Crop Cultivation (फसल की खेती)Editorial (संपादकीय)

क्या हम शहरी खेती के लिए तैयार हैं

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  • शशिकांत त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार,
    मो. : 9893355391

28 नवम्बर 2022, भोपाल । क्या हम शहरी खेती के लिए तैयार हैं – शहरी, कृषि, खाद्य सुरक्षा, भारत, ग्रामीण पर्यावरण, पोषण सुरक्षा, इसी माह दुनिया की आबादी 800 करोड़ हो गई है। शहरों पर आबादी का दबाव बढ़ता जा रहा है। भारत में राजधानी दिल्ली जैसे शहरों में प्रदूषण इतना ज्यादा है कि सांस लेना मुश्किल है। ऐसी समस्याओं को दुनिया भर के वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन से जोडक़र देख रहे हैं और खाद्य सुरक्षा को पैदा होने वाले खतरे से आगाह कर रहे हैं। अमूमन आम भारतीय शहरी खेती के बारे में कम चर्चा करते हैं। शहरी खेती वह खेती है जिसमें शहर के लोग खुद के उपयोग या शहर में बिक्री करने के लिए कुछ खाद्य और गैर खाद्य पदार्थ उगा लेते हैं। कई शहरी क्षेत्रों में छोटे और मझोले उद्यमी हायड्रोपोनिक्स जैसी विधियों को अपना कर कम जगह में फल, सब्जियां, वगैरह उगा रहे हैं। इस तरह की खेती में गैर-सरकारी संगठन दुनिया भर में विकसित हो रही नई तकनीकों के बारे में शहरी किसानों को जागरूक कर रहे हैं ताकि वे जमीन का इस्तेमाल किये बिना खाद्य और गैर खाद्य पदार्थ उगा सकें और शहरों पर आने वाले खाद्य संकट से बचा जा सके। मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में जमीन की फिलहाल कमी नहीं है लेकिन लगातार बढ़ता प्रदूषण लगभग हर राज्य को धीरे-धीरे अपनी गिरफ्त में ले रहा है। शहरी स्थानीय निकाय जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकते हैं।

शहरी कृषि शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में नई खेती की तकनीक, वैज्ञानिक विधियों कृषि या पशुधन उत्पादन के लिए खाद्य और गैर-खाद्य उत्पादों को तैयार किया जा सकता है। इसमें पशुधन पालन, मधुमक्खी पालन और व्यावसायिक पैमाने पर फूलों की खेती जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं। मसलन शहर के बड़े हॉटेल अपने हॉटेल की छत पर मधुमक्खी पालन कर मेहमानों को रोज ताजा शहद उपलब्ध करवा सकते हैं। इसके अलावा वे ऐसे फल और सब्जियां भी उगा सकते हैं जो अमूमन बहुत महँगी होती हैं या जिएंगे उगाने के लिए विशेष देखभाल की ज़रूरत होती है। शहरी खेती में मुश्किल जैसे मिट्टी प्रबंधन, सिंचाई, प्रत्यारोपण, मशीनीकरण और कटाई) और मुख्य खाद्य पदार्थों की खेती को शामिल करने की संभावना नहीं है। शहरी कृषि के माध्यम से जिन खाद्य उत्पादों की खेती की जा सकती है, वे मुख्य रूप से वे होंगे जो सूक्ष्म पोषक तत्वों में योगदान करते हैं, जैसे फल, सब्जियां, हरे पत्तेवाली सब्जिय़ां वगैरह। शहरी खेती में घरेलू ज़रूरत के लिए उत्पादन से लेकर अधिक वाणिज्यिक स्तर पर खाद्य पदार्थ शामिल हैं। इसके अलावा गाँवों की तर्ज पर शहरी सहकारी समितियाँ गठित की जा सकती हैं और रो-हाऊस जैसी कॉलोनियों की छतों पर नई तकनीक से ज़रूरत के खाद्य पदार्थ तैयार किये जा सकते हैं। ऐसे खाद्य या गैर-खाद्य उत्पादों को विविध हितधारकों की आवश्यकताओं को अनुकूल बनाया जा सकता है। शहरी स्थानीय निकायों उद्यमियों, गैर-सरकारी संगठनों, सामुदायिक समूहों और नागरिकों द्वारा दुनिया भर के शहरों में शहरी कृषि को तेजी से अपनाया जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, वैश्विक खाद्य और पोषण सुरक्षा में शहरी और अर्ध-शहरी खेती की महत्वपूर्ण भूमिका है, और इसलिए यह शहरी खाद्य एजेंडा के माध्यम से ऐसी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने की मांग कर रहा है। शहरी खाद्य एजेंडे में नागरिक समाज, शिक्षा जगत, अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों, शहर की संस्थाओं और निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में विकसित और कार्यान्वित नीतियां, कार्यक्रम और पहल शामिल हैं। हाल के वर्षों में, दुनिया भर के शहरी और उप-शहरी क्षेत्रों में 5 से 10 प्रतिशत के बीच फलियां, सब्जियां और कंद, और 15 से 20 प्रतिशत के बीच सभी भोजन का उत्पादन होने का अनुमान है। दुनिया तेजी से अधिक शहरी होती जा रही है, वैश्विक आबादी का 68 प्रतिशत – 2050 तक लगभग 1000 करोड़ तक होने का अनुमान है उस वर्ष तक शहरी क्षेत्रों में निवास करने वाली आबादी भी लगभग 80 फीसदी होने की उम्मीद है, जिसका अर्थ है कि 2050 तक, प्रति व्यक्ति खेती योग्य भूमि में गिरावट। और अत्यधिक खेती और खराब उत्पादन प्रथाओं से गिरावट के कारण एक तिहाई तक कम हो जाएगी। ऐसी स्थिति में शहरी आहार का विकास काफी हद तक शहरी और आसपास के क्षेत्रों में खाद्य प्रणालियों के प्रबंधन पर निर्भर करेगा। इसलिए, शहरी खाद्य एजेंडे पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता लंबे समय से है। शहरों की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे खाद्य उत्पादन में योगदान दें ताकि भूख और कुपोषण को रोका जा सके। साथ ही ग्रामीण खाद्य प्रणालियों पर जलवायु परिवर्तन से प्रेरित प्रभावों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में पलायन में वृद्धि होने की दर को कम किया जा सके। भारत अभी भी गांवों में बसता है लेकिन शहरीकरण भी तेजी से बढ़ रहा है, इसलिए शहरों के पास उपयुक्त योजना और डिजाइन के माध्यम से शहरी खेती को अपनाने का अभी अच्छा समय है। इससे पहले कि भारत दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाला देश हो जाये, शहर अपनी खेती के माध्यम से ऐसे दबाव से निपट सकें।

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