फसल की खेती (Crop Cultivation)

चना: उत्पादन तकनीकी अपनाकर, आमदनी बढ़ाएं

  • डॉ. अनीता बब्बर , प्राची शर्मा
  • डॉ. मोनिका ज्योति कुजूर
  • डॉ. बालकिशन चौधरी , मोनिका पटेल
    प्रमुख वैज्ञानिक (चना प्रजनक)
    पादप प्रजनन एवं आनुवांशिकी विभाग
    ज.ने. कृ. विश्वविद्यालय, जबलपुर

19 अक्टूबर 2022, भोपालचना: उत्पादन तकनीकी अपनाकर, आमदनी बढ़ाएं  – भूमि का चुनाव एवं तैयारी- चने की खेती के लिए हल्की दोमट तथा मटियार भूमि का चयन करें। मृदा का पी.एच. मान 6-7.5 उपयुक्त रहता है। गर्मी में जमीन की गहरी जुताई अवश्य करें, इससे कीड़ों के अंडे, घास फूस के बीज व भूमिजनित रोगों के बीजाणु अधिक तापक्रम होने के कारण मर जाते हैं। गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। अंतिम जुताई के पूर्व 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मैलाथियान घोल मिला दें, जिससे मिट्टी में पाये जाने वाले हानिकारक कीट नष्ट हो जाएं।

खेत पूर्व फसलों के अवशेषों से मुक्त हो इससे भूमिगत फफूंदों का विकास नहीं होगा। बुआई के लिए खेत को तैयार करते समय 2-3 जुताईयाँ कर खेत को समतल बनाने के लिए पाटा लगाएं। पाटा लगाने से नमी संरक्षित रहती है। खेत की मिट्टी बहुत ज्यादा महीन या भुरभुरी बनाने की आवश्यकता नहीं है इसके लिये ढेलेदार भूमि उपयुक्त होती है। जल निकासी की उचित व्यवस्था सुनिश्चित करें।

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बुआई का समय
  • बुआई समय पर करना खेती में सफलता की प्रथम सीढ़ी हैै।
  • असिंचित क्षेत्रों में, खरीफ फसल की कटाई के तुरंत बाद या बारिश थमने के बाद ही अक्टूबर के द्वितीय एवं तृतीय सप्ताह तक बुआई करें।
  • सिंचित क्षेत्रों में अक्टूबर के तृतीय सप्ताह से नवम्बर मह तक बुवाई करें।
  • देर से बोने की स्थिति में जल्दी पकने वाली किस्मों का चयन कर दिसम्बर के द्वितीय सप्ताह तक बोनी करें।
    धान की फसल कटने के बाद भी चना की खेती की जा सकती है। ऐसी स्थिति में बुआई दिसम्बर माह तक अवश्य कर देें।
बीज गुणवत्ता
  • भौतिक गुणवत्ता वाले बीज का आकार, वजन और रंग एक समान हो। पत्थरों, मलबे और धूल, पत्ते, टहनियों, अन्य फसल के बीज, खरपतवारों और निष्क्रिय सामग्री से मुक्त हो।
  • सिकुड़े हुए, रोगग्रस्त, धब्बेदार, क्षतिग्रस्त और खाली बीज नहीं हो।
    बोने से पूर्व अंकुरण क्षमता की जांच स्वंय जरूर करें। बीज की अकुंरण क्षमता (85 प्रतिशत) तथा नमी (7-9 प्रतिशत) तक हो।
बीज दर
  • खेत में पौधों की संख्या 33.44 पौध/ मीटर2 हो।
  • उचित बीज दर दानों के आकार (भार), बीज अंकुरण, उत्तरजीविका प्रतिशत,बुआई का समय और भूमि की उर्वराशक्ति पर निर्भर करता है।
  • छोटे दाने वाली किस्मों (100 दानों का वजन 15 से 17 ग्राम) की बीज दर 70-75 किलो ग्राम प्रति हेक्टर।
  • मध्यम दाने किस्मों (100 दानों का वजन 18 से 22 ग्राम) की बीज दर 75-80 किलो ग्राम प्रति हेक्टर।
  • काबुली किस्मों की बीज दर 100-120 किलो ग्राम प्रति हेक्टर।
  • देर से बुआई की अवस्था में बीज दर 20 प्रतिशत बढ़ा दें।
  • बीज परीक्षण में अंकुरण क्षमता (85.90 प्रतिशत) यदि कम हो, तो बीज दर बढ़ा दें।
बुआई की विधि
  • देशी चना में पंक्तियों के बीच की दूरी 30 से.मी. तथा काबुली चना के बीच की दूरी 45 से.मी. हो।
  • बुआई 6-8 से.मी. गहराई पर करें।
  • पौध से पौध की दूरी 8-10 सेमी हो।
बीजोपचार

