खम्हार: इमारती वृक्ष
लेखक: डॉ. रागनी भार्गवए और शशांक भार्गव, (सहायक प्रोफेसर), कृषि विश्वविद्यालयए एकलव्य विश्वविद्यालय दमोह, मध्य प्रदेश, भारत (जूनियर रिसर्च फेलो), जैव प्रौद्योगिकी विभाग, जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर, मध्य प्रदेश, भारत
07 अगस्त 2024, भोपाल: खम्हार: इमारती वृक्ष – खम्हार, सागौन की तरह ही मेलाइना अरबोरिया कुल का पौधा है जिसकी उॅंचाई मध्यम होती है इसे क्षेत्रीय भाषा में खम्हेर, गम्हारी, गम्हार, सिवन आदि नाम से भी जाना जाता है तथा यह प्रदेष के सभी कृषि जलवायु क्षेत्रों मेें उगाया जा सकता है। इसकी काष्ठ के बाद फर्नीचर के लिए उपयुक्त इमारती लकडी मानी जाती है। वर्तमान में 1 मीटर से अधिक गोलाई वाले लट्ठे की कीमत औसतन 15-20 हजार रूपये प्रति घनमीटर है। खम्हार का वृक्ष 15 से 20 वें वर्ष में पातन योग्य हो जाता है, किन्तु अच्छी मृदा तथा सिंचित स्थिति में 11 वें वर्ष में पातन योग्य वृक्ष तैयार हो सकते हैं।
प्राकृतिक वास स्थलः यह तेजी से बढ़ने वाला वृक्ष है एवं शुष्क (ड्राई), अर्द्धशुष्क (सेमी ड्राई) एवं आर्द्र तरह की जलवायु में पाया जाता है। यह भारत में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र एवं भारत के अलावा थाईलैण्ड, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, फिलीपीन्स, इनडोनेशिया जैसे विश्व के अनेक देशों में पाया जाता है।खम्हार का रोपण किसानों के लिए खेती के साथ आय का एक अच्छा स्त्रोत हो सकता है। किसान खेत की मेढ में अथवा खाली पडी भूमि में खम्हार का रोपण कर आर्थिक रूप से संपन्न बन सकता है।
खम्हार को जलोढ मिट्टी मे तथा पानी भरने वाली जगह पर नहीं लगाना चाहिये। खेत की मेडों पर खम्हार की बहुत अच्छी वृद्वि होती है। रोपण में अच्छी वृद्वि के लिए सिंचाई करना आवष्यक है तथा गड्ढे में उपजाउ मिट्टी के साथ दीमक रोधी पावडर आवष्यक मात्रा में डालना चाहिये।
सिल्वीकल्चरल विशेषताएँ
- तीव्र प्रकाश की मांग करने वाला
- सूखा सहन करने वाला
- पाले से बचाने वाला
- अग्नि के प्रति संवेदनशील
- बहुत अच्छा कॉपिसर
2.रोपण विधिः
अ पौधा तैयारी बीज अंकुरण एवं संग्रहणः खम्हार का बीज अप्रैल के दूसरे सप्ताह में उपलब्ध होता है एवंगूदे सहित ताजे बीजों की संख्या 800 – 900 प्रति किग्रा. होती है तथा सूखे बीजों की संख्या 1400 -1500 प्रति किग्रा. होती है। पौधा तैयार करने हेतु ताजे बीज को गर्म पानी में 24 घंटे रखने के पष्चात्सीधे पोलीथिन में बुबाई की जा सकती है। इनके बीजों को एक वर्ष से अधिक भण्डारण नही करना चाहिये क्योंकि इसके बाद बीजों की अंकुरण क्षमता अत्यंत कम हो जाती है ताजे बीजों की अंकुरण क्षमता 75-90 तिंशत होती है जो एक वर्ष के भण्डारण के पश्चात् 12-13 प्रतिशत रह जाती है।
