Crop Cultivation (फसल की खेती)

फसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए धान की खेती में मशीनीकरण

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  • हेमू शनिशरे , नरेंद्र सिंह चंदेल
  • योगेश राजवाड़े ,कोंगा उपेंदर, अनुराग पटेल
    भाकृअनुप.-केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान,
    नबीबाग, बैरसिया रोड, भोपाल

19 जुलाई 2022, फसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए धान की खेती में मशीनीकरण – धान देश की मुख्य खाद्यान्न फसल है। विश्व में भारत सबसे अधिक धान उत्पादक देशों में दूसरा स्थान रखता है। भारत के प्रमुख राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडू , केरल, आन्ध्रप्रदेश में मुख्य रूप से इसकी खेती होती है। देश में धान की खेती लगभग 43 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में होती है। भारत में खाद्यान्न उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत धान है तथा देश में लगभग 75 प्रतिशत लोगों का भोजन भी चावल है। धान का खाद्य सुरक्षा में एक अहम भूमिका है। धान खरीफ की फसल है, जिस तरह धान की फसल हेतु नम एवं गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। ठीक उसी प्रकार से रोगों की वृद्धि एवं प्रजनन हेतु जलवायु की आवश्यकता होती है। इस कारण धान की फसल पर अनेक रोगों का प्रकोप होता है। इस कारण फसल को कम हानि पहुंचाने वाले कीट भी काफी हानि पहुंचाने लगते हैं ।

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आजकल की समस्याएं प्रदूषित वायुमण्डल, बढ़ता हुआ तापमान, कार्बन डाईआक्साइड, भू-क्षरण, मृदा के साथ-साथ पानी स्रोत तथा रोग व खरपतवार से भारत में धान फसल बुरी तरह प्रभावित है। हमारे देश की समस्या खाद्य सुरक्षा के प्रति और जटिल होती जा रही है। इसके विपरीत हमारे प्राकृतिक संसाधनों का लगातार हृास होता चला जा रहा है क्योंकि संसाधनों का समुचित प्रयोग नहीं हो पा रहा है। हमारी कृषि आज भी पिछड़ी है, क्योंकि आज भी आधुनिक तकनीकी एवं मशाीनीकरण की कमी है। देश के किसानों में जागरूकता की कमी है और देश की अधिकांश कृषि लगभग 65 प्रतिशत वर्षा आधारित कृषि हैं और वर्षा आधारित कृषि क्षेत्र में कृषि कर पाना हमारे लिए भी चुनौती है। बदलते हुए वातावरण में इन सब समस्याओं से निदान पाना हम सब के लिए चुनौती बनती जा रही है। इन सभी समस्याओं में खरपतवार एवं रोग से लगभग 30-70 प्रतिशत धान की फसल क्षतिग्रस्त हो जाती है। फसलों की बुवाई समय से करने पर श्रम, जल, ऊर्जा/ईधन की बचत के साथ-साथ खरपतवारों की संख्या एवं रोगों में कमी तथा अधिक उत्पादन एवं आय परम्परागत विधि की तुलना में अधिक प्राप्त होता है।

भूमि की तैयारी में मशीनीकरण

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धान की रोपाई का कार्य करने से पहले उचित बीज क्यारी तैयार कर लें। ट्रैक्टर चलित मोल्ड बोर्ड (एमबी) प्लाउ और कल्टीवेटर दो सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले उपकरण हैं। रोटावेटर, डिस्क प्लाऊ, डिस्क हैरो, स्पाइक टूथ हैरो, स्प्रिंग हैरो, ब्लेड हैरो, जिगजैग हैरो, थ्री एंड फाइव टाइन कल्टीवेटर, क्लॉड क्रशर, चिजल प्लाउ, सब-सॉइलर, स्क्रैपर, बंड फार्मर और लेवलर का भी उपयोग किया जा रहा है। जुताई ऑपरेशन के बाद पडलिंग करनी है। पडलिंग पशु चलित कोनो-पुडलर, डिस्क हैरो-कम पोडलर, ट्रैक्टर चलित डिस्क हैरो-कम-पडलर, ट्रैक्टर चलित रोटरी ब्लेड पडलर और केज व्हील के साथ-साथ रोटावेटर यूनिट द्वारा की जाती है।

आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले पडलर की मुख्य विशेषताएं

क्र. मुख्य पडलर   क्षेत्र क्षमता   मूल्य (रु.)
       (हेक्टेयर/दिन)  
1 पशु चलित पडलर 0.8 1800
2 ट्रैक्टर चलित डिस्क हैरो-कम-पडलर 4 29000
3 ट्रैक्टर चलित वेट लैंड पडलर कम लेवलर 4 30000
धान प्रत्यारोपण में मशीनीकरण