बीज उपचार एक विधि है, जिसमें पौधों को बीमारियों और कीटों से मुक्त रखने के लिए रसायन या जैव कीटनाशकों से उपचारित किया जाता हैं अथवा यह बीजों के ऊपर रसायनों या जैव कीटनाशकों को लगाने की प्रक्रिया है, जो बीज और पौध को बीज या मिट्टी ये होने वाली बीमारियों और पौधों के विकास को प्रभावित करने वाले कीटों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उकठा, शुष्क मूल विगलन व स्तम्भ मूल विगलन चना के भूमिजनित रोग है। भूमिजनित रोगों से चना फसल के बचाव हेतु बीजोपचार अवश्य करें।

चना में बीज उपचार:
  • जीवाणु संवर्धन (राइजोबियम कल्चर) से बीजोपचार
  • चना राइजोबियम कल्चर का प्रयोग करें।
  • एक पैकेट राइजोबियम कल्चर (200 ग्राम) 40 किलो ग्राम बीज को उपचारित करने के लिय पर्याप्त है।
  • बीजोपचार सायंकाल में करें, तेज धूप में बीजों के सूखने की संभावना रहती है तथा धूप में राइजोबियम जीवाणु मर जाते हैं।
पी.एस.बी. कल्चर
  • फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया कल्चर 5 ग्राम/ किलो ग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें।
  • ध्यान रखें फफूंदनाशक दवा से पहले बीज उपचारित करें तत्पश्चात् राइजोबियम व पी.एस.बी कल्चर से उपचारित करें।
    निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए बीज उपजार करें
  • बीजों को समान रुप से उपचारित करेें।
  • उपचारित बीज को छाया में सुखाएं।
  • उपचारित बीज उसी दिन बोयें।
  • कीटनाशकों की समाप्ति तिथि देखें।
खाद व उर्वरक

उर्वरक की मात्रा मिट्टी की उर्वरता पर निर्भर करता है। अत: उर्वरकों की मात्रा मृदा परीक्षण के परिणामों के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए। खराब मिट्टी के मामले में फसल को अच्छी तरह से सड़ी फार्म यार्ड खाद और नाइट्रोजन (25 किग्रा./ हेक्टेयर), फॅास्फोरस और डायमोनियम फॉस्फेट ( 125 से 150 किग्रा./ हेक्टेयर) जैसे जैविक उर्वरकों की आवश्यकता होती है। खादों और उर्वरकों को बीज बोने से पहले डालें। इन उर्वरकों को मिट्टी में लगभग 8 सेमी. गहराई वाले ड्रिलर का उपयोग उर्वरक डालने के लिए करें।

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  • 15-20 किलो ग्राम नत्रजन, 40-50 किलो ग्राम फॉस्फोरस, 20 किलो ग्राम पोटाश व 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करें।
  • नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा बेसल खुराक के रुप में दी जाए।
  • उपरोक्त मात्रा की पूर्ति 100 किलो ग्राम डी.ए.पी., 33 किलो ग्राम म्यूरेट आफ पेाटाश व 200 किलो ग्राम जिप्सम प्रति हेक्टर प्रयोग करने से प्राप्त की जा सकती है।
  • जिन क्षेत्रों में जस्ते की कमी हो वहां 15-20 किलो ग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर बुआई के समय प्रयोग करें।
  • देर से बुआई में नत्रजन 40 किलो ग्राम दें।
  • असिंचित अवस्था में फूल आने पर 2 प्रतिशत यूरिया या डी.ए.पी. के घोल का पर्णीय छिडक़ाव, लाभकारी पाया गया है।
सिंचाई

चना ज्यादातर असिंचित दशा में की जाती है। हालांकि जहाँ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहाँ एक सिंचाई,शाखायें बनते समय (फूल आने से पहले) अर्थात् बोने के 45 दिन बाद और दूसरी सिंचाई दाना भरने की अवस्था पर सिंचाई हल्की व स्प्रिंकलर द्वारा करें। फूल बनने की अवस्था में सिंचाई न करें इससे फूल झड़ते हैं। जिससे उपज में कमी आ जाती है। (शेष पृष्ठ 6 पर)

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म.प्र. के लिये चना प्रजातियाँ

देशी प्रजातियाँ:
जेजी 24, जेजी 31, जेजी 36, जेजी 130, जेजी 63, जाकी 9218, जेजी 14, जेजी 12, आरवीजी 204, आरवीजी 205

काबुली प्रजातियाँ:
जेजीके 1, जेजीके 5, आरवीकेजी 111, विराट, विहार

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