गौ-पशुओं में थनैला रोग एवं बचाव
थनैला रोग का कारण
थनैला रोग गंदे वातावरण में स्वस्थ पशुओं में आसानी से फैलता है । पशु घरों में गंदगी होना मलमूत्र का अधिक समय तक इकटठा रहना, बिना उबाले औजारों का दुग्ध थन में इस्तेमाल करना, गंदे हाथों से दूध दुहना, बीमार एवं स्वस्थ पशुओं को एक साथ दुहना आदि कारण इस बीमारी के उत्पन्न होने में सहयोग करते हैं। इसके अलावा दूध निकालने में देरी, पिछले पैरों के बढ़े हुए खुर, खुरों का टेढ़ा-मेढ़ा होना तथा दोनों खुरों के बीच जख्म, जेर अटकने का इतिहास एवं बच्चादानी में संक्रमण, खराब एवं असंतुलित पशु आहार, रोजाना आहार में जरूरी मिनरल्स की कमी जैसे कि कोबाल्ट, कॉपर, फॉस्फोरस, सेलीनियम आदि तथा बु्रसेल्ला और गलघोंटू जैसी बीमारी आदि भी रोग को फैलाने में सहायक हैं।
थनैला की पहचान एवं प्रभाव
अयन एवं थन में सूजन आने पर उसे ठंडे पानी से धोना चाहिये । बर्फ के टुकड़े को कपड़े में लपेटकर प्रभावित भाग पर सिकाई करना चाहिये तथा 6-8 घंटे में दूध निकालकर फेंक देना चाहिये । दुहने पर दूध न निकलने की स्थिति में टीट सायफन को उबालकर एवं लाल दवा में डुबोकर थनों से दूध निकालना चाहिये । गर्म पानी से सिकाई, दर्द , का मरहम या बाम आदि सख्त बर्जित हैं । रोगी पशु को तुरन्त स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिये तथा उसको सबसे अंत मे दुहना चाहिये । दूध दुहने के पहले हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोना चाहिये । दूध दुहने से पहले अयन एवं थनों को स्वच्छ पानी एवं लाल दवा के घोल से धोना चाहिये । दूध दूहने के पश्चात थनों के छिद्रों पर आयोडीन का घोल रूई से लगाना चाहिये । थनों एवं दुग्ध ग्रंथि की चोट का तुरंत उपचार करना चाहिये । बढ़े हुए पिछले खुरों को समय-समय पर काटते रहना चाहिये ।
गाय को शुष्क अवस्था में लाते समय गौ-पशुओं के थनों से संपूर्ण दूध निकाल कर प्रत्येक थन मे एण्टीबायोटिक मरहम 3 मि.मी. अंदर तक भर देना चाहिये तथा चार दिनों तक थनों को लाल दवा में रोजाना डुबोना चाहिये । पशुओं को अच्छी गुणवत्ता वाले संतुलित आहार देना चाहिये । चारे में खनिज मिश्रण का सही मात्रा में इस्तेमाल करें । हाल ही में खरीदे हुए नये पशुओं को कुछ दिन थोड़ा हटाकर बाँधना चाहिये । सामान्य तौर पर पषुपालन क्षेत्र में थनौला नियंत्रण के लिए प्रबंधन – क्रियान्वयन पूर्णमूल्यांकन – प्रबंधन चक्र पारसपरिक पषुओं के समूह के स्वास्थ्य प्रबंधन का एक अच्छा उदाहरण है। यह अब थनैला नियंत्रण के योजना का आधारभूत आकृति है।
थनैला के लक्षण दिखने पर तुरंत पशु चिकित्सक से सलाह लेकर सही समय पर उपचार कराना चाहिये ।