फसल की खेती (Crop Cultivation)

तिलहन का मुकुट सोयाबीन

12 जुलाई 2021,  तिलहन का मुकुट सोयाबीन –

सोयाबीन ने देश की ‘पीली क्रांति’ में विशेष भूमिका निभाई है। खाद्य तेल की आवश्यकता की पूर्ति हेतु देश में उगाई जाने वाली 9 प्रमुख तिलहनी फसलों में से अकेले सोयाबीन का योगदान 28.6 प्रतिशत है। सोया-राज्य मध्यप्रदेश के कृषकों के सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान में मुख्य भूमिका निभाने वाली इस फसल की व्यावसायिक खेती वर्तमान में मुख्य रुप से मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, तेलंगाना के साथ-साथ अब अन्य राज्यों के कृषकों द्वारा भी की जाती है।

भूमि

सोयाबीन की खेती क्षारीय/अत्याधिक लवण, रेतीली तथा पानी जमने वाली भूमि को छोडक़र प्राय: सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। लेकिन रेतीली-लोम से दोमट मिट्टी, मध्यम जलधारण क्षमता, पानी के निकास के साथ-साथ जैविक कार्बन से समृद्ध जमीन सोयाबीन के अधिक उत्पादन हेतु अत्यंत उपयुक्त पायी गई है।

जुताई

सोयाबीन की टिकाऊ खेती के लिये कम से कम 3-4 वर्ष में एक बार खेत की गहरी जुताई (20 से 30 सेमी.) करें। इससे मृदा को गर्मी तेज धूप लगने के कारण भूमि में उपस्थित खरपतवार, कीट तथा रोगों के बीज पलटकर नष्ट होने में तथा व फसल के पोषण के प्रबंधन में सहायता मिलती है। साथ ही वर्षा के जल को भूमि में समाहित कर संचय में सुविधा होती है। इसी प्रकार खेत की अधोभूमि में कठोर परत बन जाने से अपने खेत में 40 मीटर के अंतराल पर आड़ी एवं खड़ी दिशा में 4-5 वर्ष में एक बार सब-साईलर चलाने से कठोर परत को तोडऩे में सहायता मिलती है जिससे जमीन में नमी का अधिक से अधिक संचयन होता है।

जैविक खाद का प्रयोग

भूमि की उर्वराशक्ति बनाये रखने तथा उत्पादन में स्थिरता लाने हेतु यह आवश्यक है कि रसायनिक उर्वरकों के साथ-साथ गोबर या अन्य जैविक खाद का भी उपयोग किया जाए। अत: अंतिम बखरनी के पूर्व पूर्णत: पकी हुई गोबर की खाद (5 से 40 टन/हे.) या मुर्गी की खाद 2.5 टन प्रति हे. की दर से फैला दें। गोबर की खाद की उपलब्धता सीमित होने पर कृषक अपने खेत को विभिन्न भागों में बांटकर प्रत्येक वर्ष बारी-बारी से डालें।

यह भी सलाह है कि क्षारीय भूमि वाले क्षेत्रों के कृषक सल्फर आधारित उर्वरकों का प्रयोग अवश्य करें। चयनित उर्वरक स्त्रोतों में सुपर फास्फेट नहीं होने पर अंतिम बखरनी के समय गोबर/मुर्गी की खाद के साथ 150-200 किग्रा. प्रति हे. की दर से जिप्सम मिलाकर खेत में उपयोग करें। इसी प्रकार अम्लीय भूमि में चूना (600 कि.ग्रा/हे.) मिलाने की सलाह है। वर्षा के आगमन होने पर सोयाबीन की बोवनी हेतु विपरीत दिशा में दो बार कल्टीवेटर/बखर एवं पाटा चलाकर खेत को समतल करें।

बोवनी के तरीके

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सोयाबीन की बोवनी हेतु ट्रैक्टर चलित बहु-फसलीय सीड ड्रिल का उपयोग किया रहा है, जिसमें 14-18 इंच की दूरी पर एक साथ 5-9 कतारें बोई जा सकती हैं।
द्य चौड़ी क्यारियों पर बोवनी (बीबीएफ): बीबीएफ सीड ड्रिल के उपयोग से 4-5 कतारों में निश्चित दूरी पर बोवनी के साथ-साथ दोनों किनारों पर नालियां बनने से अतिरिक्त पानी का निकास तथा जल संचयन के कारण सूखे की स्थिति में लाभदायक होता है।
द्य कूड़ मेड़ पद्धति से (रिज एवं फरो) बोवनी: इस पद्धति में एक या दो कतारों के अंतराल पर नालियां बनती हैं।

