Animal Husbandry (पशुपालन)

जहरीले चारे से पशुओं के बचाव के उपाय

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  •  डॉ. प्रमोद शर्मा, सहायक प्राध्यापक
  • पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, रीवा (म.प्र.)

 

03 जनवरी 2023,  जहरीले चारे से पशुओं के बचाव के उपाय पशुओं में प्रकृति प्रदत्त गुण है कि वे खाने योग्य वनस्पति को ही खाते हंै, परन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों जैसे अधिक भूखे होने पर या सूखे/ अकाल की स्थिति में जब उन्हें हरा चारा नहीं मिलता तो वे जो भी हरा दिखता है मजबूरी में खा लेते हैं। आजकल चारागाह की जमीनें भी धीरे-धीरे कम होती जा रही हंै अत: उनमें भी कुछ वनस्पति जो जहरीली रहती है जानवर उनको भी कई बार चर लेते हैं।

वनस्पति जो मुख्य रूप से विषैली होती है वे निम्नानुसार है।

सायनोजेनेटिक पौधे

ऐसे पौधे जिनमें हायडोसायनिक अम्ल होता है उनको सायनोजेनेटिक पौधे कहते हैं जैसे ज्वार, मक्का के पौधे, सूडान घास, असली, गन्ने की पत्ती एवं जॉनसन्स घास इत्यादि।

ज्वार, मक्का में कुछ विशेष स्थिति में ही हाड्रोसायनिक अम्ल होता है अन्यथा ये जहरीले नहीं होते जैसे कि लगभग घुटने की ऊँचाई के पौधे या बुवाई 45 दिन बाद के पौधों में यह अम्ल अधिकता में रहता है या पौधे सूखे की स्थिति में या पानी न मिलने के कारण बढ़ नहीं पाते तब भी अम्ल की अधिकता रहती है। गाय और भैंस इस विषाक्तता के लिये अधिक संवेदनशील होते हैं जबकि भेड़ तुलनात्मक रूप से इन विषाक्तता से कम प्रभावित होती है। घोड़े और शूकर बहुत कम ही इससे प्रभावित होते हैं। उदाहरणार्थ पौधे के 100 ग्राम वजन में 20 मि.ग्रा. हाईड्रोसायनिक अम्ल होता है तभी वह पौधा जहरीला होता है।

लक्षण – यह एकदम से प्रगट होते हंै। इसकी विषाक्तता 2 घंटे के अन्दर ही पशु की जान ले लेती है। जानवर लडख़ड़ा कर चलता है बैचेन रहता है, श्वसन क्रिया में तकलीफ होती है, कमजोर परन्तु तेजी से नब्ज चलती है, जानवर जमीन पर लेट जाता है और पूँछ और आगे के पैर खिच जाते हैं। कभी-कभी गैस भी बहुत बनती है तो पेट फूट जाता है श्लेष्मा झिल्ली का रंग नीला सा पड़ जाता है। पशु की मृत्यु श्वसन क्रिया के रूकने से होती है।

सावधानी: चरने के बाद जब जानवर शाम को लौटते हैं तभी अचानक यह देखने में आता है। शुरूआत में एकदम लाल सुर्ख श्लेष्मा झिल्ली दिखती है अत: ऐसा हो तो तुरन्त उपचार करायें। नाइट्रेट उर्वरकों को प्रयोग करने पर उस वनस्पति का उपयोग चराने में न करें।

प्रकाश की संवदेनशीलता बढ़ाने वाले पौधे – कुछ पौधे ऐसे होते हंै जिनको जानवर खाने के बाद प्रकाश के प्रति संवेदनशील हो जाते है। इस बीमारी के लक्षण त्वचा पर स्पष्ट दिखायी देते हैं।

यह शरीर के उन भागों पर दिखते हंै जो सूर्य प्रकाश के सीधे संपर्क में आते है, और हल्के रंग के होते है (कान, चेहरा, ओंठ, थन, नथूने, पलकों आदि) जानवर की चमड़ी पर लालपन, सूजन एवं खुजली होना आदि दिखाई देता है। जब खुजली होती है तो सख्त जगह पर जानवर रगड़ लेता है जिससे सीरस द्रव्य का रिसाव होने लगता है। फिर सड़ान भी हो सकती है। नाक में अत्यधिक सूजन आ जाये तो साँस लेने में भी तकलीफ होने लगती है। जब ज्यादा दिन तक यह विषाक्तता चलती रहे तो भूख न लगना, अंधापन लडख़ड़ाना और लकवा आदि लक्षण दिखते हंै।

