Crop Cultivation (फसल की खेती)

मध्य प्रदेश देश का अग्रणी दलहन उत्पादक राज्य

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म. प्र. में दलहन उत्पादन के पाँच सुनहरे दशक-2

  • डॉ. संदीप शर्मा, मो.: 9303133157,
    sharma.sandeep1410@gmail.com 

 

31 जनवरी 2023,  भोपाल । मध्य प्रदेश देश का अग्रणी दलहन उत्पादक राज्य –

राज्य में ग्रीष्मकालीन दलहनों की स्थिति: दलहनी फसलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये, मृदा स्वास्थ में सुधार, उपलब्ध सिंचाई सुविधाओं का उचित दोहन तथा कृषकों की आय वृद्धि के उद्देश्य से ग्रीष्मकालीन दलहन उत्पादन वर्तमान की आवश्यकता है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान के अंतर्गत वर्ष 2012-13 में एक कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। इस कार्यक्रम में ग्रीष्मकाल में सिंचाई सुविधायुक्त क्षेत्रों में मूँग, उड़द, लोबिया, ग्वार तथा कुलथी फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित किया गया। भारतवर्ष के 11 जायद दलहन उत्पादक राज्यों में मध्यप्रदेश का महत्वपूर्ण स्थान है। राज्य में ग्रीष्मकालीन मूँग तथा उड़द उत्पादित की जाती हैं। मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों में विगत चार वर्षों (2017-18 से 2020-21) के औसत आँकड़ों के आधार पर शीर्ष दस जिलों की सूचियाँ तालिका 8 और 9 में संकलित की गईं हैं। उक्त अवधि में राज्य के 51 जिलों में मूँग तथा 41 जिलों में उड़द की फसलें उत्पादित की गई। इस दौरान प्रदेश में जायद मूँग का रकबा, उत्पादन तथा उत्पादकता का औसत क्रमश: 486707.7 हेक्टर, 662065.7 टन तथा 1328 कि.ग्रा./हेक्टर रहा। उड़द की फसल 360206.6 हेक्टर रकबे में बोई गई जिससे 1315 कि.ग्रा./हेक्टर की उत्पादकता से 47521.6 टन उत्पादन प्राप्त किया गया। ग्रीष्मकालीन मूँग के रकबे एवं उत्पादन में होशंगाबाद तथा हरदा जिले क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर रहे जबकि उत्पादकता में होशंगाबाद तीसरे तथा हरदा जिला पाँचवें स्थान पर है। इसी प्रकार रकबे और उत्पादन में चौथे स्थान पर रहा सीहोर जिला मूँग की उत्पादकता की सूची में दूसरे स्थान पर रहा। उत्पादकता की सूची में प्रथम स्थान पर जबलपुर जिला रहा जोकि रकबे और उत्पादन में छठवें स्थान पर रहा (तालिका 8)।

तालिका 9 में ग्रीष्मकालीन उड़द के रकबे, उत्पादन तथा उत्पादकता के शीर्ष दस जिलों की सूचियाँ संकलित की गईं हैं। रकबे, उत्पादन और उत्पादकता में जबलपुर जिला अव्वल रहा जबकि रकबे और उत्पादन में छठवें स्थान पर रहा नरसिंहपुर जिला उत्पादकता की सूची में दसवाँ स्थान प्राप्त कर सका। अतएव कहा जा सकता है कि जबलपुर में जायद मूँग तथा होशंगाबाद जिलों में जायद उड़द की फसलों में क्षेत्र विस्तार की सम्भावनायें हैं (तालिका 9)। दलहन विकास निदेशालय द्वारा ग्रीष्मकालीन दलहनी फसलों के राज्यव्यापी सर्वेक्षण में पाया गया कि इन फसलों में तरल उर्वरकों का प्रयोग उत्पादकता वृद्धि में सहायक होता है। अतएव एनपीके तरल उर्वरक 500 मि. ली. प्रति एकड़ की दर से 50-100 कि. ग्रा. गोबर की खाद में मिश्रित कर बोनी के पूर्व खेत में मिलाने की अनुशंसा है। उक्त तरल उर्वरक का प्रयोग नत्रजन और पोटाश तत्वों का बहाव (लीचिंग) तथा स्फुर तत्व का मृदा में स्थिरीकरण रोकने में सहायक होता है। इसी प्रकार तरल राइजोबियम कल्चर तथा तरल स्फुर घोलक जीवाणुओं की प्रयोग भी प्रभावी है।

