फसल की खेती (Crop Cultivation)

लगायें खरीफ में मक्का

खेत की तैयारी
अच्छे निथार वाले बालू भूमि की तैयारी एक या दो बार बक्खर चलाकर मिट्टी भुरभुरी कर लें। आखिरी बार बखरनी के पहले एक हेक्टेयर में 20 किलो फाली डाल डस्ट डालकर मिला लें और 15 टन गोबर की खाद भी मिलाये। उन्नत मक्का बोने के लिये खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और बाद में देशी हल से करें।
किस्में और उनके गुण
कम्पोजिट : प्रमाणित बीज गंगा-2, डेक्कन-103, गंगा-11, विजय, नवजोत, जे-684, किरण, जे-660, माही कंचन, माही धवल, अरुण-डी 765, पूसा, कम्पोजिट-1, पूसा कम्पोजिट-3
संकर : चंदन मक्का-3, जवाहर मक्का-8, जवाहर मक्का 12, किरण
फसल पकने के आधार पर किस्में :
जल्दी पकने वाली किस्में: जवाहर मक्का-8, जवाहर मक्का-12, पूसा कम्पोजिट-2, पूसा अर्ली हायब्रिड-1
मध्यम समय में पकने वाली : नवजोत, अरुण, सरताज, डेक्कन-107, जवाहर मक्का -13
देर से पकने वाली किस्में : गंगा-11 प्रभात, त्रिशुलता डेक्कन-103, डेक्कन-105
बीज उपचार
एक किलो को 3 ग्राम थाइरम से उपचारित करें। इसके बाद एजेटोबेक्टर नामक जीवाणु कल्चर से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
बीज दर
सामान्य रूप से एक हेक्टेयर के लिये 15-20 किलो बीज संकर प्रजाति हेतु एवं 20-25 किलो बीज देशी प्रजाति हेतु पर्याप्त होता है।
बुवाई
बुआई जून के आखिरी या जुलाई के पहले सप्ताह तक करें। यदि सिंचाई का साधन हो तो मानसून के 10-15 दिन पहले ही बुआई करना अच्छा होगा। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेमी. व पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी. रखें। बीज पांच सेमी. से ज्यादा गहरा न बोयें।
खाद एवं उर्वरक
बोआई के पहले यदि पर्याप्त मात्रा में गोबर खाद दी गई हो तो एक हेक्टेयर में 81 किलो यूरिया पर्याप्त होगी। साथ ही सुपरफास्फेट, पोटाश की पूरी मात्रा 175 एवं 67 किलो प्रति हेक्टेयर बोआई के समय दें।
खरपतवार नियंत्रण
मक्का फसल में एट्राजीन 9 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुआई के बाद परन्तु उगने के पूर्व उपयोग करें। अन्तरवर्तीय (मक्का+दलहन/तिलहन) फसल व्यवस्था में पेंडीमिथालीन 1.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बुआई के बाद परन्तु पौधे उगने के पूर्व इस रसायन का प्रयोग करें। मक्का फसल में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की अधिकता होने पर 30 से 35 दिन पर 2-4 डी दवा का 1 किग्रा. प्रति हेक्टेयर उगे हुये खरपतवारों पर छिड़काव कर नियत्रंण कर सकते हैंं।
सिंचाई एवं जल निकास
सिंचाई एवं जल निकास हेतु क्रान्तिक अवस्था निम्न हैं –
पौध की अवस्था – 5 से 15 दिन
घुटने की ऊंचाई वाली अवस्था – 30 से 35 दिन
पुष्पन की अवस्था – 50 से 55 दिन
दाना बनने की प्रारम्भिक अवस्था – 70 से 75 दिन
इन अवस्थाओं में भूमि में नमी की कमी होने पर फसल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसी समय खेत में पानी की अधिकता एवं पानी का भराव होने पर फसल को काफी नुकसान होता है। पौध अवस्था पानी भरने के लिये एवं पुष्पन अवस्था भूमि में नमी की कमी होने के प्रति संवेदनशील है।

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