कपास की खेती के लिए आवश्यक सलाह
19 अप्रैल 2025, हिसार: कपास की खेती के लिए आवश्यक सलाह – चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (हरियाणा) द्वारा 16 से 30 अप्रैल 2025 तक की अवधि हेतु किसानों को कपास की खेती के लिए निम्नलिखित सलाह /सुझाव दिए गए हैं –
बिजाई का समय – देसी कपास की बिजाई अप्रैल माह में ही पूर्ण कर लें । बी. टी. नरमा की बिजाई मध्य मई तक पूरी कर लें। जून माह में नरमा की बिजाई न करें। बिजाई से पहले पलेवा गहरा लगाएं, बिजाई सुबह या शाम के समय की जानी चाहिए। पूर्व से पश्चिम की दिशा में कपास नरमा की बिजाई लाभकारी होती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए स्टोम्प 2 लीटर प्रति एकड़ का छिड़काव बिजाई के बाद या जमाव से पहले करें। बी. टी. कपास दो खंडों के बीच ग्रीष्मकालीन मूंग (MH 421) के दो खूड़ बीज सकते हैं। जो किसान ,टपका विधि से बीटी कपास की बुवाई करना चाहते हैं, वह जब तक जमाव नहीं होता, तब तक रोज 10 से 15 मिनट सुबह-शाम ड्रिप अवश्य चलाएं व जमाव के बाद हर चौथे दिन लगभग 30 से 35 मिनट ड्रिप चलाएं।
किसान मिट्टी की जांच अवश्य करवाएं व मिट्टी की जांच के आधार पर ही पोषक तत्व की मात्रा तय की जानी चाहिए। बी. टी. नरमा की बिजाई के समय एक एकड़ में एक बैग यूरिया, एक बैग डी.ए.पी, 30 से 40 किलोग्राम पोटाश व 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट (21 प्रतिशत) खेत की तैयारी के समय अवश्य डालें। देसी कपास की बिजाई के समय एक एकड़ में 15 किलोग्राम यूरिया व 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट अवश्य डालें।
उन्नत किस्में – हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा 432 विकासित देसी कपास की उन्नत किस्में एच डी -123 एवं एच डी- 1970 है
किसान बी. टी. नरमा का विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश किया हुआ बीज ही लें । इसकी जानकारी के लिए आप जिले के कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं। बी टी नरमा का बीज प्रमाणित संस्था या अधिकृत विक्रेता से ही लें तथा इसका पक्का बिल अवश्य लें।
किस्म | रोएं उतारे बीज (कि.ग्रा. प्रति एकड़ ), | रोएंदार बीज (कि.ग्रा. प्रति एकड़ ) |
अमेरिकन कपास- | 6 -8 | 8-10 |
बी.टी. नरमा की संकर किस्में – | 0.850 | – |
देसी कपास की संकर किस्में – | 12 -15 | – |
देसी कपास – | 5.0 | – |
बी.टी. नरमा के दो पैकेट प्रति एकड़ के हिसाब से बुवाई करें। कतार से कतार व पौधे से पौधे की दूरी क्रमश: 100 x 45 सेंटीमीटर या 67.5 x 60 सेंटीमीटर रखें।
बीज का उपचार – जो किसान , अमेरिकन कपास (नॉन बी टी) या देसी कपास की बुवाई करना चाहते हैं बढ़िया परिणाम के लिए बिजाई से पहले नीचे दी गई दवाइयों से बीज को उपचारित करें। बिजाई से पहले रोए वाले बीज (6 8 किलोग्राम) का 6 से 8 घंटे तक तथा रोए उतारे गए बीज (5-6 किलोग्राम) का केवल 2 घंटे तक निम्नलिखित दवाइयों से उपचार करें।
एमिशन- 5 ग्राम, स्ट्रेप्टोसाइक्लीन-1 ग्राम, सक्सीनिक उपचारित करें। 1 ग्राम, को 10 लीटर पानी में मिलाकर इन दवाइयों से बीज उपचारित करने से पौधों का बहुत से फफूंद तथा जीवाणुओं से बचाव हो जाता है। यह उपचार फसल को 40 50 दिन तक ही बचा सकता है। इसके बाद छिड़काव कार्यक्रम आरंभ कर दें।
जिन क्षेत्रों में दीमक की समस्या हो वहां उपयुक्त उपचार के बाद बीज को थोड़ा सुखाकर 10 मिली लीटर क्लोरपाइरीफॉरा 20 ई. ई. सी. व 10 मिली लीटर पानी प्रति किलो बीज की दर से मिलाकर थोड़ा-थोड़ा बीज पर छिड़के व अच्छी तरह मिलाएं तथा बाद में 30 40 मिनट बीज को छाया में सुखाकर बिजाई करें।
महत्वपूर्ण सावधानियां – वर्तमान में गुलाबी सुंडी के प्रति बी. टी. नरमा का प्रतिरोधक बीज उपलब्ध नहीं है अतः 3G, 4G एंड 5G के नाम से आने वाले बीजों से सावधान रहें। गुलाबी सुण्डी बी टी नरमे के दो बीजों (बिनौले) को जोड़कर ‘भंडारित लकड़ियों में निवास करती है, इसलिए लकड़ी व बिनौला का भण्डारण सावधानीपूर्वक करें।
किसान अपने खेत में या आसपास रखी गई पिछले साल की नरमा की लकड़ियों के टिन्डे एवं पत्तों को झटका कर अलग कर दें एवं इकट्ठा हुए कचरे को नष्ट कर दें। इन लकड़ियों के टिन्डो में गुलाबी सुंडी निवास करती है अतः यह कार्य अप्रैल महीने के अंत तक जरूर कर लें।
जिन किसानों ने अपने खेतों में बी जी नरमा की लकड़ियों को भंडारित करके रखा है या उनके खेतों के आसपास कपास की जिनिंग व बिनौला से तेल निकालने वाली मिल लगती है उन किसानों को अपने खेतों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि इन किसानों के खेतों में गुलाबी सुंडी का प्रकोप अधिक होता है। विश्वविद्यालय द्वारा कपास की खेती के लिए हर 15 दिन में वैज्ञानिक सलाह जारी की जाती है, अतः उसके अनुसार ही सस्य क्रियांए एवं कीटनाशकों का प्रयोग करें।
अधिक जानकारी के लिए निम्नलिखित नंबरों पर संपर्क करें – 8002308139 , 7015105638 , 9812700110 ,9418530069 ,9041126106 ,9002911670 9466812467 8901047834 । कपास अनुभाग, आनुवंशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग अनुसंधान निदेशालय, चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार।
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