धान को या तो सीधे बोया जाता है या रोपाई की जाती है। सीधी बुवाई में प्रसारण, सूखी मिट्टी में बुवाई और गीली मिट्टी में बुवाई शामिल है। सूखी मिट्टी में बुवाई सीड ड्रिल और जीरो टिल सीड ड्रिल द्वारा की जाती है। मैनुअल संचालित ड्रम सीडर गीली मिट्टी में चावल के बीज बोने के लिए लोकप्रिय हैं। पहले से तैयार बीजों को 24 घंटे भिगो कर तैयार किया जाता है और फिर बोरियों को ढककर 24 घंटे के लिए इनक्यूबेट करके बीज ड्रिल का उपयोग करके प्रसारित या लाइन में बोया जाता है। ड्रम सीडर का प्रयोग सीधे गीले मैदान में अंकुरित धान की बुआई के लिए प्रयोग किया जाता है। प्रत्यारोपण की कोई आवश्यकता नहीं है। यह मैन्युअल रूप से खींचा गया कार्यान्वयन यंत्र है। इसमें एक समय में 18 सेमी पंक्ति से पंक्ति अंतर की 12 पंक्तियां शामिल होती हैं। यह प्लास्टिक सामग्री से बना है। कृषि क्षेत्र की व्यापक जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से हम सर्वोच्च गुणवत्ता वाले धान ड्रम सीडर की पेशकश में शामिल हैं जो धान की बुआई करने के लिए उपयोग किए जाने वाले बागवानी उपकरण हैं। यह कुशल पेशेवरों की देखरेख में बेहतरीन गुणवत्ता वाले घटकों और तकनीकों का उपयोग करके डिजाइन और निर्मित किया गया है।

ड्रम सीडर और पावर टिलर संचालित सीड ड्रिल की मुख्य विशेषताएं

क्र. मुख्य विशेषताएं मैनुअल ड्रम सीडर पावर टिलर 
    2 पंक्ति 6 पंक्ति संचालित सीड ड्रिल
1 क्षेत्र क्षमता (हेक्टेयर/दिन) 0.030-0.034 0.04 0.015
2 मूल्य (रु.) 4500 6500 22000

खरपतवार की गंभीर समस्या के कारण किसान सीधे बीज बोने की तुलना में रोपाई को प्राथमिकता देते हैं। यह एक श्रम गहन ऑपरेशन है जिसके लिए 200-250 मानव- घंटा/ हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। पीक सीजन में मजदूर नहीं मिलते। भारत में 25-30 दिन पुराने जड़ धुले हुए पौधों की मैन्युअल रोपाई की जाती है, जबकि चीन, जापान और कोरिया में मैकेनिकल राइस प्लांटर्स का उपयोग मैट प्रकार की नर्सरी के साथ किया जाता है। चटाई प्रकार के अंकुरों को 20-25 सेमी मोटी अच्छी तरह से छलनी मिट्टी की परत के साथ खेत की खाद या जैविक खाद के साथ ट्रे या पॉलीथिन शीट पर रखा जाता है। हाल ही में सिस्टम ऑफ राइस इंटेंसिफिकेशन (एसआरआई) पद्धति में 15-20 प्रतिशत अधिक उपज देने के लिए पाया गया है, जहां 8-15 दिनों में रोपे को 25-30 सेमी की दूरी पर और पौधे से पौधे की दूरी 25 सेमी की दूरी पर प्रत्यारोपित किया जाता है। चावल की रोपाई के लिए हस्तचालित ट्रांसप्लांटर और पावर ऑपरेटेड ट्रांसप्लांटर्स व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं। आईआरआरआई हस्तचालित राइस ट्रांसप्लांटर, सेल्फ प्रोपेल्ड वॉक बिहाइंड टाइप ट्रांसप्लांटर और स्व चालित राइडिंग टाइप ट्रांसप्लांटर मैट टाइप नर्सरी का उपयोग करते हैं

क्र. मुख्य विशेषताएं हस्तचालित ट्रांसप्लांटर स्व हस्तचालित ट्रांसप्लांटर
    2 पंक्ति 4 पंक्ति  
1 क्षेत्र क्षमता (हेक्टेयर/दिन) 0.02 0.03 0.075
2 मूल्य (रु.) 6500 8500 125000

स्वचालित मशीन द्वारा धान की रोपाई
मैट टाइप नर्सरी तैयार करना

मैट टाइप नर्सरी उगाने के अंर्तगत मृदा को अच्छी तरह बारीक कर लेते है, फिर उसमें एक चौथाई सड़ी हुई गोबर की खाद अच्छी तरह मिला लेते है। इसके उपरान्त 5म1.2 मी. की क्यारी बनाकर उसमें उसी आकार की 0.50 गेज की मोटाई वाली पॉलीथिन शीट छिद्र करके क्यारी के उपर बिछा देते हंै। उसके उपरान्त पॉलीथिन शीट पर 2 से 2.5 सेमी. खाद व मिट्टी के मिश्रण को डाल देते है। मिट्टी को अच्छी तरह से समतल करके फैला देते है। इसके उपरान्त पानी का छिडक़ाव करके 10 मिनट के लिए छोड़ देते हैं। तदपश्चात, प्रति क्यारी 5 किग्रा. अंकुरित बीज को मृदा की ऊपरी सतह पर समान रूप से छिडक़ देते हैं। इसके पश्चात 2 से 5 मिमी. मिट्टी और गोबर के खाद के मिक्चर को अंकुरित बीज पर फैला देते हंै जिससे बीज अच्छी तरह से ढक़ जाये। फिर ऊपर से पानी का छिडक़ाव प्रतिदिन तीन बार दो से तीन दिन तक करते रहते हैं करीब चार से पांच दिन में धान के बीज का अच्छी तरह से जमाव हो जाने पर नर्सरी की दिन में दो बार सिंचाई करते रहते हैं। नर्सरी 20 से 22 दिन की हो जाने पर रोपाई के लिए उपयुक्त हो जाती हैं जब भी धान की नर्सरी पीली दिखाई देने लगे तो यूरिया तथा जिंक सल्फेट का घोल बनाकर समान रूप से दो बार छिडक़ाव कर देते हैं। इससे पौधे पूर्ण विकसित और स्वस्थ रहते हंै।

