई में उत्पादन व्यय कम आता है।
- रोपाई वाली विधि की तुलना में इस तकनीक में उर्जा व इंधन की बचत होती है प्रति हेक्टेयर 35-40 लीटर डीजल की बचत होती है।
- समय से धान की बुआई संपन्न हो जाती है इससे इसकी उपज अधिक मिलने की संभावना होती है।
- धान की खेती रोपाई विधि से करने पर खेत की मचाई (लेव) करने की जरूरत पड़ती है जिससे भूमि की भौतिक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जबकि सीधी बुवाई तकनीक से मिट्टी की भौतिक दशा पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।
- इस विधि से किसान भाई जीरो टिलेज मशीन में खाद व बीज डालकर आसानी से बुवाई कर सकते हैं। इससे बीज की बचत होती है और उर्वरक उपयोग दक्षता बढ़ती है।
- सीधी बुआई का धान रोपित धान की अपेक्षा 7-10 दिन पहले पक जाता है जिससे रबी फसलों की समय पर बुआई की जा सकती है।
सीधी बुआई विधि
धान की सीधी बुआई दो विधिओं से की जाती है। एक विधि में खेत तैयार कर ड्रिल द्वारा बीज बोया जाता है। बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमीं होना आवश्यक है। दूसरी विधि में खेत में लेव लगाकर अंकुरित बीजों को ड्रम सीडर द्वारा बोया जाता है। बुवाई से पूर्व धान के खेत को यथासंभव समतल कर लेना चाहिए।
धान की सीधी बुवाई करते समय बीज को 2-3 से.मी. गहराई पर ही बोना चाहिए। मशीन द्वारा सीधी बुवाई में कतार से कतार की दूरी 18-22 से.मी. तथा पौधे की दूरी 5-10 से.मी. होती है। इस विधि में वर्षा आगमन से पूर्व खेत तैयार कर सूखे खेत में धान की बिजाई की जाती है। अधिक उत्पादन के लिए इस विधि से बुआई जुताई करने के उपरांत जून के प्रथम सप्ताह में बैल चलित बुआई यंत्र (नारी हल में पोरा लगाकर) अथवा ट्रैक्टर चलित सीड ड्रिल द्वारा कतारों में 20 सेमी. की दूरी पर करें।