दलहन उत्पादन वृद्धि के प्रमुख कारक

उक्त उत्पादन वृद्धि भारत कीे दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम है। इस उपलब्धि में उन्नत किस्मों का विकास, उनकी परिस्थिति अनुकूल उत्पादन तकनीक पर अनुसंधान और विस्तार तथा दलहन उत्पादकों द्वारा अंगीकरण का प्रमुख योगदान है। इसके अतिरिक्त केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा कृषक हित में लागू और क्रियान्वित की गई नीतियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण हैं। कृषि अनुसंधान संस्थानों द्वारा वर्ष 2009-10 से 2019-20 की अवधि में चने की 59, मूँग की 36, अरहर की 21, उड़द की 32 तथा मसूर की 29 उन्नत किस्में और उनके अनुकूल उत्पादन तकनीकी विकसित की गई। इसी प्रकार अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों का सघन क्रियान्वयन भी दलहन उत्पादन में सहायक सिद्ध हुआ है। एक अनुमान के अनुसार दलहन उत्पादन की उपलब्ध तकनीक के अंगीकरण से वर्तमान उत्पादकता में 250 कि. ग्रा. की वृद्धि सम्भव है। राज्य सरकार द्वारा दलहन उत्पादकों के हितार्थ लिये गये नीतिगत निर्णयों जैसे ‘बीज संकुल’ की स्थापना, न्यूनतम समर्थन मूल्यों की उचित समय पर घोषणा तथा शासकीय स्तर पर खरीदी आदि ने प्रदेश के दलहन उत्पादकों को प्रोत्साहित किया है।

सम्भावना

दलहन उत्पादन में भारतवर्ष आत्मनिर्भरता की दहलीज पर खड़ा है। वर्तमान की आवश्यकता है कि दलहन अनुसंधान और विकास कार्यों को एक देशव्यापी अभियान के रूप  में संचालित किया जाये, साथ ही दलहन उत्पादकों के अनुकूल शासकीय नीतियों का क्रियान्वयन प्रभावी ढंग से किया जाये। दलहन अनुसंधानकर्ताओं के समक्ष कम अवधि में पकने वाली उन्नत किस्मों को विकसित करना एक चुनौती है जिससे दलहनी फसलें उत्पादकों, उपभोक्ताओं तथा उद्योग जगत की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें। ज्ञातव्य है कि दलहनी फसलें बदलते मौसम से अपेक्षाकृत अप्रभावित होती हैं परंतु बदलते मौसम तथा विभिन्न जैविक अवरोधकों के प्रति सहनशील किस्मों का विकास हमें दलहनी फसलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में सहायक होगा। यद्यपि दलहनी फसलें अपने पौष्टिक गुणों के कारण दैनिक मानव आहार का अविभाज्य अंग हैं, तथापि इन किस्मों में प्रोटीन और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे आयरन की उपलब्धता में वृद्धि की सम्भावनायें हैं। अतएव दलहन फसल उन्नयन कार्यक्रमों में दलहनी फसलों में पौष्टिकता विकास पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है। फसल विविधता स्थापित करने के उद्देश्य से देश के प्रमुख दलहन उत्पादक राज्य मध्यप्रदेश में अन्य लघु दलहनी फसलों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है जैसे कुलथी, तिवड़ा, चौलाई, फाबा बीन आदि। दलहन उत्पादन में प्रदेश की वर्तमान उपलब्धियों से स्पष्ट है कि हम दलहन उत्पादन के क्षेत्र में शीघ्र ही वांछित आत्मनिर्भरता प्राप्त कर लेंगे।

 

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