फसल की खेती (Crop Cultivation)

कपास, दलहनी फसलों की उपज बढ़ाएं पोषण प्रबंधन से

12 अगस्त 2024, इंदौर: कपास, दलहनी फसलों की उपज बढ़ाएं पोषण प्रबंधन से – राष्ट्रीय कृषि अखबार कृषक जगत और कृषि क्षेत्र की प्रसिद्ध कम्पनी यूपीएल के संयुक्त तत्वावधान में गत दिनों कृषक जगत किसान सत्र अंतर्गत ‘पोषण प्रबंधन द्वारा कपास एवं दलहनी फसलों की उपज बढ़ाएंÓ विषय पर ऑन लाइन वेबिनार आयोजित किया गया। जिसके प्रमुख वक्ता श्री गौरव शर्मा, पोर्ट फोलियो लीड, बायोसॉल्यूशंस एवं श्री प्रशांत वानी, स्टेट बिजनेस हेड (मप्र) यूपीएल एसएएस लि. थे। दोनों वक्ताओं द्वारा किसानों को पोषण प्रबंधन द्वारा कपास एवं दलहनी फसलों की उपज बढ़ाने के गुर बताए गए। प्रश्नोत्तरी में वक्ताओं द्वारा किसानों की जिज्ञासाओं का समाधान किया गया, वहीं कृषि ज्ञान प्रतियोगिता के दो विजेताओं को यूपीएल की ओर से पुरस्कार में कम्पनी उत्पाद मॅकेरीना देने की घोषणा की गई। वेबिनार का संचालन कृषक जगत के संचालक श्री सचिन बोंद्रिया ने किया।

श्री गौरव शर्मा, पोर्टफोलियो लीड बियोसल्यूशस, यूपीयल एसएएस लि.
श्री प्रशांत वानी, स्टेट बिजनेस हेड, यूपीयल एसएएस लि., मध्य प्रदेश

यूपीएल का 123 देशों में व्यवसाय

आरम्भ में श्री वानी ने कहा कि यूपीएल हमेशा यही सोचती है कि किसानों का उत्पादन कैसे बढ़े और उनकी लागत कम हो। उन्हें अच्छी सुविधा और उत्पाद मिले इसलिए निरंतर प्रयास करते रहते हैं। किसानों को मशीनों के अलावा यूनिमार्ट से ट्रेनिंग देकर भी उनकी मदद करते हैं। भारतीय कंपनी यूपीएल देश के बाहर 123 देशों में अपना व्यवसाय करती है।

विभिन्न फसलों में पोषक तत्वों की अनुशंसा

श्री शर्मा ने दृश्य-श्रव्य माध्यम से कहा कि फसल को सही समय पर पोषण मिलने से उत्पादन में वृद्धि के साथ उसकी गुणवत्ता भी अच्छी होती है। जैविक तनाव जैसे रोग, कीट और खरपतवार होते हैं, जो दिखाई देते हैं, जबकि अजैविक तनाव, कम-ज़्यादा वर्षा, सूखा, तापमान का कम या अधिक होना और उमस के रूप में सामने आते हैं। प्राय: किसान जैविक तनाव पर ही ध्यान देता है, जबकि अजैविक तनाव में पोषक तत्वों का प्रबंधन बहुत आवश्यक होता है, अन्यथा इसका उत्पादन पर बहुत असर पड़ता है। डे लेंथ हर फसल की अलग होती है। शार्ट डे लेंथ वाली सोयाबीन फसल को 13 घंटे रोशनी की ज़रूरत होती है। कपास और दलहनी फसलों को 14 सूक्ष्म पोषक तत्वों की ज़रूरत होती है, तभी वह अपनी क्षमता के अनुसार उत्पादन दे पाती हैं। मध्य भारत में कपास फसल के लिए 100 किलो नाइट्रोजन, 5 किलो फास्फोरस और 200 किलो पोटाश/हे. की अनुशंसा की गई है। कपास की फसल में सूक्ष्म तत्वों फास्फोरस, कैल्शियम, पोटाश, मैग्नेशियम, जि़ंक और बोरान की कमी ज़्यादा होती है। जबकि फूल आने से पहले की अवस्था में नाइट्रोजन, सल्फर, मॉलीब्लिडनम और मैगनीज की कमी होती है। दलहनी फसलों में इसकी अनुशंसा 20 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस, 20 किलो पोटाश और 20 किलो सल्फर/हेक्टेयर है। दलहनी फसलों में जि़ंक, बोरान और पोटाश की कमी अधिक दिखती है।