ब रोपण: सामान्यतया इसे वर्षा ऋतु के प्रारंभ में लगाया जाता है यदि सिचाई के साधन उपलब्ध हों तो फरवरी – मार्च माह में पौधे लगाना अधिक अच्छा है। पोलीथिन में उगे हुए तथा 3 से 4 माह के पौधे 30ग30ग30 से. मी. के गड्ढे करके पौधे को अच्छी तरह दबाकर लगाना चाहिए गड्ढों में 3ः1 के अनुपात में मिट्टी एवं गोबर खाद तथा 20 ग्राम बी. एच. सी. पाउडर या अन्य उपलब्ध दीमक रोधी पाउडर या तरल दीमक नाशक दवा डाली जानी चाहिए।
स सिंचाईः अक्टूबर माह में सिंचाई प्रारंभ कर देना चाहिये। अक्टूबर से जनवरी तक सप्ताह में एक बार फरवरी से अप्रैल तक सप्ताह में दो बार और मई से वर्षांत तक प्रत्येक दूसरे दिन सिंचाई करना चाहिये।
3.अंतरालः 3ग3 मीटर अथवा 3ग2 मीटर का अंतराल उपयुक्त होता है। 3ग2 मीटर का अंतराल रखने पर 6 वें वर्ष में एक विरलन करने से 3ग4 मीटर का अंतराल प्राप्त होगा। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 3 मीटर रखी जानी चाहिये जिससे जुताई हेतु ट्र्ेक्टर चलाने में आसानी होगी।
4.खाद: प्रत्येक पौधे को 75 ग्राम यूरिया, 150 ग्राम पोटाश म्यूरेट और 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट 5 बार देना चाहिये। खाद देने के बाद सिंचाई अवश्य करना चाहिये। साथ में मिट्टी की गुडाई भी कर देना चाहिये। पहले वर्ष में जैविक खाद भी देना चाहिये। दूसरे वर्ष में खाद की मात्रा दुगुनी कर देना चाहिये।
5.अधो रोपणः खम्हार की पंक्तियों के बीच में 3 मीटर की चौंडाई में हल्दी का अधो रोपण अत्यंत उपयुक्त होगा और इससे प्रतिवर्ष अतिरिक्त आय प्राप्त हो सकती है। सिंचाई की व्यवस्था होने पर हल्दी का रोपण माह मई में किया जाता है तथा खम्हार के वृक्षों के अंतिम पातन तक हल्दी का रोपण किया जा सकता है।
विरलन से आयः यदि 3ग2 मीटर के अंतराल पर रोपण किया गया हो तो 6 वें वर्ष एक विरलन करना चाहिये और पंक्ति में एक पौधा छोडकर दूसरे पौधे की कटाई कर देनी चाहिए जिससे अंतराल 3ग4 मीटर हो जायेगा। विरलन के पश्चात् प्रति हेक्टेयर लगभग 800 पेडों से अतिरिक्त आय प्राप्त होगी।
6.अंतिम पातनः सामान्यतया निर्धारित विधि से खाद एवं सिंचाई देने से 11 वें वर्ष में अच्छी मृदा वाले सिंचित रोपण में खम्हार पौधे की छाती गोलाई 1 मीटर तक आ सकती है, जिससे प्रति पेड से लगभग 0.3 घनमीटर लकडी प्राप्त होगी। अधिक गोलाई की लकडी प्राप्त करने के लिये 15 -20 वर्ष का पातन चक्र भी रखा जा सकता है। खराब मृदा पर असिंचित रोपण में पातन योग्य गोलाई 15 -20 वर्षांे मे प्राप्त हो सकती है।
7.उपजः सामान्यतया 3ग3 मीटर अंतराल प्रति हेक्टेयर में लगभग 1000 पौधों से 250 – 300 घन मीटर काष्ठ प्राप्त होगी, बशर्ते अच्छी खाद , सिचाई, मिट्टी की गुडाई, कीटाणुनाशक एवं सुरक्षा का पर्याप्त ध्यान समय एवं मागं के अनुसार रखा गया हो।
8.सावधानियांः
- इसमें पत्तीभक्षक कीट, लकडी छेदक, जड सडन आदि रोग लगते हैं। नये रोपणों में 0.1से 0.2 प्रतिषत फेनिट्र्ोथियान 50 ई. सी. या इन्डो सल्फान 35 सी. सी. पानी में मिलाकर स्प्रेयर से छिडकाव करना चाहिये।
- जल भराव वाले क्षेत्रों में रोपण नहीं करना चाहिये।
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