पशुपालन (Animal Husbandry)

क्या पशुओं में कृत्रिम प्रजनन तकनीक न्याय संगत नहीं है?

21 सितंबर 2020, इंदौर। क्या पशुओं में कृत्रिम प्रजनन तकनीक न्याय संगत नहीं है?गत दिनों सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री बोबडे की एक पीठ ने केंद्र शासन से जवाब मांगा है, कि क्या पशुओं से कृत्रिम गर्भाधान की तकनीक अपनाना तर्कसंगत है? देश के पशुपालन विभाग ,जीव जंतु कल्याण बोर्ड और राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, नई दिल्ली को यह नोटिस जारी किया गया है।

महत्वपूर्ण खबर : 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने में गेहूं का योगदान

Advertisement
Advertisement

उल्लेखनीय है कि मदुरई के एक नागरिक डॉक्टर वेंकटेश ने एक रिट दायर की है जिसमें यह कहा गया है कि पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान की जो तकनीक अपनाई जा रही है, उस पर तुरंत प्रतिबंध लगाया जाए, क्योंकि कृत्रिम गर्भाधान करने के पहले पशु हेतु उचित रुप से सुरक्षा की व्यवस्था नहीं की जाती ,न ही उसे सुन्न किया जाता है ,यह प्रक्रिया कानूनसम्मत न होकर यह पशुओं के लिए निष्ठुर और तकलीफदेह साबित होती है। ,याचिका के नेपथ्य में स्वर यही है कि कृत्रिम गर्भाधान बेरहम तरीके से पशुओं को बांध के उनकी मर्जी के खिलाफ किया जाता है।

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में गाय भैंसों की बुनियादी तौर पर स्थानीय दुधारू नस्ले है ही नहीं ,मालवी,निमाड़ी,केनकथा और गाओलाओ नस्ले खेतो में काम करने वाली नस्ले है,इनसे दूध की अपेक्षा व्यर्थ है।ऐसे में, पूरे देश मे दूध उत्पादन में तीसरे क्रम पर आना सिर्फ नस्ल संकरण के बूते पर ही हुआ है। यहां यह स्मरण रखने योग्य है कि भारत में आज एक व्यक्ति के कटोरे में हर दिन 394 मि. ली.दूध की उपलब्धता के आंकड़े के मुकाबले मध्यप्रदेश में 538 मि. ली. दूध प्रति व्यक्ति की उपलब्धता हासिल हुई है।

Advertisement8
Advertisement
Advertisements
Advertisement5
Advertisement