फसलों में तत्वों की आवश्यकता और उपलब्धता

श्री शर्मा ने तत्वों की फसल की आवश्यकता और उपलब्धता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बुनियादी तत्व कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन प्रकृति से मुफ्त में मिल जाते हैं। बड़ी मात्रा में उर्वरक एनपीके का उपयोग किया जाता है जैसे यूरिया, एसएसपी, डीएपी और एमओपी उनसे ये दूर हो जाते हंै। द्वितीयक पोषक तत्व हैं कैल्शियम, सल्फर और मैग्नेशियम। महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व हैं जि़ंक, बोरान, आइरन, मैगनीज, मॉलीब्लिडनम, कॉपर, क्लोरीन और निकल हैं, जिनकी मात्रा तो कम रहती है, लेकिन फसल में इनका महत्व हमारे भोजन में नमक की भांति रहता है। फसल की विभिन्न अवस्थाओं में तत्वों की जरूरत की जानकारी देते हुए बताया कि जब जड़ों का फैलाव होना होता है या बीज से फसल अंकुरित होती है तब फेरस, जि़ंक और मैगनीज की ज़रूरत होती है। जब सोयाबीन, कपास और अन्य दलहन फसल की बढ़वार होती है तब फेरस, जि़ंक, मैगनीज, कॉपर और बोरान की ज़रूरत होती है। फिर जब फसल में फूल की अवस्था आती है उस समय सबसे अधिक पोषण की जरूरत होती है। तब फेरस और बोरान बहुत जरूरी है, ताकि कपास के फूल न गिरे और अच्छी बॉल बने। जब पौधा परिपक्व हो जाता है तो उसे कॉपर और मॉलीब्लिडनम की ज़रूरत होती है।

अजैविक तनाव के प्रकार

श्री शर्मा ने अजैविक तनाव के 6 प्रकारों की चर्चा करते हुए कहा कि यह अधिक गर्मी, ठंड, सूखा, अधिक वर्षा भारी तत्व (लेड केडमियम) और सेलीविटी (साल्ट) के रूप में सामने आते हैं। इनके कारण फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है। पौधा खुद के बचाव में आ जाता है और अपनी ऊर्जा का उपयोग उत्पादन को बढ़ाने में नहीं कर पाता है। मिसाल के तौर पर कपास की फसल की उत्पादन क्षमता 10 क्विंटल/एकड़ है, तो वह अजैविक तनाव के कारण साढ़े छह क्विंटल से अधिक उत्पादन नहीं दे पाती है। जैविक तनाव से फसल 11 प्रतिशत प्रभावित होती है, जबकि अजैविक तनाव से पौधा अपनी क्षमता का 65 प्रतिशत उत्पादन नहीं दे पाता है ।