स्वचालित मशीन द्वारा धान की रोपाई

स्वचालित मशीन द्वारा धान की रोपाई करने के लिए सबसे पहले खेत में पानी भरकर दो से तीन बार पलेवा (गीली जुताई) करके खेत को अच्छी तरह पाटा लगाकर समतल कर लेते हैं। इसके उपरांत पलेवा किए हुए खेत को 12 घंटे के लिए छोड़ देते हंै। धान की रोपाई करते समय खेत में 3 से 5 सेमी पानी भरकर ही मशीन द्वारा रोपाई करें। क्योंकि खेत में पानी बिल्कुल न होने पर मशीन ठीक प्रकार से नहीं चल पाती है और यदि पानी ज्यादा हो जाये तो मशीन द्वारा मिट्टी में धान की पौध स्थापित कम हो पाती है। इस प्रकार पौधे पानी के उपर ज्यादा मात्रा में तैरने लगते हैं।

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फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए मशीन द्वारा खेत में रोपाई के लिए एक साथ आठ मैट नर्सरी की आवश्यकता होती हैं। नर्सरी को मशीन में दिए गये टे्र फ्रेम के आकार में काट कर फ्रेम में रख देते हैं सुचारू रूप से रोपाई करने के लिए तीन आदमियों की आवश्यकता होती हैं जिसमें एक मशीन चालक और दो मजदूरों को मैट टाइप नर्सरी को मशीन में बार-बार रखने के लिए आवश्यकता पड़ती है। इस प्लान्टर से रोपाई करनें पर 40 प्रतिशत श्रमिकों की बचत होती है। इसमें 23.8 सेमी की पंक्ति से पंक्ति की दूरी होती है और ट्रांस प्लांटिग की गहराई 2 से 6 सेमी होती है। यदि खेत अच्छी तरह तैयार हो तथा मशीन चलाने में किसी प्रकार की तकनीकी खराबी न आये तो इस मशीन द्वारा प्रति दिन 0.8 से 1.0 हेक्टेयर धान की रोपाई की जा सकती है।

खरपतवार प्रबंधन में मशीनीकरण

आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले वीडर्स की मुख्य विशेषताएं

क्र. मुख्य विशेषताएं        आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले वीडर
    फिंगर वीडर व्हील वीडर फिंगर वीडर स्टार-कोनो- वीडर सिंगल रो पावर वीडर
1 क्षेत्र क्षमता (हेक्टेयर/दिन) 0.022 0.012 0.013-0.017 0.025
2 मूल्य (रु.) 2050 320 1900 22000

धान की फसल में खरपतवार प्रमुख समस्या है। धान की फसल में निराई के लिए फिंगर वीडर, कोनो वीडर, पशु चलित वीडर, पावर टिलर संचालित और स्व चालित वीडर व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं और किसानों द्वारा उपयोग किए जाते हैं। यांत्रिक निराई की लागत 480 रुपये प्रति हेक्टेयर थी, जबकि मैनुअल निराई की लागत 1200 रुपये प्रति हेक्टेयर थी। मैनुअल निराई की तुलना में वीडर ने 60 प्रतिशत समय और 60 प्रतिशत लागत की बचत की।

निष्कर्ष

चावल के मशीनीकरण के वर्तमान परिदृश्य में खेत की तैयारी, बुवाइ/रोपाई, निराई , कटाई, थ्रेसिंग और कटाई के बाद के कार्यों से शुरू होने वाले विभिन्न क्षेत्र कार्यों के लिए कृषि मशीनरी/ उपकरणों की उपलब्धता शामिल है। यंत्रीकृत प्रणालियाँ इनपुट-उपयोग दक्षता में सुधार करती हैं, इनपुट और श्रम लागत में बचत लाता है और यह कृषि कार्यों में समयबद्धता प्राप्त करके कृषि में उत्पादन, उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने में मदद करता है।

धान की खेती में रोपाई, निराई और कटाई और थ्रेसिंग कार्यों में अधिकांश श्रम आवश्यकताओं की खपत होती है और इसलिए धान की खेती में श्रम की आवश्यकता को कम करने के लिए इन कार्यों को मशीनीकृत करने पर जोर दिया जाये।

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