फसल की खेती (Crop Cultivation)

मटर की उन्नत खेती कर लाभ कमायें

मटर रबी में बोई जाने वाली महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। मटर की खेती सब्जियों के लिये हरी फलियों एवं सूखे दानों के लिये की जाती है। सूखे दाने के वजन 0.1 से 0.36 ग्राम होता है। तना खोखला, पत्तियां तितलीनुमा ओर फलियां अनेक दानों वाली चपटी आकार की होती है। मटर के सूखे दानों में 20-22 प्रतिशत तथा हरी फलियों में 7.0 प्रतिशत प्रोटीन होता है। मटर का उपयोग मल्टी अनाज के रूप में किया जाता है। हरे दाने सब्जी के रूप में, सूखे दाने का उपयोग सब्जी, दाल, सूप व मिक्स रोटी के रूप में किया जाता है। दाल को चाट के रूप में तथा हरे दाने डिब्बे बंद परिरक्षित कर अन्य सब्जी के साथ वर्ष भर उपयोग किया जाता है।

जलवायु: मटर की बुवाई अच्छे अंकुरण के लिये 5 से 20 डिग्री सेन्टीग्रेड उपयुक्त होता है। परन्तु वृद्धिकाल में अधिक वर्षा हानिकारक होती है।

भूमि: मटर की खेती की अधिक पैदावार के लिये उत्तम उर्वरता एवं जल निकास वाली दोमट व मटियार दोमट मृदा सर्वोत्तम होती है। जिसका पीएच 6-7.5 हो।

खेत की तैयारी : खेत की अन्तिम जुताई के समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद 20-25 टन प्रति हेक्टर मिला दें। खेत की सफाई कर लेने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई तथा 2-3 जुताई देशी हल से करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें तथा पाटा चलाकर समतल कर लें।

भूमि उपचार: यदि दीमक की समस्या हो तो क्लोरोपायरीफॉस पाउडर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर खेत में मिला दें।

उर्वरक प्रबंधन : आधार खाद के रूप में निम्नलिखित पोषक तत्व रसायनिक खादों से दें।

तत्व नत्रजन फास्फ़ोरस पोटाश सल्$फर मॉलिब्डिनम
मात्रा किग्रा/हे. 30 60 40 20 1

बीज व उसका उपचार : अगेती किस्मों की बीज दर प्रति हेक्टर 80-100 किग्रा, माध्यम किस्मों की 70-80 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज को बुवाई पूर्व फफंूदनाशक 3 ग्राम बाविस्टीन दवा से प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करें। इसके बाद बुवाई के समय राइजोवियम कल्चर की भी बीज के ऊपर परत चढ़ा दे।

मटर की मुख्य उन्नत प्रजातियां निम्रानुसार हैं।
क्र. किस्म  फसल अवधि विवरण उपज क्विंटल/हेक्टर
1 अर्किल 60-70 दिन 55-65 दिन में फलियों की तुड़ाई, फली लम्बाई 8 सेमी. 90-100 हरी फलियां
2 पूसा मुक्ता 90-108 दिन अधिक समय में पकने वाली 150-200 हरी फलियां
3 जवाहर मटर-3 85-90 दिन 65-75 दिन में फलियों की तुड़ाई 140-200 हरी फलियां
4 बोनबिले 95-105 दिन 55-60 दिन में $फलियों की तुड़ाई, झुर्रीदार दाने 130-140 हरी फलियां
5 टाइप-163 110-120 दिन सूखे दाने की उपज के लिये सर्वोत्तम 20-25 सूखा दाना
6 लिंकन 100-110 दिन 80-100 दिन में फलियों की तुड़ाई, पौधे बोने, पहाड़ी क्षेत्र 150-170 हरी फलियां

बुवाई समय : मटर की बुवाई की अगेती किस्म सितम्बर के प्रथम सप्ताह से अक्टूबर के द्वितीय सप्ताह तक की जाय तथा मध्यम व पिछेती किस्मों की बुवाई अक्टूबर के तृतीय सप्ताह से नवम्बर के मध्य तक की जा सकती है परन्तु पिछेती मटर बुवाई के बाद गेहंू बोना सम्भव नहीं है यदि मटर के बाद प्याज लगाना हो तो आसानी से की जा सकती है।

बुवाई विधि: मटर की बुवाई सीड कम ड्रिल से करना उत्तम होता है जिसमें उर्वरक नीचे व बीज ऊपर 4-5 सेन्टीमीटर की गहराई पर गिरे। मटर में लाइन से लाइन की दूरी 30-35 सेन्टीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 5-6 सेमी रखते हैं।

सिंचाई: मटर को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। मटर की बुवाई पलेवा करके बोना चाहिये इसके बाद प्रथम सिंचाई फूल आने से पहले 45 दिन पर, दूसरी सिंचाई फलियां बनते समय 60 दिन पर तथा तीसरी सिंचाई आवश्यकतानुसार हल्की करें।

पौध संरक्षण
कीट प्रबंधन :  मटर की फसल में मुख्य रूप से तना छेदक, तनाछेदक इल्ली तथा चेंपा का प्रकोप होता है।

फली छेदक कीट- प्रारंभ में इस कीट की इल्लियां पौधे के कोमल भागों को खाती  हंै तथा फली लगने पर फलियों में घुसकर दाना खाती हैं। इसके नियंत्रण के लिये क्लोरोपायरीफॉस दवा का 0.05 प्रतिशत का घोल छिड़कें।

