लाभदायक गर्मियों की जुताई
लाभदायक गर्मियों की जुताई
रबी फसलों की कटाई का महत्वपूर्ण कार्य मार्च के अंतिम सप्ताह तक या अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक लगभग पूर्ण कर लिया जाता है, जब रबी फसलों की खेत से कटाई की जाती है, तब खेत में इतनी नमी रहती है कि खेतों की गहरी जुताई आसानी से की जा सकती है, कुछ ऐसे सिंचित क्षेत्र जहां फसलें देरी से बोई जाती हैं। उन क्षेत्रों में भी अप्रैल के द्वितीय सप्ताह तक सभी खेत खाली हो जाते है, और किसान भाईयों के पास खेतों की गहरी जुताई करने का समय मिल जाता है अत: मई और जून के महीनों में तापमान लगभग 40-45 सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है। इतने अधिक तापमान पर खेतों में फसलों को हानि पहुंचाने रोगाणु कीटों के अण्डे, कीटों की शंखी अवस्था खेत जुतने से ऊपरी सतह पर आ जाते हैं और सूर्य की तपन से नष्ट हो जाते है।
ग्रीष्मकालीन जुताई में कुछ बातें ध्यान रखें
- रबी फसल की कटाई हो जाने के तुरंत बाद खेतों में पर्याप्त नहीं रहती है अत: तुरंत जुताई करें विलम्ब से जुताई करने पर मिट्टी सूर्य की तेज धूप से कड़ी हो जाएगी जिससे गहरी एवं अच्छी जुताई नहीं होगी।
- खेतों की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करेंं ताकि मिट्टी बड़े-बड़े ढेलों के रुप में रहे जिससे गर्म लू जमीन में गहराई तक जाकर रोगजनकों एवं कीटों की शंखी अवस्था आदि को नष्ट कर दें।
- ग्रीष्म कालीन जुताई प्रत्येक वर्ष प्रत्येक खेत की करें, यह आवश्यक नहीं है इसके लिए खेतों को 3 हिस्सोंंंंं में बांटकर प्रत्येक वर्ष एवं हिस्से की गहरी जुताई करें इस प्रकार हर 3 वर्ष के अंतराल में प्रत्येक खेत की जुताई की जा सकती है। जुताई करते समय खेत के चारों और मेड़ बंधना करना आवश्यक हैं, वर्षा का पानी खेतों से बाहर नहीं जा सकेगा और पानी को जमीन सोख लेगी और खेतों की उर्वरता बरकरार रहेगी।
फसलों को हानि पहुंचाने वाले रोगाणु, रोगजनक, कीड़े, खरपतवारों के बीज फसलों की कटाई के बाद भूमि की दरारों (खाली जगहों) में सुषुप्तावस्था में पड़े रहते है और जब अगली फसल की बुवाई की जाती है और अनुकूल मौसम मिलने पर पुन: सक्रिय होकर फसलों को हानि पहुंचाना प्रारंभ कर देते है।
खेतों में फसलों की बुवाई के समय बार-बार एक निश्चित गहराई पर 6-7 इंच पर बखर या हेरो चलाने से खेतों में नीचे एक कड़ी परत बन जाती है जिससे वर्षा का सम्पूर्ण पानी खेतों द्वारा नहीं सोखा जाता है, जिससे पानी खेतों से बाहर निकल जाता है, और अपने साथ मिट्टी और फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को भी बहा ले जाता है, ग्रीष्मकालीन जुताई 9-12 इंच तक मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करने पर यह कड़ी परत टूट जाती है, और बरसात का पानी खेतों द्वारा अधिक मात्रा में सोख लिया जाता है, मिट्टी धूप तपने से भी भुरभुरी हो जाती है और मिट्टी में वायु का संचार बढ़ जाता है और खेतों की जल धारण क्षमता बढ़ जाती है, ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई से अनेक लाभ होते है।
खरपतवार नियंत्रण : फसलों के लिए खरपतवार एक बड़ी समस्या है कभी-कभी इनके कारण उत्पादन 20-60 प्रतिशत तक कम प्राप्त होता है कुछ ऐसे खरपतवार जैसे- कांस, मौथा, दूव इनकी जड़े भूमि में काफी गहराई तक चली जाती है जिसके कारण निंदाई-गुड़ाई एवं खरपतवारनाशी रसायनों से पूर्ण नियंत्रण नहीं हो पाता है ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करने से इन खरपतवारों के राइजोम, जड़े निकल आती हैं और सूर्य की तपन से सूख कर नष्ट हो जाती है और धीरे-धीरे खेतों से खरपतवार की समस्या कम हो जाती है।
जल संरक्षण : अधिकांशत: किसान भाई फसलों की आवश्यकता के अनुसार एक निश्चित गहराई पर 6-7 इंच लगातार जुताई करते हैं जिससे इस गहराई के नीचे मिट्टी की एक कड़ी परत बन जाती है। जिसके कारण खेतों में जल को अंत: करण करने में बाधा उत्पन्न करती है अत: अप्रैल महीने में गहरी जुताई (9 इंच से गहरी) करने से यह कड़ी सतह टूट जाती है जिससे वर्षा का सम्पूर्ण पानी खेतों द्वारा सोख लिया जाता है जिससे जल स्तर बढ़ जाता है।
कीट व्याधि नियंत्रण : रबी की फसलों को हानि पहुंचाने (रोग के रोगजनक, कीट लाख) वाले रोग के रोगजनक, रोगाणु हानिकारक कीड़े फसल की कटाई के बाद खेतों में ही खेतों की दरारों में सुषुप्तावस्था में पड़े रहते है और जब अगली फसल बोई जाती है तो रोगजनक रोगाणु कीड़े सक्रिय लेकर फसलों को हानि पहुंचाना प्रारंभ कर देते हैं। कभी-कभी इन रोगाणुओं एवं कीटों के कारण सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती है। ग्रीष्मकालीन जुताई से रबी फसल की कटाई के बाद खाली खेतों की गहरी जुताई हो जाने से ये रोगजनक, कीड़े भूमि की ऊपरी सतह पर आ जाते है और सूर्य की तपन से नष्ट हो जाते हैं।
मृदा उर्वता में वृद्धि : पृथ्वी पर पाये जाने वाले वायुमंडल में सबसे अधिक मात्रा में नाइट्रोजन गैस होती है जो कि फसलों के लिए अमोनिया रुप में नत्रजन उपलब्ध कराती है विभिन्न रसायनिक क्रियाओं के कारण यह गैस वर्षा जल में घुल जाती है जब पहली वारिश का पानी गिरता है जो उसमें नत्रजन की अधिक मात्रा होती है जो फसलों के लिए आवश्यक है खेत गहरे जुते होने पर यह वर्षा सम्पूर्ण पानी खेतों द्वारा सोख लिया जाता है तो खेतों की उर्वरता में वृद्धि एवं जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है खेत जुते होने से बरसात में मृदा कटाव से खेतों को बचाया जा सकता है साथ ही मिट्टी के साथ पोषक तत्वों को भी बहने से बचाया जा सकता है।