सावधानी 

जैसे पूर्व में बतायी गई है।

आक्जलेट पैदा करने वाले पौधे – ताजे गन्ने के ऊपरी हिस्से, पेरा (धान का भूसा) भूसा आदि फंगस (कवक) द्वारा खराब हो गया हो, शकरकंद आदि।

लक्षण – भूख न लगना, कमजोरी, मूत्र में रक्त का आना, लार बहना, मूत्र कम बनना, दूध का उत्पादन घट जाना। बहुत ज्यादा दिन हो जाने पर लकवा जैसे स्थिति भी हो जाती है।

सावधानी 

तुरन्त ऐसा चारा बंद कर दें। जल में या चारे में चूने का पानी या डायकैल्शियम फास्फेट दें। पानी अधिक से अधिक पिलाये।  

सेलेनियम तत्व वाले पौधे – कुछ पौधे जैसे चना, गेहंू, मक्का में यह तत्व मिल जाता है यदि वे जिस भूमि पर उत्पन्न हो रहे है उसमें इस तत्व की मात्रा अधिक होती है। इसमें प्रमुख लक्षण बाल झडऩा, पूँछ के बाल झड़ जाना, खुर का बढ़ जाना और इतना बढ़ जाता है की वह ऊपर की ओर मुड़ जाता है और फिर खुर की ऊपरी सतह निकल जाती है। जानवर लंगड़ाता है।

सावधानी –

ऐसी जमीन पर उत्पन्न वनस्पति को चारे के रूप में प्रयोग न करें।

नाइटे्रट अधिकता वाले पौधे – ऐसे पौधे जिनमें नाइट्रेट की मात्रा अधिक रहती है उनको खा लेने पर इसकी विषाक्तता होती है। सोलेनम, सौरघम, ब्रेसिका, ऐमरेनथस प्रजातियाँ आदि के पौधों में नाइट्रेट अधिकता में रहता है। नाइट्रेट उवर्रक के डालने पर भी वनस्पति में अधिक नाइट्रेट होता है जो कि विषाक्तता कर सकता है।

लक्षण- श्वसन संबंधी तकलीफ।

अन्य पौधे –

(अ) बेशर्म – इसकी विषाक्तता भेड़, बकरी में अधिकतर देखने को मिलती है। इसमें श्वसन में तकलीफ होना, यकृत विषाक्तता कमर के हिस्से में लकवा इत्यादि लक्षण पाये जाते हैं।

(ब) कनेर – यह सफेद/गुलाबी/पीले रंग के फूल वाला पेड़ होता है। इसकी विषाक्तता का प्रभाव त्वरित होता है। यह सभी जाति के प्राणियों को प्रभावित करती है। आहार नलिका की सूजन, उल्टी होना, जुगाली बंद हो जाना, पेट फूल जाना, मांस पेशीय संकुचन, चक्कर आना, बेहोशी और मृत्यु हो जाना।

(स) धतूरा – धतूरा सेवन से सभी जाति के पशु प्रभावित होते हैं। केवल खरगोश को इसका असर नहीं होता। हल्की पर तेज नब्ज, मुँह का सूखना, असंतुलित होना, आँख की पुतली का फैल जाना, जुगाली बंद हो जाना, चक्कर आना और मृत्यु हो जाना। मृत्यु हृदय गति रूक जाने से होती है।

(द) अरंडी – इसकी विषाक्तता सभी जाति के पशुओं में होती है। दस्त लगना, दस्त में आव आना, लार बहना, लडख़ड़ाना, असंतुलित होना।

उपरोक्त मुख्य वनस्पति जो पशुओं में विषाक्तता का कारण बनती है इसके अलावा बरसीम जो कि सीमा से अधिक खाने पर गैस बनाती है और पेट फूट जाने पर सांस रूक जाती है और पशु की मृत्यु तक हो जाती है।

चारागाहों से ये विषाक्त वनस्पति उखाड़ दें अथवा पशुओं को स्वंय चारा काट कर खिलायें ताकि इन खतरनाक जहरीली वनस्पति से बचा जा सके। यदि लक्षण आ ही जाते है तो तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सक से इलाज करवायें।

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