फसल की खेती (Crop Cultivation)

चित्ती रोग से खराब हो रहे हैं केले? बचाव के लिए अपनाएं ये असरदाय और आसान उपाय

01 सितम्बर 2025, नई दिल्ली: चित्ती रोग से खराब हो रहे हैं केले? बचाव के लिए अपनाएं ये असरदाय और आसान उपाय – चित्ती रोग या सिगाटोक रोग केले की फसल के बेहद खतरनाक होता है। यह रोग फसल की पत्तियों को नष्ट करके उत्पादन क्षमता में भारी गिरावट लाता है और प्रभावित फलों की गुणवत्ता को भी खराब करता है। अगर समय रहते सही उपाय नहीं किए गए, तो यह रोग पूरे बागान को प्रभावित कर सकता है। इसलिए, इस रोग से बचाव के लिए सही जानकारी और प्रभावी नियंत्रण आवश्यक है।

क्या होता है चित्त रोग और कैसे केले के बागान को करता है खराब?  

यह रोग सर्कोस्पोरा म्यूसी नामक फफूंद से उत्पन्न होता है। इस रोग ने सन् 1913 में फिजी द्वीप के सिगाटोका के मैदानी भाग में व्यापकता से प्रकोप कर केले की फसल को बुरी तरह से प्रभावित किया था इसलिए रोग का नाम सिगाटोक रोग पड़ गया है। अब यह रोग विश्व के सभी केला उत्पादक देशों में फैल चुका है। रोग के प्रभाव से पत्तियां नष्ट हो जाती हैं तथा उत्पादन क्षमता में अत्यधिक कमी हो जाती है। आर्थिक दृष्टि से यह रोग हानिकारक माना जाता है। प्रभावित पौधों से प्राप्त फल भंडार गृह में अधिक समय तक टिक नहीं पाते और अपेक्षाकृत जल्दी पककर खराब हो जाते हैं।

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लक्षण:

पत्ती के अधिकांश भाग पर धब्बे पड़ने से वे झुलस जाती हैं। रोग के प्रारंभिक लक्षण ऊपर से तीसरी या चौथी पत्ती पर सूक्ष्म चित्तियों के रूप में दिखाई देते हैं। ये धब्बे सबसे पहले हल्के पीले या हरी-पीली धारियों के रूप में बनते हैं जो शिराओं के समान्तर होते हैं। धब्बों का आकार बढ़कर भूरे रंग के बड़े-बड़े धब्बों में बदल जाता है।

धब्बे मौसम के अनुकूल बढ़कर आपस में मिल जाते हैं और पत्तियां झुलसकर सूख जाती हैं तथा लटक जाती हैं। फलों पर भी यह रोग प्रकोप करता है, जो प्रभावित पत्तियों से फैलता है। रोग की गंभीरता बढ़ने पर फलों के पकने की कोई निश्चितता नहीं रहती, इसलिए फलों को लंबे समय तक भंडारण या दूर भेजा नहीं जा सकता।

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रोग नियंत्रण के उपाय:

खड़ी फसल में रोग नियंत्रण:

रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखाई देने पर उपयुक्त ताम्रयुक्त दवा जैसे फाइटोलान, क्यूपरामार, ब्लूकापर या ब्लाईटाक्स-50 का 0.3 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें। प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर द्रव छिड़काव करना चाहिए। इस घोल में 2 प्रतिशत अलसी का तेल मिलाएं ताकि दवा केले की चिकनी पत्तियों पर अच्छी तरह से चिपक सके।

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अन्य उपयुक्त दवाएं हैं: डाइथेन एम-45 (0.2 प्रतिशत) एवं बेनलेट (0.1 प्रतिशत), जिन्हें 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग किया जाता है। केले के बगीचों में छिड़काव के लिए पेट्रोल चलित स्वचलित छिड़काव यंत्र का प्रयोग करें, जिसमें 35 लीटर दवा व तेल का घोल एक बार में प्रति हेक्टेयर उपयोग किया जा सके। फुटस्प्रेयर छिड़काव यंत्र को बांस से बांधकर भी उपयोग किया जा सकता है, परंतु इस विधि से करीब 1000 लीटर दवा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

उपरोक्त छिड़काव कम से कम दो बार, 15 दिन के अंतराल पर करें। नवीनतम प्रयोगों के अनुसार, 250 ग्राम बेनलेट को 6 लीटर तेल में मिलाकर 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करने से रोग पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है।

बुवाई पूर्व रोग नियंत्रण:

पौध अवशेषों को एकत्र करके जलाना चाहिए ताकि रोगजनक का प्राथमिक संक्रमण नष्ट हो सके और संक्रमण में देरी हो। प्रभावित खेत से बीज के लिए कंद एकत्र न करें।

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