गायों के सींग से खाद बनाने की विधि
14 अक्टूबर 2022, भोपाल: गायों के सींग से खाद बनाने की विधि – सींग के खोलों को एकत्र करें। ये खोल मृत गायों के सींग से निकाले जाते हैं। सींग खोल के चयन में ये सावधानियां आवश्यक हैं:
(अ) सींग खोल गाय का हो। वह गाय कम से कम एक या दो बार ब्याई हो।
(ब) सींग में छेद या दरार न हों।
(स) यदि सींग पर रंग किया गया है, तो उसे निकाल दें।
(द) सींग की जड़ में बने हुए छल्लों से गाय कितनी बार बच्चे दे चुकी है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। सींग खोल प्रत्येक गांव में मृत गायों से प्राप्त किया जा सकता है।
गोबर का चयन: सींग खोल में भरने के लिये गोबर दुधारू गाय का होना चाहिए। स्वस्थ गाय का गोबर ही प्रयोग में लाएं। गाय को पंद्रह दिन पूर्व तक कोई औषधि नहीं दी गई हो तथा हरा चारा खाई गाय का ही गोबर प्रयोग में लाएं। सींग खोल में भरने के लिये ताजे गोबर का ही प्रयोग करें।
सींग खोल गाडऩे के लिये गड्ढा: गड्ढा अच्छी उपजाऊ जमीन में ही बनाना चाहिए। जमीन में पानी का भराव नहीं होना चाहिए। सींग गाडऩे के लिये 30 से 40 से.मी. (एक से सवा फीट) गहरा गड्ढा खोदना चाहिए।
यदि इस स्तर पर मुरम आ जाए तो गड्ढे में जमीन के ऊपर की मिट्टी की परत बिछा दें। सींग की संख्या के अनुसार गड्ढे की लम्बाई-चौड़ाई करें।
यदि अधिक संख्या में सींग गाड़ रहे हों तो दो मीटर चौड़ा, चार मीटर लम्बा तथा 40 सेंटीमीटर गहरा गड्ढा बनाएं। सामान्यत: जिस तरह की मिट्टी में सींग बनाया जाता है, वह उसी मिट्टी के गुणों को ग्रहण कर लेता है। यदि मिट्टी काली है तो सींग खाद काला दिखेगा, यदि मिट्टी रेतीली हो, तो वह सींग खाद भी भुरभुरा होगा। भले ही खाद का रंग अलग हो, परंतु उसका असर एक-सा ही रहेगा।
सींग खाद बनाने की विधि
गाय के गोबर को अच्छी तरह मसलकर एक जैसा कर लें। यदि गोबर बहुत कड़ा हो तो थोड़ा सा पानी मिला लें। सींग के खोल में गोबर भरें। आवश्यकता होने पर सींग को पत्थर या ईंट पर हल्की सी थपकी दें, ताकि गोबर सींग खोल के अंदर तक पहुंच जाए।
जब सींग खोलों में गोबर भर जाए तो गड्ढे से निकाली हुई मिट्टी में थोड़ा सा पका हुआ गोबर खाद मिलाएं। यदि मिट्टी सूखी हो तो थोड़ा पानी मिलाकर मिट्टी में नमी पैदा कर लें। नमी इतनी हो कि मिट्टी का गोला बन जाए, लेकिन मिट्टी अंगुलियों के बीच से नहीं निकले।
सींगों को गड्ढे में उनके नुकीले सिरे ऊपर रखकर जमाएं। जब सारे सींग गड्ढे में भर दिए हों तो धीरे-धीरे गड्ढे को मिट्टी से भरें, ताकि सीग गिरे नहीं। गड्ढा मिट्टी से भरने के बाद गड्ढे के आसपास निशान के लिये चिन्ह लगा दें, ताकि सींग खाद निकालते समय आसानी रहे। समय-समय पर गड्ढे का निरीक्षण करते रहे। गड्ढे की मिट्टी में नमी बनाए रखें। मिट्टी सूखने से पहले पानी का छिड़काव कर नमी बनाए रखें।
सींग खाद बनाने का समय
खाद बनाने के लिये अक्टूबर मास का समय उत्तम है। भारतीय पंचांग के अनुसार क्ंवार महीने की नवरात्रि में या शरद पूर्णिमा तक सींग बनाने के लिये उत्तम समय है। सींग खाद में चंद्रमा की शक्तियों को कम करने का समय मिलता है। ठंड के दिन छोटे रहते हैं तथा सूर्य की गर्मी भी कम होती है। अत: चंद्रशक्तियों को अपना असर बढ़ाने के लिये काफी समय मिलता है। बायोडायनामिक पंचांग के अनुसार अक्टूबर मास में चंद्र दक्षिणायन हो तो सींग खाद बनाना चाहिए।
