फसल की खेती (Crop Cultivation)

पपीता लगाएं, आमदनी बढ़ाएं

पपीता लगाएं, आमदनी बढ़ाएं

पौध प्रवर्धन

व्यावसायिक रूप से पपीते का प्रवर्धन बीज के द्वारा ही की जाती है, यद्यपि पोध कलम, ऊतक वर्धन (टीषू कल्चर) तरीकों से सफलतापूर्वक प्रवर्धित किये जा सकते हैं।

बीज बोना एवं पौधों की संख्या

पपीते की पौध तेैयार करने के विभिन्न तरीके हैं जैसे रोपणी में, गमलों में या पालीथीन की थैलियो में बोया जाता है। पौध को स्थायी स्थान पर लगाने के 1 से 1 1/2 माह पूर्व बीजों को रोपणी में बोया जाता है। रोपणी को अच्छी तरह तैयार करके 3 ग 1 वर्गमीटर आकार की क्यारियॉं जमीन से 15 से.मी. की ऊॅंचाई पर लाइन से लाइन 15 से.मी. तथा बीज से बीज 5 से.मी. की दूरी पर बोना चाहिये। बोने के बाद घास से ढंक देना चाहिये और पानी न बरसने की स्थिति मे आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहिये।

अनुसंधान से पाया गया है कि यदि पपीते के बीज को 100 पी.पी.एम इन्डोल ब्यूटायरिक एसिड के घोल से उपचारित करके बोया जाय तो अंकुरण अधिक और जल्दी होता है। पपीता के पौधे वर्ष में तीन बार लगाये जा सकते हैं-

1 जुलाई – अगस्त,
2 सितम्बर – अक्टूबर

पौधों को खेत में लगाने के लिये 45 ग 45 ग 45 घन से.मी. के गड्ढे लगाने के दस-पंद्रह दिन पूर्व बना लेना चाहिये। गड्ढे के बीच की दूरी 2 ग 2 मीटर रखी जाती है। इन गड्ढे से निकाली गई मिट्टी में 20 किलो अच्छी सड़ी गोबर खाद, 500 ग्राम सुपर फास्फेट, 250 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा 25 ग्राम एलड्रेक्स चूर्ण 5 प्रतिशत प्रति गड्ढा मिला दें, पौध जब 15 से.मी. की हो जाये तब उन्हें गड्ढो में लगा देना चाहिये। एक गड्ढे में दो पौध लगायें। पर्याप्त सुरक्षा प्रबंध होने पर प्रति गड्ढा चार बीज के हिसाब से सीधे भी बुवाई की जा सकती है। एक हेक्टेयर के लिये 500 ग्राम बीज अथवा 2500 पौधों की आवश्यकता पड़ती है। जब पौधों में फूल आ जाते हैं तब उन्हे पहचानकर प्रति गड्ढें में एक ही पौध रखना चाहिये, बाकी पौधे निकाल देना चाहिये। 10 मादा पौधों के बीच में एक नर पौधा रखना आवश्यक होता है। मादा पौधे में एक स्वस्थ पौधे को छोड़कर बाकी निकाल देना चाहिये।

उन्नत जातियॉं

बड़वानी लाल एवं पीला, वाशिंगटन, हनीड्यू, पूसा मैंजेस्टी, कुर्ग हनीड्यू, कोयम्बटूर-1, कोयम्बटूर-2, कोयम्बटूर-7, पूसा नन्हा, पूसा जाइन्ट, ताइवान आदि।

सिंचाई

वर्षा ऋतु में जब वर्षा ठीक प्रकार से नहीं हो तो एक दो सिंचाई कर देना चाहिये । पपीते में सर्दियों में 10-12 दिन एवं गर्मियों में 6-8 दिन के अंतर से सिंचाई करना चाहिये। सिंचाई पद्धति में थाला पद्धति काफी संतोषजनक सिद्ध हुई है।

निंदाई-गुड़ाई

लगातार सिंचाई करते रहने से मिट्टी की सतह कड़ी हो जाती है। जिससे पौधों की वृद्धि पर कुप्रभाव पड़ता है। अत: जरूरी है कि हर तीन सिंचाईयों के बाद अच्छे मौसम में हल्की सी निंदाई गुड़ाई कर देना चाहिये।

पपेन तैयार करने की विधि

पपेन हरे कच्चे फलों के दूध से तैयार किया जाता है। इसमें स्टैलनेस स्टील के चाकू या ब्लेड की सहायता से 3 महीने पुराने फलों पर 3 मि.मी. गहरे कट 1.25 से.मी. के अंतर से लगायी जाती है। प्रति दिन ऐसी चार पॉंच कटाने प्रति फल लगाई जाती है। कटानों को फलों की लंबाई में लगाया जाता है। दूध को प्रात:काल निकालकर कॉंच चीनी मिट्टी के बर्तन या मिट्टी के बर्तन में इक_ा करते हेैं तथा इसको 38 डिग्री.से, से नीचे तापक्रम पर सुखाया जाता है यही सूखा हुआ पदार्थ पपेन कहलाता हैं। पपेन का आर्थिक उपयोग खाद्य पदार्थो, मांस को गलाने, स्नोक्रीम, दंतमंजन, सौन्दर्य प्रसाधनों को बनाने, एल्कोहल तैयार करने, पाचान संबंधी रोगों में प्रयुक्त किया जाता है। औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन जैसे चबाने वाले गोद बनाने, ऊनी कपड़ों के उद्योग में ऊन को मुलायम करने के लिये तथा सिल्क के लसीलापन हटाने में भी उपयोग किया जाता है।

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