अण्डे उत्पादन हेतु छोटे स्तर पर मुर्गीपालन
लेखक: डॉ. अंकुर नारद, डॉ. बिस्वजीत राय, डॉ. सुप्रिया शुक्ला
06 जून 2025, भोपाल: अण्डे उत्पादन हेतु छोटे स्तर पर मुर्गीपालन – पिछले एक दशक में मुर्गीपालन का व्यवसाय काफी उभर कर आया है। आमतौर पर गांवों तक सिमटे इस व्यवसाय ने अपने पैर शहरी क्षेत्रों तक जमा लिये हैं और नवयुवकों का एक विशाल समुदाय इस पेशे की ओर आकृष्ट हुआ है। इसके कारण स्पष्ट है, कम पूंजी लगाकर भी ज्यादा शुद्ध आय, मुर्गीपालन हेतु किसी विशेष शिक्षा की आवश्यकता ना होना, अंडे व मांस का निरंतर बढ़ता बाजार और बैंकों की मुर्गीपालन हेतु उदाऋण नीति। इन तमाम कारणों के चलते मुर्गीपालन एक उत्कृष्ट व्यवसाय के रूप में स्थापित हुआ है। प्राय: गांवों तथा शहर की बस्तियों में लोग घरों में मुर्गियां पालतेे हंै। देश की काफी बड़ी आबादी इस व्यवसाय में लगी हुई हैं। आइये, हम यह बात करें कि अंडे उत्पादन हेतु छोटे स्तर पर मुर्गीपालन किस तरह कर सकते हैं।
मुर्गियों का चयन कैसे करें
मुर्गीपालन हेतु अच्छी नस्ल की मुर्गियों को ही चुनना चाहिए। हमारे देश में मिली-जुली और गैर नस्ली (देशी) मुर्गियां पायी जाती हैं। ऊंची नस्ल की मुर्गियों का प्रतिशत भी काफी है। कुछ नस्लें यहां की परिस्थिातियों के अनुसार तैयार की गई है। सफेद ‘लेगहार्न ‘ नस्ल की मुर्गियां अच्छी अंडा उत्पादक होती हैं। यद्यपि गांवों मेें ज्यादातर लोग देशी मुर्गियां पालते हंै। इनकी अंडा व मांस की पैदावर की क्षमता अधिक नहीं होती है, पर हां, देशी मुर्गियों में सामान्यत: वे बीमारियां नहीं होती जो विकसित नस्ल की मुर्गियों को लग जाती है।
प्रजनन
प्रजनन हेतु मुर्गियों के लिए एक विशेष दड़बा तैयार किया जाता है। प्रजनन हेतु खालिस नस्ल के मुर्गे-मुर्गियों का चयन किया जाता हैं। कई मुर्गियों को बाड़े में एक मुर्गे के साथ रखा जाता है या मुर्गियों के झुुण्ड में कई मुर्गे रखे जाते हैं।
अण्डा देना
जो मुर्गियां जल्दी अण्डा देना शुरू करती हैं वे अधिक अंडा देने वाली नस्ल की होती है। सफेद लेग हार्न अच्छी नस्ल की मुर्गी होती है। यह 160 दिनों में अंडे देना शुरू करती है। कुछ मुर्गियां एक या दो सप्ताह के लिए अंडा देना बंद कर देती हंै। इसकी वजह वातावरण संबंधी होती है या अनुवांशिक भी हो सकती है। वह मुर्गी कुड़क मुर्गी कहलाती है।
संसर्ग के 36 घंटे बाद मुर्गी उर्वर अंडा देती है अमूमन,मुर्गे को मुर्गियों के साथ रखने के दिन से 10 दिन बाद ही चूजे निकालने के लिए अंडे इक_े किया जा सकते हैं। अंडे दो प्रकार के होते है चूजे वाला अंडा 2. सामान्य अंडा
बिछावन
चूजों को लाने से पहले सतह पर 2 इंच की ऊंचाई तक लकड़ी का बुरादा या चावल की भूसी फैला दें। बुरादे को पुराने अखबार से ढंक दें। बुरादा गीला व डलीदार न हों। इससे फंगस के रोग, ब्रूडर निमोनिया या खूनी दस्त की बीमारी का डर हो सकता है। हमेशा बुरादा बदलकर नया बुरादा डालते रहना चाहिये।
दाना व पानी