तना छेदक इल्ली- इस कीट की इल्ली मटर के तने में घुसकर खाती है जिससे तना खोखला हो जाता है। इसके नियंत्रण के लिये क्विनालफॉस डस्ट 1.5 प्रतिशत की 20-25 किलोग्राम मात्रा भुरकाव करें।

मटर का चेंपा कीट- यह कीट कोमल तना व पत्तियों का रस चूसते हैं तथा विषाणु रोग फैलाते हैं। इसके नियंत्रण के लिये मेलाथियान 50 ईसी की 2 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 2-3 छिड़काव करें।

रोग प्रबंधन:

बीज एवं जड़ विगलन रोग- यह रोग बीज मृदाजनित रोग है इस रोग से बीज उगने से पूर्व सड़ कर नष्ट हो जाता है। रोकथाम के लिये ट्राइकोडर्मा विरडी दवा की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित कर बोयें।

उखटा रोग- इस रोग से उपज में भारी कमी देखी गई है इसलिये बीज को 2.5 ग्राम बाविस्टीन दवा से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित कर बोयें तथा फसल चक्र अपनायें।

खरपतवार प्रबंधन: बुवाई के 25-30 दिन बाद हेन्ड हो या डोरा का उपयोग करने से खरपतवार नष्ट हेाने के साथ ही वायु संचार अच्छा एवं जड़ों का विकास अच्छा होगा। रसायनिक खरपतवार नियंत्रण में बुवाई के बाद अंकुरण के पूर्व पेन्डीमिथालीन 30 ई.सी. दवा का 0.75 – 1.00 किग्राम सक्रिय तत्व का प्रति हेक्टर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर फ़्लेट फेन या कट नोजल से छिड़काव करें।

मटर की उत्पादकता बढ़ोतरी के लिये आवश्यक बातें

  • फसल पाले के लिये अति संवेदनशील है इसलिये घुलनशील सल्फर 80 प्रतिशत ङ्खक्क+1 ग्राम बोरान/लीटर पानी का घोल छिड़कें।
  • भभूतिया रोग निरोधी किस्में बोयें क्योंकि यह रोग उपज को प्रभावित करता है।
  • हल्की  सिंचाई करें संभव हो तो स्प्रिंकलर से सिंचाई करें।
  • उर्वरकों का संतुलित उपयोग करना जिसमें पोटाश व सल्फर का उपयोग आवश्यक।
  • क्षेत्र के लिये अनुमोदित किस्म का चुनाव करें क्योंकि अलग-अलग क्षेत्र की जलवायु अलग-अलग होती है।
  • मटर की खेती में उन्नत कृषि क्रियाओं को अपनायें।
  • क्रान्तिक अवस्थाओं में खरपतवारों का उचित प्रबंध करें बुवाई के 45 दिन तक खेत खरपतवार मुक्त हो।
  • खड़ी फसल में लगने वाले कीट व्याधि का प्रकोप का उचित प्रबंध करें।
  • मृदा में जीवंाश खादों के अलावा राइजोवियम व पीएसबी का उपयोग आवश्यक है।

निराई गुड़ाई :  मटर की अच्छी बाढ़वार के लिये दो निराई गुड़ाई करें जिससे वायु संचार अच्छा होगा तथा फसल खरपतवार रहित होगी। यदि बोई जाने वाले क्षेत्र में खरपतवारों की अधिक समस्या हो तो अंकुरण के पूर्व फ्लूक्लोरोलिन(वासालिन 48 ईसी) की एक से डेढ़ किलोग्राम दवा का 600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के बाद छिड़कें।

फलियों की तुड़ाई : मटर की हरी फलियों की तुड़ाई 3-5 बार में पूर्ण हो जाती है। फलियां जब तोडं़े जब दाना अच्छा भर गया हो तथा फलियों का रंग हरे से हल्के रंग में बदलना शुरू हो गया हो। फलियों की तुड़ाई सुबह एवं सांयकाल करना चाहिये। तथा पहली दूसरी तुड़ाई सावधानीपूर्वक करें जिसमें पौधे टूटें नहीं।

कटाई एवं गहाई : हरी फ़लियों के तुड़ाई के लिये प्रथम तुड़ाई 60-70 दिन में प्रारम्भ हो जाती है तथा 10 दिन के अन्तराल पर 3-4 तुड़ाई करें और फसल को रोटावेटर चलाकर खेत में मिला देना चाहिये जिससे 10-15 टन ग्रीन बायोमांस प्रति हेक्टर प्राप्त हेागा जो अगली फसल गेहंू के लिये लाभकारी होगा। सूखे दाने के उत्पादन के लिये जब पौधा पक कर सूखने लगे तो कटाई कर लेना चाहिये अन्यथा फलियां चटकने लगती हैं। कटाई के बाद 7-8 दिन फसल को खुली धूप में सुखाकर दाना अलग कर लें तथा दानों को सुखाकर जब 8-10 प्रतिशत नमी हो भण्डारण करें।

उपज – हरी फलियों की उपज 125 से 150 क्विंटल तथा सूखा दान 25-30 क्विंटल आसानी से मिलती जाती है। इसके अलावा 20-25 क्विंटल पोष्टिक सूखा भूसा पशुओं को खिलाने के लिये प्राप्त होता है।

  • बी. एस. गुर्जर

उपमहाप्रबंधक इफको, बालाघाट
मो. : 8349993039

Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *