रामतिल की खेती
रामतिल की खेती
रामतिल की खेती – भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जगनी के नाम से मसहूर रामतिल (गुइजोसिया एबीसीनिका) को लघु तिलहनी फसल माना जाता है। रामतिल की खेती भूमि के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। क्योंकि इसके पौधे भूमि के कटाव को रोकते हैं। और भूमि की उर्वरक क्षमता को बढ़ाते हैं। रामतिल को सदाबहार फसल कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा क्योंकि इसकी खेती सभी मौसमों में बखूबी से की जा सकती है।
यही नहीं वातावरण की प्रतिकूल परिस्थितियों (सूखा एंव अधिक वर्षा), गैर उपजाऊ मिट्टियों में भी कम निवेश पर रामतिल बेहतर उपज और आर्थिक लाभ देने में सक्षम है। इसके बीज में 32-40 प्रतिशत गुणवत्तायुक्त तेल तथा 18-24 प्रतिशत प्रोटीन विद्यमान होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से इसका तेल लाभकारी माना जाता है क्योंकि इसमें 70 प्रतिशत से कम असंतृप्त वसा अम्ल पाये जाते है। बीज से तेल निष्कर्षण पश्चात शेष खली (केक) पशुओं के लिए पौष्टिक आहार है। इसके तेल का उपयोग साबुन, पेन्ट, वार्निश आदि बनाने में भी किया जाता है।
मिट्टी : रामतिल की खेती उपजाऊ और बंजर दोनों तरह की भूमि में आसानी से की जा सकती हैं। इसकी खेती के लिए भूमि में जलभराव नहीं होना चाहिए। अच्छी पैदावार लेने के लिए भूमि का पी.एच. मान 5.8 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
खेत की तैयारी : हल या कल्टीवेटर के द्वारा खेत की दो बार गहरी जुताई कर पाटा लगा देने से खेत रामतिल की बुआई के लिए अच्छी तरह तैयार हो जाता है। अंतिम जुताई के समय लिंडेन धूल 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में मिला देने से दीमक का प्रकोप कम होता है।
उन्नत किस्में : जे.एन.सी. – 6 , जे.एन.सी. – 1, जे.एन.एस.-9, जे.एन.एस.-28, जे.एन.एस.-30, बीरसा नाईजर – 3, पूजा, गुजरात नाईजर – 1, एन.आर.एस. -96-1
बुआई प्रबंधन : बोने की विधि एंव पौध अंतरण: रामतिल की बोनी कतारों में दुफन, त्रिफन या सीडड्रिल द्वारा कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. तथा कतारों में पौधों से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखते हुये 3 से.मी. की गहराई पर करें। बोनी करते समय बीजों का पूरे खेत में (कतारों में) समान रूप से वितरण हो इसके लिए बीजों को बालू/कण्डे की राख/गोबर की छनी हुई खाद के साथ 1:20 के अनुपात में अच्छी तरह से मिलाकर बोयें।
बीजदर एवं बीजोपचार : रामतिल की बीजदर 5 से 7 किग्रा प्रति हे. है। फसल को बीजजन्य एवं भूमिजन्य रोगों से बचाने के लिए बोनी करने से पहले फफूंदनाशी दवा थायरम 3 ग्राम/किग्रा बीज की दर से उपचारित करें। इसके पश्चात् जैव उर्वरकों एजोटोबेक्टर एवं पी.एस.बी. 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा को बीजों के ऊपर समान रूप से फैलाकर हाथ से मिला दें तथा लगभग 20-30 मिनट तक छाया में सुखाने के बाद बोनी करेें। बीजोपचार के दौरान दस्ताने अवश्य पहनकर बीजोपचार करेें।
पोषक तत्व प्रबंधन: गोबर की खाद/कम्पोस्ट की मात्रा एवं उपयोग- जमीन की उत्पाकता को बनाए रखने तथा अधिक उपज पाने के लिए भूमि की तैयारी करते समय अंतिम जुताई के पूर्व लगभग 2 से 2.5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खेत में समान रूप से मिलायें।
संतुलित उर्वरकों की मात्रा देने का समय एवं तरीका: रामतिल की फसल हेतु अनुशंसित रसायनिक उर्वरक की मात्रा 40:30:20 न:फ:पो किग्रा/हे. है। जिसको निम्नानुसार देना चाहिये। 20 किलोग्राम नत्रजन 30 किलोग्राम फास्फोरस ़ 20 किलोग्राम पोटाश/हेक्टेयर बोनी के समय आधार रूप में दें। शेष नत्रजन की 10 किलोग्राम मात्रा बोने के 35 दिन बाद निंदाई करने के बाद दे। इसके पश्चात् खेत में पर्याप्त नमी होने पर 10 किग्रा नत्रजन की मात्रा फसल में फूल आते समय दें।
सिंचाई एवं जल प्रबंधन: रामतिल के पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत नही होती हैं। लम्बा सूखा होने पर फूल एवं बीज बनते समय सिंचाई करें।
खरपतवार नियंत्रण : रामतिल की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली निदाई -गुड़ाई बोनी के लगभग 15 से 20 दिन बाद डोरा चला कर करें एवं दूसरी निदाई -गुड़ाई बीज बोनी के 40 दिन बाद कर दें। रसायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए बीज की बोनी के तुरंत बाद एवं फसल अंकुरण से पूर्व पेन्डीमेथालिन 38.7 प्रतिशत की 750 मिली मात्रा को 500 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर समान रूप से छिड़काव करें या बोनी के 20 दिन बाद क्विजेलोफास इथाइल 1 ली. को 500 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर समान रूप से छिड़काव करें।
कटाई एवं गहाई : रामतिल की फसल लगभग 100-110 दिनों में पककर तैयार होती है। जब पौधों की पत्तियाँ सूखकर गिरने लगे, फल्ली का शीर्ष भाग भूरे एवं काले रंग का होकर मुडऩे लगे तब फसल को काट लें। कटाई उपरांत पौधों को ग_ों में बाँधकर खेत में खुली धूप में एक सप्ताह तक सुखाना चाहिये उसके बाद खलिहान में लकड़ी/डंडों द्वारा पीटकर गहाई करें।
उपज एवं भण्डारण : उपरोक्त उन्नत कृषि तकनीकी को अपनाने से फसल की औसत उपज 6 से 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो सकती है। गहाई उपरांत बीज को साफ कर धूप में 8-9 प्रतिशत नमी तक सुखाकर भण्डारण करें।