अंकुरण परीक्षण

कृषकों को सलाह है कि अपने सोयाबीन बीज का बोवनी से पहले ही अंकुरण परीक्षण कर न्यूनतम 70 प्रतिशत से अधिक है या नहीं यह सुनिश्चित कर लें। परीक्षण हेतु 1&1 वर्ग मीटर की क्यारी बनाकर कतारों में 45 सेमी की दूरी पर 100 बीज बोएं तथा अंकुरण पश्चात स्वस्थ पौधों को गिन लें। यदि 100 में से 70 से अधिक पौधे अंकुरित हो तो बीज उत्तम है। अंकुरण क्षमता का परीक्षण थाली में गीला अखबार रखकर अथवा गीले थैले पर बीज उगाकर भी किया जा सकता है।

बीजोपचार एवं जैविक टीकाकरण

विभिन्न बीमारियों से सोयाबीन के बचाव हेतु बीजोपचार अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा रोगग्रसित पौधों के मरने से उपयुक्त पौध संख्या में कमी एवं उत्पादन में हानि होती है। अत: यह सलाह है कि कृषकगण बोवनी से पहले सोयाबीन बीज को अनुशंसित पूर्वमिश्रित फफूंदनाशक पेनफ्लूफेन + ट्रायफ्लोक्सिस्ट्रोबीन 38 एफ.एस. (1 मि.ली./कि.ग्रा. बीज) या कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत+थाइरम 37.5 प्रतिशत (3 ग्राम/कि.ग्रा. बीज) या थाइरम (2 ग्राम) एवं कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम) प्रति कि.ग्रा. बीज अथवा जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी (8-10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज) से उपचारित करें।
उपरोक्त अनुशंसित कवकनाशियों द्वारा उपचारित बीज को छाया में सुखाने के पश्चात् जैविक खाद ब्रेडीराइजोबियम कल्चर तथा पीएसबी कल्चर दोनों (5 ग्राम/कि.ग्रा बीज) से टीकाकरण कर तुरन्त बोवनी हेतु उपयोग करें। अपरंपरागत या नए क्षेत्रों में सोयाबीन की खेती करने की स्थिति में जैविक खाद की मात्रा दुगनी से तिगुनी (10-15 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से) कर बीजोपचार करें।
कृषकगण यह विशेष ध्यान रखें कि क्रमानुसार फफूंदनाशक, कीटनाशक से बीजोपचार के पश्चात् ही जैविक कल्चर/खाद द्वारा टीकाकरण करें। साथ ही कल्चर व कवकनाशियों को एक साथ मिलाकर कभी भी उपयोग में नहीं लाना चाहिए। जबकि जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी का उपयोग करने की स्थिति में अनुशंसित कीटनाशक से बीजोपचार पश्चात तीनों जैविक उत्पाद (रायजोबियम एवं पीएसएम कल्चर तथा ट्राइकोडर्मा विरिडी) को मिलाकर बीज टीकाकरण कर सकते हैं।

बोवनी का समय, दूरी एवं बीज दर

बुवाई का समय : 20 जून से 5 जुलाई, बीज दर 65 (कि.ग्रा./हे.), कतारों की दूरी : 45 (से.मी.)।
सोयाबीन वर्षा आधारित फसल होने के कारण मानसून की लगभग 10 सें.मी. वर्षा होने के पश्चात् ही बोवनी करें जिससे अंकुरित पौधों के विकास के लिये जमीन में पर्याप्त नमी बनी रहे।
सोयाबीन की बोवनी हेतु परंपरागत बोवनी यंत्र बैल चलित दूफन/तिफन या ट्रैक्टर चलित सीड ड्रील/बीबीएफ/मशीन का उपयोग किया जा सकता है। शीघ्र पकने वाली तथा कम लम्बाई वाली किस्मों की बोवनी 30 सें.मी. की दूरी पर तथा अधिक समयावधि वाली एवं अधिक लम्बाई वाली किस्मों को 45 सें.मी. लाइन से लाइन की दूरी पर बोएं। साथ ही बीज को 3 सें.मी. की गहराई पर बोवनी करते हुए पौधे से पौधे की कर 4-5 सें.मी. रखें। मानसून के आगमन में विलंब के कारण देरी से बोवनी होने की स्थिति में जल्दी पकने वाली किस्मों का उपयोग करें एवं लाइन से लाइन की दूरी घटाकर 30 सें. मी. रखें तथा बीज दर 25 प्रतिशत बढ़ाकर बोवनी करें। यह सावधानी रखें की बड़े दाने वाली किस्मों की बोवनी उथली करें। न्यूनतम 70 प्रतिशत अंकुरण के आधार पर मध्यम आकार के दाने वाली सोयाबीन की किस्में जैसे जे.एस. 20-29, जे.एस. 93-05, जे.एस. 20-69, के लिए बीज दर 65 किग्रा./हेे. तथा बड़े आकार के दाने वाली किसमें जैसे जे.एस.20-34, जे.एस. 95-60, आदि के लिए बीज दर लगभग 75 किग्रा./हे. रखें। अच्छे अंकुरण वाली, छोटे दाने वाली तथा फैलने वाली किसमें जैसे एन.आर.सी. 37, जे.एस. 97-52 के लिए केवल 45-50 किग्रा. प्रति हे. बीज दर पर्याप्त होगा।

खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग

पोषक तत्वों के उपयोग के हिसाब से सोयाबीन मध्यम आवश्यकता वाली फसल है। लेकिन यह अत्यंत आवश्यक है कि प्रयोग किये जा रहे पोषक तत्वों का प्रयोग संतुलित मात्रा में हो। अत: भूमि की उर्वराशक्ति/पोषकता बनाए रखने एवं निरंतर टिकाऊ उत्पादन लेने हेतु जैविक खाद की मात्रा 5-10 टन/हे. गोबर की खाद या 2.5 टन/हे. मुर्गी की खाद के प्रयोग के साथ-साथ संतुलित मात्रा में नत्रजन: स्फुर: पोटाश: गंधक का उपयोग अत्यंत आवश्यक होता है। यह भी ध्यान दें कि सोयाबीन की फसल में सभी पोषक तत्वों के प्रयोग की अनुशंसा केवल बोवनी के समय की गई है। अत: कृषकों को सलाह है कि सोयाबीन की खड़ी फसल मे उर्वरकों का प्रयोग केवल मृदा परीक्षण के आधार पर तथा कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर हीं करें। वे सोयाबीन बीज एवं दानेदार उर्वरकों को एक साथ मिलाकर कभी भी नहीं बोएं।

सोयाबीन के लिये पोषक तत्व

एन:पी:के:एस उर्वरकों के स्त्रोत एवं मात्रा
(कि.ग्रा./हे.)
25:60:40:20 56 कि.ग्रा. यूरिया, 375 कि.ग्रा.
सुपर फॉस्फेट एवं 67 कि.ग्रा.
म्यूरेट ऑफ पोटाश
उपरोक्त मात्रा के साथ-साथ जैविक खाद का भी प्रयोग करें।

अंतरवर्तीय फसलों का प्रयोग

असिंचित क्षेत्रों में जहां रबी की फसल लेना संभव नहीं हो वहां सोयाबीन के साथ अरहर की अंतरवर्तीय फसल उगाना अधिक लाभकारी है। सिंचित क्षेत्रों में सोयाबीन के साथ मक्का, ज्वार, कपास, बाजरा, आदि अंतरवर्तीय फसलों की काश्त करें जिससे रबी फसल की बोवनी पर प्रभाव न पड़े। अतिरिक्त आय के लिये धान के खेतों के किनारों पर भी सोयाबीन को उगाया जा सकता है।

अंतरवर्तीय फसलें

फसल प्रणाली अंतरवर्तीय फसल प्रणाली
सोयाबीन-गेहूं अथवा चना सोयाबीन +अरहर, सोयाबीन+मक्का
सोयाबीन-गेहूं-मक्का चरी, सोयाबीन+ज्वार, सोयाबीन+गन्ना
सोयाबीन-आलू-गेहूं या चना आम/अमरूद के बगीचे में सोयाबीन
सोयाबीन-लहसुन/आलू-गेहूं एग्रो फॉरेस्ट्री में सोयाबीन

सोयाबीन-सरसों

सोयाबीन-अरहर/कुसुम/ज्वार
अंतरवर्तीय फसल प्रणाली के लिये उपयुक्त फसल के साथ 4:2 के अनुपात में सोयाबीन व अंतरवर्तीय फसल की 30 सें.मी. की लाइन से लाइन की दूरी पर बोवनी करें। इसी प्रकार फल बागों (आम, पपीता, कटहल, अमरुद आदि) के बीच की खाली जगह में भी सोयाबीन की खेती की जा सकती है।
(स्त्रोत: भा.कृ.अनु.प.-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर)

कटाई एवं गहाई

फसल की कटाई उपयुक्त समय पर करने से फलियों के चटकने पर दाने बिखरने से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
फलियों का रंग बदलने पर या पूर्णतया समाप्त (पीला, भूरा अथवा काला) होने पर यह मान लें कि फलियां परिपक्व हो चुकी हैं। अत: 95 प्रतिशत फलियों का रंग बदलने पर (पकी हुई फलियों के दाने में नमी 14-16 प्रतिशत) पत्तियों के पीले पडऩे का इंतजार न करते हुए सोयाबीन की कटाई करनी चाहिये।
कटी हुई फसल को 2-3 दिन धूप में सुखा कर गहाई हेतु तैयार करें। जिस खेत में सोयाबीन के बाद रबी फसल की तुरन्त बोवनी करनी है, कटी हुई सोयाबीन को थ्रेशिंग फ्लोर पर स्थानांतरित करें तथा चटकने से होने वाले नुकसान/वर्षा से बचाने हेतु त्रिपाल से ढक़ के रखें। थ्रेशिंग के दौरान सोयाबीन की गुणवत्ता बनाये रखने हेतु थ्रेशर को धीमी गति (350-400 आर.पी.एम.) पर चलाने की सलाह है।

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