मछली पालन: आर्थिक विकास की धुरी
- माधवी खिलारी
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,
रायपुर (छ.ग.)
17 जनवरी 2023, मछली पालन: आर्थिक विकास की धुरी – मत्स्य उद्योग एक ऐसा व्यवसाय है जिसे निर्धन से निर्धन व्यक्ति अपना सकता है एवं अच्छी आय प्राप्त कर सकता है तथा समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है। विभिन्न माध्यमों से मत्स्य पालन व्यवसाय में लगकर अपना आर्थिक स्तर सुधारा है तथा सामाजिक स्तर में भी काफी सुधार हुआ है। आज मत्स्य व्यापार में लगी महिलाएं-पुरुषों के साथ बराबर का साथ देकर स्वयं मछली बेचने बाजार जाती हैं, जिससे उनकी इस व्यवसाय से संलग्न रहने की स्पष्ट रूचि झलकती दिखाई देती है।
मछली पालन का महत्व
भारतीय अर्थव्यवस्था में मछली पालन एक महत्वपूर्ण उद्योग है, जिसमें रोजगार की अपार संभावनाएँ हैं। ग्रामीण विकास एवं अर्थव्यवस्था में मछली पालन की महत्वपूर्ण भूमिका है। मछली पालन के द्वारा रोजगार सृजन तथा आय में वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़े हुए लोगों में आमतौर पर आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य कमजोर तबके के हैं जिनका जीवनस्तर इस वृद्धि को बढ़ावा देने से उठ सकता है। मत्स्योद्योग एक महत्वपूर्ण उद्योग के अंतर्गत आता है तथा इस उद्योग को शुरू करने के लिए कम पूंजी की आवश्यकता होती है। इस कारण इस उद्योग को आसानी से शुरू किया जा सकता है। मत्स्योद्योग के विकास से जहां एक ओर खाद्य समस्या सुधरेगी वहीं दूसरी ओर विदेशी मुद्रा अर्जित होगी, जिससे अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा। भारत विश्व में मछली का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और अंतर्देशीय मत्स्य पालन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। मत्स्य क्षेत्र देश में 11 लाख से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है। चूंकि कृषिभूमि में कोई वृद्धि नहीं हो रही है तथा ज्यादातर कृषि कार्य मशीनरी से होने लगे हैं, इसलिए राज्य की निर्धनता की स्थिति और भी भयावह होती जा रही है, इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में मत्स्य पालन जैसे लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देना होगा तभी ग्रामीण क्षेत्र के निर्धनों का आर्थिक एवं सामाजिक स्तर सुधारा जा सकेगा। सामाजिक विकास के लिए निर्धन, बेरोजगार, अशिक्षित लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके लिए एक सुलभ, सस्ते एवं कम समय में अधिक आय देने वाले मत्स्य पालन उद्योग व्यवसाय को अपनाने हेतु प्रेरित करने की आवश्यकता होगी।
विपणन माध्यम
मत्स्य पालन के बाद इनके विपणन की प्रक्रिया या उपयुक्त बाजार की सुविधा का होना नितांत आवश्यक है क्योंकि नियमित बाजार के माधयम से ही हम सही कीमत प्राप्त कर सकते है। प्राय: ग्रामीण क्षेत्रों में लगने वाले बाजारों में छोटे-छोटे मछुआरे लोग मछली बेचते हंै, जबकि बड़े स्तर पर उत्पादन करने वाले किसान या तो खुद बाजारों में बेचने के लिए ले जाते हैं या फिर होलसेलर के पास बेच देते, इस प्रकार आढ़तिया जो है, छोटे-छोटे खुदरा व्यापारियों के पास बेच देता है, खुदरा व्यापारी जो है अपना लाभ निकालकर अन्य लोगों के पास बेच देते हैं, इस प्रकार मत्स्य पालन का मार्केटिंग का कार्य किया जाता है।
मत्स्य पालन से लाभ
