140 किलो DAP या 400 किलो SSP? सोयाबीन के लिए कौन सा खाद संयोजन सही है?
16 जुलाई 2025, नई दिल्ली: 140 किलो DAP या 400 किलो SSP? सोयाबीन के लिए कौन सा खाद संयोजन सही है? – सोयाबीन की अच्छी पैदावार के लिए संतुलित पोषण अत्यंत आवश्यक है। विशेष रूप से मध्य क्षेत्र (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, विदर्भ आदि) में खेती करने वाले किसानों को फसल की जरूरत के अनुसार उर्वरकों का चयन और प्रयोग करना चाहिए। ICAR – राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान द्वारा किसानों को विभिन्न उर्वरक संयोजनों के विकल्प सुझाए गए हैं, जिनसे फसल को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें और उत्पादन में वृद्धि हो सके।
प्रश्न 1: सोयाबीन की अच्छी उपज के लिए मध्य क्षेत्र में कौन-कौन से उर्वरक संयोजन अपनाए जा सकते हैं?
उत्तर: किसानों के पास तीन मुख्य उर्वरक संयोजन के विकल्प हैं, जो निम्न प्रकार हैं:
- विकल्प 1:
- यूरिया: 56 किलोग्राम
- सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP): 375-400 किलोग्राम
- म्यूरेट ऑफ पोटाश (MoP): 67 किलोग्राम
- विकल्प 2:
- डीएपी (DAP): 140 किलोग्राम
- म्यूरेट ऑफ पोटाश (MoP): 67 किलोग्राम
- बेंटोनाइट सल्फर: 25 किलोग्राम
- विकल्प 3:
- कॉम्प्लेक्स उर्वरक 12:32:16: 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
- बेंटोनाइट सल्फर: 25 किलोग्राम
इनमें से किसी एक संयोजन को खेत की आवश्यकता और उपलब्धता के अनुसार चुना जा सकता है।
प्रश्न 2: क्या सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी आवश्यकता होती है?
उत्तर: हाँ, सोयाबीन की अच्छी वृद्धि के लिए कुछ सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति भी आवश्यक होती है। किसान आवश्यकता के अनुसार निम्नलिखित सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग कर सकते हैं:
- जिंक सल्फेट: 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
- आयरन सल्फेट: 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
प्रश्न 3: उर्वरकों को खेत में कब और कैसे डालना चाहिए?
उत्तर: किसान निम्नलिखित तरीकों से उर्वरकों का प्रयोग कर सकते हैं:
- बोवनी से ठीक पहले उर्वरकों को खेत में प्रसारण (broadcasting) करें।
- या फिर बोवनी के समय बीज एवं उर्वरक युक्त सीड-कम-फर्टिलाइज़र ड्रिल का उपयोग करें, जिससे बीज और खाद दोनों का समान रूप से वितरण हो सके।
प्रश्न 4: क्या सभी उर्वरक संयोजन एक समान प्रभावशाली हैं?
उत्तर: हाँ, उपरोक्त तीनों संयोजन सोयाबीन की पोषण आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हैं। किसान अपनी सुविधा, उपलब्धता और लागत के आधार पर किसी भी संयोजन को अपना सकते हैं।
मध्य भारत के किसानों को चाहिए कि वे अपनी मिट्टी की स्थिति, मौसम की दशा और संसाधनों को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त उर्वरक संयोजन चुनें। संतुलित पोषण प्रबंधन से न केवल उपज बढ़ेगी बल्कि भूमि की दीर्घकालिक उर्वरता भी बनी रहेगी।
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