अद्वितीय उत्पाद मॅकेरीना

श्री वानी ने कपास एवं दलहनी फसलों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी और अजैविक तनाव की समस्या का जिक्र करते हुए कहा कि अजैविक तनाव प्राकृतिक होता है , जो हमारे नियंत्रण में नहीं रहता है। वर्षा, तापमान की घट-बढ़ आदि कारणों से कपास की पुड़ी नीचे गिर जाती है। एक पुड़ी गिरती है तो 5 ग्राम कपास को खो देते हैं। कपास की पुड़ी गिरना आम प्रक्रिया है, लेकिन यदि हमने कपास के एक पौधे से गिरने वाली 5 पुड़ी में से 2 को बचा लिया तो समझिए हमने 10 ग्राम कपास को सुरक्षित कर लिया। इस समस्या का एकमात्र समाधान यूपीएल का अद्वितीय उत्पाद मॅकेरीना है, जो किसानों द्वारा जांचा, परखा और अपनाया गया उत्पाद है। मैक टेक्नोलॉजी का उत्पाद मॅकेरीना जो वस्तुत: मेटाबॉलिक एक्टिव कम्पाउंड है। फसल में अजैविक तनाव से चयापचय की क्रिया जो कुछ समय के लिए रुक जाती या असंतुलित हो जाती है, तो मॅकेरीना चयापचय की क्रिया को सुचारित रखता है, जिससे उत्पादन बढऩे की संभावना बढ़ जाती है। इसमें प्रकाश संश्लेषण के लिए हाइएस्ट ग्लाइसिन बिटेलिन, पौधे के मेटाबॉलिज्म के लिए एंटीऑक्सीडेंट और न्यूट्रिएंट अपटेक को बढ़ाता है। यह मिट्टी में मौजूद एनपीके तत्वों को अवशोषित करने में मदद करता है। इससे पौधों को ताकत मिलती है। कपास फसल में बॉल के आकार में वृद्धि होती है। जिन फसलों में तनाव होता है, उनके पत्तों का रंग बदल जाता है। सही प्रकाश संश्लेषण नहीं होने से पत्ते पीले या लाल हो जाते हैं। जबकि मॅकेरीना में एंटीऑक्सीडेंट एक्टिविटी अन्य प्रतियोगी उत्पादों की तुलना में 22 गुना अधिक होती है। पत्ता सुरक्षित रहता है। यह उत्पाद पौधे की 55 प्रतिशत क्षति को नियंत्रित करता है। मॅकेरीना से कपास फसल में 15त्न, धान में 17त्न और चाय फसल में 15त्न अधिक प्रकाश संश्लेषण होता है, जिससे पौधों को सभी सूक्ष्म पोषक तत्व मिलते रहते हैं। फसल में पौधे की चार महत्वपूर्ण अवस्थाओं में से दो प्रमुख अवस्थाओं फ्लावरिंग और फ्रूट फार्मेशन के समय मॅकेरीना का उपयोग करने से हर फसल तो स्वस्थ रहेगी ही उत्पादन भी अच्छा मिलेगा। प्रयोगों और किसानों के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि मॅकेरीना के उपयोग से 600 किलो/हे. अर्थात् 16त्न अधिक उत्पादन मिलता है। इसका डोज़ 250 मिली/एकड़ है। पहला फ्लावरिंग के समय और दूसरा स्प्रे 12-15 दिन बाद करें। इसे किसी भी कीटनाशक के साथ इस्तेमाल कर सकते हैं। मॅकेरीना के उपयोग से उत्पादन निश्चित रूप से बढ़ेगा।

कृषि ज्ञान प्रतियोगिता

पहला प्रश्न पूछा गया था कि मॅकेरीना का फसल की किन दो अवस्थाओं में प्रयोग करना चाहिए? श्री सुशील पाटीदार ने सही जवाब दिया कि मॅकेरीना का पहला स्प्रे फूल आने के समय और दूसरा स्प्रे इसके 15 दिन बाद करें। दूसरे प्रश्न में पूछा गया कि मैक टेक्नोलॉजी वाले उत्पाद मॅकेरीना का डोज़ क्या है? श्री विनोद चौहान, खरगोन ने सटीक जवाब दिया 250 मिली/एकड़। इन दोनों विजेताओं को यूपीएल कम्पनी की ओर से मॅकेरीना उत्पाद पुरस्कार में देने की घोषणा की गई।

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