मत्स्य पालन आज कई देशों में विदेशी मुद्रा अर्जन करने का एक मुख्य साधन बन गया है। भारत जैसे अन्य कई देश जहां मत्स्य की खपत कम है परंतु उत्पादन अधिक है, वहां मत्स्य का निर्यात करके भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा इससे प्राप्त की जाती है। आज जापान में विश्व का सर्वाधिक मत्स्य उत्पादन होता है जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा आदि विदेशों में वहां की खपत के अनुरूप उत्पादन नहीं है। जिन देशों में मत्स्य खपत से अधिक उत्पादन होता है वे देश ऐसे देशों को जहां खपत से कम उत्पाद ना हो, को भारी मात्रा में मत्स्य का निर्यात करते हैं। कई देशों में अंतरराष्ट्रीय बाजार से धन प्राप्त करने का एकमात्र जरिया मत्स्य उत्पादन और मत्स्य निर्यात पर टिका है।
मत्स्य पालन व्यवसाय का महत्व
मत्स्य अंतरराष्ट्रीय बाजार में उपयोगिता, आवश्यकता और कम उत्पादन पूर्ति की वजह से अधिक से अधिक होता जा रहा है। मत्स्किीय क्षेत्र निर्यात के जरिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला एक प्रमुख स्रोत है।
आर्थिक विकास में सहायक
आज आवश्यकता इस बात की है कि इन्हें मत्स्य पालन से प्राप्त होने वाली आर्थिकी से अवगत कराया जाए। इनकी मानसिकता में बदलाव लाने, इनमें विश्वास जगाने, घर एवं समाज के बंधन में बाहर निकलकर व्यवसाय में लगाने हेतु उन्हें पूर्ण सहयोग देने की जरूरत है, तभी ये बाहरी परिवेश में आकर अपना आर्थिक स्तर सुधार सकेंगे तथा एक अच्छे समाज का निर्माण कर क्रांतिकारी सामाजिक परिवर्तन लाने में सक्षम हो सकेंगे एवं निर्भीक बन सकेंगे। जिससे समाज का आर्थिक स्तर बहुत अच्छा होगा, निश्चित ही उस समाज का सामाजिक स्तर उच्च रहेगा। उनका रहन-सहन, खानपान, वातावरण अच्छा होगा, उनका आचरण शीलवान होगा।
अत: ग्रामीण क्षेत्र में निर्धन वर्ग के लोगों को खासतौर पर अनुसूचित/अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को मत्स्य पालन व्यवसाय में लगाकर उनका आर्थिक स्तर सुधारना होगा, तभी उनका सामाजिक स्तर सुधरेगा। इस प्रकार मछलीपालन देश की अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है।
रोजगार के अवसर
इस उद्योग पर आधारित अन्य सहायक उद्योग भी है जैसे जाल निर्माण उद्योग, नाव निर्माण उद्योग, नायलोन निर्माण, तार का रस्सा उद्योग, बर्फ के कारखाने आदि उद्योग भी मत्स्य उद्योग से लाभान्वित हो रहे हैं। यह उद्योग बेरोजगारी दूर करने में सहायक है। रोजगारमूलक होने के कारण इस उद्योग के माध्यम से देश की पिछड़ी अवस्था में सुधार किया जा सकता है। चूंकि कृषि भूमि में कोई वृद्धि नहीं हो रही है तथा ज्यादातर कृषि कार्य मशीनरी से होने लगे हैं इसलिए देश की निर्धनता की स्थिति और भी भयावह होती जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र में मत्स्यपालन जैसे महत्वपूर्ण उद्योगों को प्रोत्साहन देना होगा तभी ग्रामीण सामाजिक स्तर सुधारा जा सकेगा। सामाजिक विकास के लिए निर्धन, बेरोजगार अशिक्षित लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके लिए मत्स्यपालन उद्योग, जो कि एक सुलभ, सस्ता एवं कम समय में अधिक आय देने वाला है, व्यवसाय को अपनाने हेतु प्रेरित करने की आवश्यकता होगी। मत्स्य पालन व्यवस्था शुरू करने के पहले मत्स्य पालकों को उन्नत तकनीकी की जानकारी देने तथा प्रशिक्षण देना होगा। अगर मत्स्यपालन उन्नत तकनीकी से किया जाएगा तो निश्चित रूप से मत्स्य उत्पादन बढ़ेगा और जब मत्स्य उत्पादन बढ़ेगा तो आय में वृद्धि होगी और आय में वृद्धि होगी तो निश्चित रूप से सामाजिक स्तर सुधरेगा क्योंकि आर्थिक अभाव में जहां निर्धन व्यक्तियों का जीवनस्तर गिरा हुआ था उसमें सुधार होगा, परिवार के बच्चों को शिक्षित कर सकेंगे और जब बच्चे शिक्षित हो जाएंगे तो समाज में उनका स्तर ऊंचा होगा तथा हीनभावना की कुंठा से मुक्ति मिलेगी और यही शिक्षित बच्चे समाज के अन्य सदस्यों को अपना सामाजिक स्तर सुधारने में विशेष योगदान दे सकेंगे। अत: इनको स्वरोजगार में लगाना आवश्यक है।