सींग खाद निकालने का समय: सींग के खोलों को सामान्यत: छह माह तक गड्ढे में रखा जाता है। बोलचाल की भाषा में चैत्र नवरात्रि में या मार्च-अप्रैल माह में जब चंद्र दक्षिणायन हो, तब सींग निकालकर उन पर लगी हुई मिट्टी को साफ कर उन्हें रख लें। एक साफ कागज या अखबार पर एक पत्थर रखकर सींग को हल्के से टकराएं, ताकि अंदर जो खाद बन गया है, वह बाहर आ जाए। इस तरह समस्त सींगों से खाद निकाल लें।
सींग खाद का भंडारण
खाद की मात्रा के अनुसार उसे मिट्टी के घड़े में (मटके में) हथेली से मसलकर ढेले तोड़कर बारीक करके रखें। खाद मटके में भरते वक्त उसमें नमी का ध्यान रखें। एकदम सूखा खाद नहीं भरें बल्कि इसे पानी छिड़ककर नम कर लें। इस घड़े को किसी ठंडे स्थान पर रखें या ठंडी जमीन में आधा गाड़ दें। समय-समय पर खाद को देखते रहें कि खाद में नमी तो है।
मटके का ढक्कन भी ढीला होना चाहिए, ताकि उसमें से अंदर हवा जा सके। इस समय में जीवाणुओं के प्रभाव से सींग में से निकले हुए खाद के डल्ले एक जीव होकर बारीक खाद में परिवर्तित हो जाते हैं। यदि खाद में नमी कम हो तो थोड़े पानी से उसे नम कर लेना चाहिए। पानी बरसात का या ट्यूबवेल का हो। नल का पानी नहीं लें।
सींग खाद के उपयोग का समय
सींग खाद का उपयोग एक फसल पर दो-तीन बार किया जाता है। पहला उपयोग बोनी से एक दो दिन पहले सांयकाल में किया जाता है। दूसरा जब फसल बीस दिन की हो जाए, तब किया जाता है। तीसरा 50-60 दिन जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि सींग खाद में चंद्रमा की शक्तियों का असर है। अत: चंद्रमा की अमृतमय शक्तियों का अधिक लाभ प्राप्त होने के लिये शुक्ल पक्ष में पंचमी से पूर्णिमा के बीच इसका उपयोग करना अधिक लाभप्रद होगा। बायोडायनामिक पंचांग देखकर चंद्र दक्षिणायन में भी इसका उपयोग किया जाए। अमावस के आसपास किया गया उपयोग चंद्र बल की कमी से उतना लाभप्रद नहीं होगा।
सींग खाद के उपयोग की विधि
30 ग्राम खाद तेरह लीटर पानी में मिलाएं। पानी कुएं का अथवा ट्यूबवेल का हो, नल का नहीं हो। इस मिश्रण को एक बाल्टी में डालकर एक लकड़ी के डंडे की मदद से गोल घुमाया जाता है, ताकि उसमें भंवर पड़ जाए। एक बार भंवर आने पर फिर से उसे उल्टी दिशा में घुमाया जाता है और भंवर पडऩे पर दिशा में पलट दी जाती है। इस तरह सींग खाद पानी के मिश्रण को एक घंटे तक अवर-नवर घुमाया जाता है। इस मिश्रण को झाड़ू या ब्रश की मदद से एक एकड़ में खेत की मिट्टी पर छिड़क दिया जाता है। इस मिश्रण का उपयोग एक घंटे में कर लेना चाहिए।
ध्यान रहे कि सींग खाद का उपयोग संध्याकाल में किया जाए तथा जमीन में नमी हो। अधिक क्षेत्रफल में सींग खाद का छिड़काव करने के लिये बड़े बर्तन जैसे कोठी आदि का प्रयोग घोल बनाने के लिये तथा स्प्रे पम्प (बिना नोजल के) का उपयोग छिड़काव के लिये किया जा सकता है। स्प्रे पम्प का साफ होना आवश्यक है, उसमें कोई रसायनिक अवशेष नहीं हो।
सींग खाद से लाभ
सींग खाद के दो -तीन साल के नियमित उपयोग से जमीन में गुणात्मक सुधार आ जाते हैं। इससे जमीन में जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है, केंचुए तथा ह्यूमस बनाने वाले जीवों की संख्या बढ़ जाती है।
जमीन भुरभुरी होने से जड़ें गहराई तक जाती हैं तथा मिट्टी में नमी अधिक समय तक रहती है। इसकी नमी धारण करने की शक्ति चार गुना बढ़ जाती है। दलहनी फसलों की जड़ों में नाड्यूलस की संख्या बढऩे से जमीन की उर्वरक शक्ति बढ़ती है।
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