हमेशा कोशिश करें कि मुर्गियों को संतुलित व उत्तम गुणवत्ता का आहार मिले। आहार की मात्रा मोैसम व वजन के अनुसार बदलनी पड़ती है। फिर भी स्टार्टर की 300 किलोग्राम की मात्रा 250 चूजों के लिये चार सप्ताह तक चाहिये। यह दाना दो बार खरीदें। चार सप्ताह बाद चूजों को फिनिशर दाना दें। पहले एक से तीन दिन के अंदर एक किलो मक्की या दलिया 250 चूजों के लिये इंतजाम कर लें। ध्यान रहे चूजों व बड़ी मुर्गी का दाना अलग-अलग मिलता है। इन दाने के अलावा आपके खाने से कोई चीज बच जाती है तो उसे भी मुर्गियों को दे सकते हैं। हरी सब्जी पालक, गोभी के बचे पत्तों को बारीक काट कर डालें तो खाने की बचत की जा सकती है। मुर्गियों के पीने के लिए पानी हमेशा उपलब्ध होना चाहिये। पानी का बर्तन कभी खाली न रखें। बर्तन की सफाई रोज होना चाहियें । पानी में विटामिन बी काम्प्लेक्स की निर्धारित मात्रा अवश्य डालें।
टीकाकरण
मुर्गियों के चूजों को पशु चिकित्सक की सलाह से मेरेक्स, रानी खेत,चेचक,फाउल पॉक्स,गंबोरो से बचाव हेतु टीकारण करवाना चाहिये।
पेट के कीड़े
मुर्गी के के पेट में कीड़ों के अण्डे बीट के साथ, लकड़ी के बुरादे , भूसे आदि से फैलते है। ये ऑत में बढ़ कर बहुत नुकसान पहॅुचाते है। अत: कृमिनाषक औषधि वाला पानी (पिपरेजीन ) कम से कम छ: घण्टे चलाना चाहियें। 50 मुर्गियों हेतु 30 मिली दवा 4-5 लीटर पानी में छ: घण्टों तक पिलायें ।
गांवों के लिये सस्ते मुर्गीघर
ये सस्ते मुर्गीघर जूट के कपड़े (टाट), बांस की खपच्चियों डालियों और सूखी घास या पुआल सें बनाए जा सकते हैं। टाट का घर सुविधाजनक होता है। 15 मुर्गियों के लिए इनका आकार 8Ó3 6Ó3 6Ó होना चाहिये। लकड़ी की फ्रेम में टाट को कीलों से ठोक दिया जाता हैैै। फिर इस पर अंदर व बाहर सीमेंट और चूना घोलकर लेप कर दिया जाता है। खुले स्थान पर तार की जाली लगाना चाहिए। इस जाली से कीड़े अंदर नहीं आ पाते। अण्डे देने वाली मुर्गियों के बाड़े में अण्डे देने के लिए घेासले वाले बॉक्स होना चाहिए। इसमें रोशनी कम होना चाहिये। तेल के खाली कनस्तरों से घोसला बक्से बहुत अच्छे बनते है। उनमें जंू, पिस्सू या किल्ली इक_े नहीं होते। मुर्गियों का बिछावन जल्दी जल्दी बदलते रहना चाहिये।
अंडों से चूजे कैसे प्राप्त करें
मुर्गियों द्वारा प्राकृतिक ढंग से चूजे तैयार करना – जब मुर्गी अण्डे पर बैठना चाहती है तो वह चिल्लाती है और पंखों को फडफ़ड़ाती है। वह हर समय बैठी हुई मिलती है। चार-पांच देशी मुर्गियां 50 अण्डे सेने वाली मशीन का काम कर सकती है। ये चूजों को निकालने के अलावा उनका पालन पोषण भी करती है। इस हेतु एक घोंसले का निर्माण करना चाहिए।
मशीन द्वारा कृत्रिम ढंग से चूजे प्राप्त करना – अण्डे सेने के काम में आने वाली मशीन को इनक्युबेटर कहते है। इस मशीन में अण्डों को एक निश्चित तापक्रम पर रखने तथा उन्हें पलटते रहने से भ्रूण के शरीर का आकार बढ़ता है। अण्डों के सेने के दौरान उन्हें 15वें दिन मशीन से निकालकर अण्डा सेने वाली चौरस टोकरी पर रख दिया जाता है जिसे हैचिंग बैड कहते है। यहॉ अण्डों को एक दिन में चार बार उलट-पलट किया जाता है, जब तक अण्डों से चूजे न निकले । इक्कीसवें दिन अण्डे के छिलके को तोड़ कर चूजे बाहर आ जाते है I
चूजों की दवाइयां (सभी दवाइया डॉक्टर की सलाह से दें) | ||
1 | पहले दिन | ग्लूकोज, चीनी व गुड़ का पानी |
2 | पहले से तीसरे दिन | होसटासायक्लिन |
3 | चौथे दिन | विटामिन बी कामप्लेक्स |
4 | पांचवें दिन | विटामिन ए |
5 | बारहवें दिन | विमरोल |
6 | अठारहवें दिन | पिपराजीन द्रव |
7 | उन्नीसवें दिन | बी काम्प्लेक्स |
8 | बीसवें दिन | विमरोल |
9 | 21वें से 23वें दिन | काक्सीडियोसिस |
10 | चौबीसवें दिन | बी काम्प्लेक्स |
11 | पच्चीसवें दिन | विमरोल |
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