मछली पालन के साथ-साथ अन्य सहायक उद्योगों का उत्पादन
मछली पालन सहआय के अन्य स्रोत- इस उद्योग के साथ-साथ अन्य सहायक उद्योग भी कर सकते हैं जिनमें लागतदर कम आती है तथा लाभ अधिक प्राप्त होता है। मछली पालन के साथ-साथ अन्य उत्पादक जीवों का पालन किया जा सकता है जिससे मत्स्य उत्पादन में होने वाले व्यय की पूर्ति की जा सके तथा अन्य जीवों से उत्सर्जित व्यर्थ पदार्र्थों का उपयोग मत्स्य पालन के लिए हो सके तथा अन्य जीवों के उत्पादन से अतिरिक्त आय प्राप्त हो सके। वर्तमान में मत्स्यपालन के साथ सुअर, बत्तख एवं मुर्गीपालन करना काफी लाभप्रद साबित हुआ है। इन प्रयोगों से प्राप्त परिणाम आशाजनक तथा उत्साहपूर्वक हैं।
मत्स्य पालन सह धान उत्पादन
इस खेती में धान की दो फसल (लम्बी पौधों की फसल खरीफ में एवं अधिक अन्न देने वाली धान की फसल रबी में) एवं साल में मछली की एक फसल धान की दोनों फसल के साथ ली जा सकती हैं। धान सह मछलीपालन का चुनाव करते समय इसका ध्यान रखना चाहिए कि भूमि में अधिक से अधिक पानी रोकने की क्षमता होनी चाहिए, जो इस क्षेत्र में कन्हार मटासी एवं डोरसा मिट्टी में पाई जाती है। खेत में पानी के आवागमन की उचित व्यवस्था मछलीपालन हेतु अति आवश्यक है। सिंचाई के साधन मौजूद होने चाहिए व औसत वर्षा 800 किलोमीटर से अधिक होनी चाहिए।
मछली पालन सह बत्तख पालन
मत्स्य सह-बत्तख पालन के लिए एक अच्छे तालाब का चुनाव और अनचाही मछलियों और वनस्पति का उन्मूलन मत्स्यपालन के पूर्व करना अनिवार्य है। जैसा कि पूर्व में बताया गया है मत्स्य बीज संचय की दर से इसमें कम रहती है। 6000 मत्स्य अंगुलिकाएं / हेक्टेयर की दर से कम से कम 100 किलोमीटर आकार की संचय करना अनिवार्य है क्योंकि बत्तखें छोटी मछलियों को अपना भोजन बना लेती है। बत्तखों को पालने के लिए बत्तखों के प्रकार पर ध्यान देना अति आवश्यक है। भारतीय सुधरी हुई नस्ल की बत्तखें उपयुक्त पाई गई है। खाकी केम्पवल की बत्तखें भी अब पाली जाने लगी हैं। एक हेक्टेयर जल क्षेत्र में मत्स्य पालन हेतु जो खाद की आवश्यकता पड़ती है, उनकी पूर्ति 200-300 बत्तखें/हेक्टेयर मिलकर पूरी की जा सकती है।
मछली सह-मुर्गी पालन
मछली सह-मुर्गीपालन में मुर्गी की लीटर का उपयोग सीधे तालाब में किया जाता है, जो मछलियों द्वारा आहार के रूप में उपयोग किया जाता है एवं शेष बचा हुआ लीटर तालाब में खाद के काम आता है। मुर्गी के घर को आरामदायक तथा गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गरम रखने की व्यवस्था होना अनिवार्य है, साथ ही उसमें प्रत्येक पक्षी के लिए पर्याप्त जगह, हवा, रोशनी एवं धूप आनी चाहिए तथा उसे सूखा रखें। मुर्गियों के अण्डे, मुर्गियों की प्रजाति एवं नस्ल तथा उनके रहने की उचित व्यवस्था संतुलित आहार और उनकी स्वास्थ्य रक्षा संबंधी व्यवस्था आदि पर निर्भर करती है।
मछली पालन सह-झींगापालन
मछली सह झींगापालन में तालाब की तैयारी एवं प्रबंधन पूर्व की भांति ही करना है। तालाब की पूर्ण तैयारी हो जाने के बाद मीठे पानी में झींगा संचय करते हैं। पालने वाली प्रजाति जिसे हम ‘‘महाझींगा’’ भी कहते हैं एवं जो सबसे तेज बढऩे वाला होता है ‘‘मैक्रोबेकियमरोजनवर्गीय’’ है। इसका पालन मछली के साथ एवं केवल झींगापालन दोनों पद्धति से कर सकते हैं। मछली सह-झींगापालन में लगभग 15,000 झींगे के बीज प्रति हेक्टेयर की दर से संचय किये जाते हैं। इसके लिए किसी अतिरिक्त खाद या भोजन आदि तालाब में डालने की आवश्यकता नहीं रहती है। सामान्यत: झींगे के बीज छह महीने में 70-80 ग्राम के एवं आकार में 120-130 सेंटीमीटर के हो जाते हैं। इन्हें बाजार में बेचने पर अच्छी कीमत प्राप्त की जा सकती है।
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