फसल की खेती (Crop Cultivation)

सब्जियों में पोषक तत्वों का महत्व एवं कमी के लक्षण

लेखक: डॉ. रतनलाल सोलंकी (मृदा विशेषज्ञ), केवीके, चित्तौडग़ढ़ (राज.), solanki_rl@yahoo.com

14 नवंबर 2024, भोपाल: सब्जियों में पोषक तत्वों का महत्व एवं कमी के लक्षण – सब्जियों में पोष्टिक गुणों के बढ़ाने एवं अधिक पैदावार प्राप्त करने हेतु कई पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें से कुछ की अधिक तथा कुछ तत्वों की कम मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। जिन तत्वों की अधिक मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। उन्हे मुख्य पोषक तत्व कहते है। परन्तु सब्जी उत्पादन में इन दोनों प्रकार के तत्वों का समान महत्व है। बीज के अंकुरण से पहले फसल की कटाई तक हुई अवस्था में इन तत्वों की कमी से पौधों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं। यदि कमी को उर्वरकों द्वारा पूरा न किया जाय तो पौधे अपने अंगों जैसे पत्ती, फूल, फलों द्वारा कमी के प्रत्यक्ष संकेत जाहिर करने लगते हंै। इन संकेतों तथा लक्षणों को सही ढंग से पहचानना तथा उनका विधिवत उपचार करना एक सफल सब्जी उत्पादक के लिए नितांत आवश्यक होता है। इसलिए सब्जी उत्पादन से अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए पोषक तत्वों को आवश्यकतानुसार डालते रहें। इसकी जानकरी के लिए कुछ पोषक तत्वों का महत्व तथा उनकी कमी के मुख्य लक्षण दिए जा रहे है।

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नत्रजन

जीवित पदार्थों का यह एक मुख्य भाग है। इससें पौधों में वृद्धि तथा जनन कार्यों हेतु प्रोटीन, विटामिन, एवं क्लोरोफिल का निर्माण होता है। क्लोरोफिल में नत्रजन होने के कारण पत्तियों वाली सब्जियों में नत्रजन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। नत्रजन की कमी से पत्तियां प्रारम्भ में पीली हरी तथा बाद में पीली पड़ जाती है पौधों की वृद्धि कम हो जाती है। फलों के आकार, तने और जड़ों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। टमाटर में नत्रजन की कमी से पौधों की वृद्धि रुक जाती है तथा उसका हरा रंग समाप्त हो जाता है। तने तथा पत्तियों की शिराओं का रंग हल्का बैंगनी हो जाता है। जड़ों की वृद्धि भी रुक जाती है। और बाद में भूरे रंग की होकर मर जाती है। पौधे के पीला हो जाने के कारण उनकी फूल वाली कलियां गिर जाती हंै। ऐसी हालत में पौधे पर बहुत कम फल लग पातेे है। इसी प्रकार नत्रजन की कमी के लक्षण खीरा, कददू, मूली, प्याज तथा अन्य फसलों में भी प्रकट होते है। इस समस्या को दूर करने के लिए गोबर की खाद और नत्रजन धारी उर्वरकों का प्रयोग करें।

फास्फोरस

फास्फोरस पौधे की प्रारम्भिक अवस्था में जड़ों की अच्छी वुद्धि के लिए आवश्यक होता है। इससें पौधों कों मजबूती मिलती है तथा उसमें अधिक फूल आते हंैै। जल्दी ही पकने की अवस्था आ जाती है। फास्फोरस से बीजों का गुण बढ़ जाता है। फली वाली सब्जियों में फास्फोरस जड़ ग्रंथियों के बैक्टिरिया को उत्तेजित कर नत्रजन स्थिरीकरण में सहायक होता फास्फोरस की कमी से पौधों की वृद्धि धीमी पड़ जाती है और तने पतले तथा रेशेदार हो जाते हैं। आलू में फास्फोरस की कमी से पौधों की पत्तियों एवं शिराओं तथा तनों विशेष रुप से नीचे की तरफ लाल बैंगनी रंग के धब्बे प्रकट हो जाते हैं। पौधों की वृद्धि धीमी पड़ जाती है और तने पतले तथा रेशेदार हो जाते हंै फलस्वरुप फसल देर से पकती है। आलू में फास्फोरस की कमी से पत्तियों के किनारे मुड़ जाते हंै। तथा बाद में कुछ झुलसे हुए दिखाई देने लगते हंै।
इसकी कमी से टमाटर की पत्तियों के निचले भाग पर लाल बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई पडऩे लगते हैं, बाद में पूरा पौधा बैंगनी रंग का हो जाता है। मूली में भी उपरोक्त की भांति फास्फोरस की कमी से पत्तियों के नीचे का भाग लाल बैंगनी रंग का हो जाता है। प्याज में इसकी कमी के कारण पत्तियां छोटी रह जाती है।

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पोटाश

पोटाश पौधों को बीमारी से बचाने की क्षमता प्रदान करता है। यह पौधों में स्टार्च तथा शर्करा बनाने तथा उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए सहायक होता है। यह बीज में गुदेदार भाग को बढ़ाता है आलू, शकरकन्द शलगम के उत्पादन में इसकी अत्याधिक आवश्यकता होती है। यह पौधों में पारी का संतुलन बनाये रखता है। भूमि में पोटाश की कमी होने पर पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे प्रकट होने लगते हंै। तथा पत्तियों के किनारे मुडऩे लगते हैं और पत्ती की सतह सूखी दिखाई देने लगती है। फल समान रुप से नहीं पकते है । टमाटर में पोटाश की कमी से फल नर्म हो जाते है। और पकाव समान रुप से नहीं होता है। पत्तागोभी में उसकी कमी से प्रारम्भ में पुरानी पत्तियों के किनारे सूखने लगते हैं। और बाद में ऊपर की ओर मुडऩे लगते हैं आलू में इसकी कमी से पत्तियों का रंग नीला हो जाता है। आलू बनाने वाला तना छोटा हो जाता है जिससे जड़ों की बढ़वार रुक जाती है। और अंत में आलू का आकार छोटा हो जाता है फलस्वरुप उपज घट जाती है।

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कैल्शियम

कैल्शियम की कमी से पौधों का रंग हल्का हरा हो जाता है और पत्तियां पीछे की ओर मुड़ जाती है पौधा कमजोर हो जाता है। इसकी कमी से टमाटर के तने व पत्तियां ऊपर से नीचे की ओर सूखना प्रारम्भ कर देती हंै तथा फल के नीचे का भाग सूखकर सडऩे लगता है। मटर में प्रारम्भ में मध्य शिरा के पास लाल धब्बे बन जाते है। पौधे का रंग धीरे-धीरे सफेद होने लगता है और छोटा रह जाता है।

मैैग्नीशियम

इसका मुख्य कार्य क्लोरोफिल का निर्माण करना होता है मैग्नीशियम साधारण भूमि में भी पाया जाता है। परन्तु अम्लीय तथा अधिक रेतीली जमीन में इसकी कमी हो सकती है इसकी कमी से पत्तियों में रंग बिरंगे धब्बे पड़ जाते हैं। पुरानी पत्तियां अधिक प्रभावित होती हैं पत्तियों के शिरों तथा किनारों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं पातगोभी व फूलगोभी में इसकी कमी से चमकीले धब्बे बन जाते हैं। पौधे छोटे रह जाते हंै पत्तियों पर धारियां बन जाती हैं, अधिक प्रभाव होने पर धब्बे वाला मर जाता है। फसल देर से तैयार होती है।

मैगनीज

यह भी आक्सीकरण तथा अवकरण क्रिया में सहायक होता है। मृदा में मैग्रिशियम की कम मात्रा में मैगनीज की मात्रा होने पर पत्तियों का रंग पीला हो जाता है। टमाटर के पौधों में मैगनीज की कमी से पत्ती हल्की हरी होकर पीली पड़ जाती है। पौधों में फूल बहुत कम लगते हंै। यह सारे लक्ष्ण क्लोरोफिल की उचित मात्रा में संश्लेषण न होने से उत्पन्न होते हंै। मैगनीज की कमी 10-15 किग्रा/हेक्टर मैगनीज सल्फेट का मिट्टी में डालकर पूरी की जाती है।

आयरन

कोशिकीय श्वशन में आक्सीकरण तथा अवकरण क्रियाओं में आयरन का महत्वपूर्ण योगदान है। आयरन की कमी से पत्तियों के मध्य एवं अन्य शिराओं को छोडकर शेष भाग पीला पड़ जाता है। इस स्थिति को ग्लोरोसिस कहते हैं। टमाटर पौधों में नई पत्तियों व क्लोरोसिस तथा ऊतकों का साथ हो जाता है। मृदा में आयरन की कमी की पूर्ति 10 किगा प्रति हेेक्टेयर फेरस सल्फेट देकर के की जा सकती है।

बोरोन

बोरोन की कमी का प्रभाव पौधों की वृद्धि पर पड़ता है। पौधों की कलिका नष्ट हो जाती है। जिससे वौधे की वृद्धि रुक जाती है मृदा में बोरोन की कमी से पौधों की नई पत्तियां मुड़ जाती है। व्राझन की बीमारी हो जाती है इसकी कमी से फूलगोभी के फूल तथा तने पर धब्बे पैदा हो जाते है। फूल भूरा छोटा व कड़वा हो जाता है इसके उपचार हेतु 5 किगा/ हेक्टर बोरेक्स डालना लाभदायक होता है।

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जिंक

पौधों की समुचित वुद्धि के लिए जिंक भी महत्वपूर्ण है यह पौधे की वृद्धि तथा हारमोंस की क्रियाशीलता पर प्रभाव डालता है। इसकी कमी से बीज निर्माण रुक जाता है। टमाटर की पत्तियां पीली तथा छोटी हो जाती हैं। जिंक की कमी की पूर्ति 50 किग्रा/ हेक्टेयर जिंक सल्फेट मृदा में मिलाकर की जा सकती है। जिंक सल्फेट को फास्फोरस वाली खाद के साथ मिलाकर नही डालें क्योंकि यह फास्फोरस से क्रिया करके अघुलनशील जिंक सल्फेट बना देता है।

कॅापर

क्लोरोफिल निर्माण में कॉपर का महत्वपूर्ण योगदान है। कॉपर की कमी से पौधों की वृद्धि रुक जाती है। और पत्तियां पीली पड़ जाती है। इसकी कमी से प्याज के वल्व मुलायम हो जाते हंै तथा उसकी परतें पीली पड़ जाती है। कॉपर की कमी की मृदा में 25 किग्रा/हे. कॉपर सल्फेट डालकर पूरा करें।

मोलिब्डेनम

यह एंजाइम की क्रियाओं पर प्रभाव डालता है। नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए आवश्यक होता है। फलीदार फसलों में वायुमंडल से नाइट्रोजन स्थिर करने की क्षमता को बढ़ाता है। टमाटर के पौधों में मोलिब्डेनम की कमी से पुरानी पत्तियां मुड़ जाती हैं। इसकी कमी से फूलगोभी की पत्तियां सिकुड़ कर फीते के आकार की हो जाती है इसके उपचार हेतु 3-4 किग्रा सोडियम मोलिब्डेड प्रति हेक्टर की दर से भूमि में दें।

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